TRENDING TAGS :
Supreme Court: जेलों में जाति के आधार पर काम देना गलत, SC ने कहा- अनुच्छेद 15 का उल्लंघन
Supreme Court: जेलों में 'जाति आधारित भेदभाव' से जुड़ी याचिका पर आज सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की।
Supreme Court: आज सुप्रीम कोर्ट ने 'जाति आधारित भेदभाव' से जुड़ी याचिका पर अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाया। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा जाति के आधार पर कोर्ट में काम का बंटवारा करना पूरी तरह गलत है। जेल में निचली जातियों को सफाई और झाड़ू का काम देना और उच्च जाति को खाना पकाने का काम देना सीधे तौर पर भेदभाव है। और यह संविधान के अनुच्छेद 15 का उल्लंघन है। आज 'जाति आधारित भेदभाव' से जुड़ी याचिका की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला तथा न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने की है।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा
आज 'जाति आधारित भेदभाव' से जुड़े मामले पर सुनवाई करते हुए कोर्ट की तरफ से फैसला सुनाया गया कि हर राज्य 3 महीने में अपने जेल मैनुअल में संशोधन करे। कुछ जातियों को आदतन अपराधी मानने वाले सभी प्रावधान असंवैधानिक है। जेल में कैदी की जाति दर्ज करने का कॉलम नहीं होना चाहिए। जाति के आधार पर सफाई का काम देना गलत है। इसके आलावा शीर्ष अदालत ने कुछ राज्यों के जेल मैनुअल को देखकर उनके सभी प्रावधानों को ख़ारिज कर दिया। और कैदियों को उनकी जाति के आधार पर अलग वार्डों में रखने की प्रथा की भी निंदा की है।
क्या है पूरा मामला
सुप्रीम कोर्ट में महाराष्ट्र के कल्याण की निवासी सुकन्या शांता ने एक याचिका दायर की थी जिसमें कहा गया था कि देश के कुछ राज्यों के जेल मैनुअल जाति आधारित भेदभाव को बढ़ावा देते हैं। जिसके बाद जनवरी में हुई सुनवाई के दौरान कोर्ट ने केंद्र सहित 17 राज्यों से जेल के अंदर हो रहे जातिगत भेदभाव को लेकर जवाब माँगा था। लेकिन छह महीने बीतने के बाद भी केवल उत्तर प्रदेश, झारखंड, ओडिशा, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल ने ही अपना जवाब कोर्ट में दाखिल किया था। जिसपर आज कोर्ट ने फिर से सुनवाई की और बड़ा फैसला सुनाया।
क्या सुनाया कोर्ट ने फैसला
आज जेलों में कैदियों की जाति के आधार पर होने वाले भेदभाव को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा कि तीन महीने के अंदर राज्य अपने जेल मैनुअल में सुधार करें। अदालत ने कहा कि किसी विशेष जाति से सफाईकर्मियों का चयन करना पूरी तरह से मौलिक समानता के विरुद्ध है। सुनवाया के दौरान ही पीठ ने कहा कि राज्य के नियमावली के अनुसार जेलों में हाशिए पर पड़े वर्गों के कैदियों के साथ भेदभाव के लिए जाति को आधार नहीं बनाया जा सकता। यह पूरी तरह से गलत है।