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SC: याचिका को खारिज करते हुए कहा- कोर्ट अमृतधारा दवा नहीं, जिससे हर बीमारी का इलाज हो जाए
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने जनहित याचिकाओं के जरिए हर किस्म के मुद्दों को उठाने पर एक कड़ा रुख अपनाया है। कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि ये सुप्रीम कोर्ट है, कोई अमृतधारा दवा नहीं, जिससे हर बीमारी का इलाज हो जाए। लोग सुबह उठते ही हर समस्या का इलाज ढूंढ़ने सुप्रीम कोर्ट चले आते हैं। चीफ जस्टिस जेएस खेहर ने सोमवार (27 फरवरी) को कोर्ट की तुलना एक अमृतधारा नामक दवा से की थी।
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सुप्रीम कोर्ट अमृत धारा में तब्दील
मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जेएस खेहर ने कहा कि जब वह छोटे थे, तो उस समय एक हर्बल दवा होती थी जो हर मर्ज में काम आती थी। अगर आपके पेट में दर्द है तो अमृतधारा, सिर में दर्द है, तो अमृतधारा। आजकल लोग समझते हैं कि सुप्रीम कोर्ट अमृत धारा में तब्दील हो चुका है जहां हर मर्ज की दवा है। लोगों को सरकार के सामने अपनी बातें रखनी चाहिए। जरूरी नहीं कि हर काम में सुप्रीम कोर्ट ही निर्देश जारी करे।
पब्लिक इंटरेस्ट का मुद्दा नहीं
सुप्रीम कोर्ट जया ठाकुर बनाम केंद्र सरकार नामक एक मामले में दायर की गई पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (पीआईएल) पर सुनवाई कर रही थी। इसी दौरान चीफ जस्टिस ने पिटीशनर्स को फटकार लगाते हुए कहा कि उनकी ओर से गिनाई गई परेशानियों में एक भी पब्लिक इंटरेस्ट का मुद्दा नहीं है। जिसपर चीफ जस्टिस ने कहा कि इनका हल सरकारी अफसरों को मेमोरेंडम देकर या सरकार से अपील कर भी कराया जा सकता था।
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इन घटनाओं का था याचिका में जिक्र
जानकारी के मुताबिक याचिका में मध्यप्रदेश, उड़ीसा और उत्तर प्रदेश की घटनाओं का जिक्र था।
जहां परिजन अपने मृत लोगों को कई किलोमीटर कंध पर लेकर चले थे, क्योंकि उन्हें एंबुलेंस नहीं मिली थी।
आगे की स्लाइड में पढ़ें 36 साल पहले मिला जनहित याचिका दायर करने का हक ... कोई भी शख्स पीआईएल दायर कर सकता है
1982 में हर भारतीय को पीआईएल यानि (जनहित याचिका) लगाने का हक मिला था। उस वक्त सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस पीएन भगवती की अगुवाई में सात जजों की बेंच ने कहा था अगर आम लोगों के अधिकारों का उल्लंघन हो रहा हो तो कोई भी शख्स पीआईएल दायर कर सकता है।