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Delhi: MCD में ‘एल्डरमैन’ की नियुक्ति पर SC से AAP सरकार को मिला बड़ा झटका, जानिए क्या है मामला?
Supreme Court: बता दें कि एमसीडी में 250 निर्वाचित और 10 नामांकित सदस्य हैं। दिल्ली सरकार ने आरोप लगाया था कि उपराज्यपाल ने उसकी सहायता और सलाह के बिना 10 सदस्यों को नामित किया था।
Supreme Court: दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) में एल्डरमैन की नियुक्ति पर देश की शीर्ष अदालत ने आम आदमी पार्टी (आप) सरकार को झटका दिया है। मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि MCD में 10 ‘एल्डरमैन’ नामित करने के उपराज्यपाल (एलजी) के फैसले को मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह की आवश्यकता नहीं है। सदस्यों को नामित करने की एलजी की शक्ति एक वैधानिक शक्ति है, न कि कार्यकारी शक्ति। इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल मई में सुनवाई करते हुए फैसला सुरक्षित रख लिया था। कोर्ट ने 15 महीने की देरी के बाद अपना फैसला सुनाया
LG को वैधानिक शक्ति पर काम करना चाहिए
कोर्ट ने माना कि नगर निगम अधिनियम के तहत उपराज्यपाल को वैधानिक शक्ति दी गई है, जबकि सरकार कार्यकारी शक्ति पर काम करती है, इसलिए LG को वैधानिक शक्ति के अनुसार काम करना चाहिए, न कि दिल्ली सरकार की सहायता और सलाह के अनुसार। कोर्ट ने कहा कि नगर निगम अधिनियम में प्रावधान है कि उपराज्यपाल नगर निगम प्रशासन में विशेष ज्ञान रखने वाले दस व्यक्तियों को नामित कर सकते हैं। न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा ने कहा कि धारा 3(3)(बी)(आई) के तहत विशेष ज्ञान वाले व्यक्तियों को नामित करने की वैधानिक शक्ति पहली बार डीएमसी अधिनियम 1957 के 1993 के संशोधन द्वारा उपराज्यपाल को दी गई थी। प्रयोग की जाने वाली शक्ति एलजी का वैधानिक कर्तव्य है न कि राज्य की कार्यकारी शक्ति।
आप के थे ये आरोप
यह मामला भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा और जे बी पारदीवाला की पीठ के समक्ष लगा। पीठ ने दिल्ली सरकार की एमसीडी 10 एल्डरमैन को नामित करने में मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर काम करने के लिए बाध्य की दलील को खारिज कर दिया। इस मामले पर पिछले साल सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा था कि एमसीडी के पार्षद मनोनीत करने की शक्ति उपराज्यपाल के पास होने का मतलब है कि वह नगर निगम को अस्थिर कर सकते हैं।
यह है पूरा मामला?
बता दें कि एमसीडी में 250 निर्वाचित और 10 नामांकित सदस्य हैं। दिल्ली सरकार ने आरोप लगाया था कि उपराज्यपाल ने उसकी सहायता और सलाह के बिना 10 सदस्यों को नामित किया था। आप ने याचिका के जरिये कोर्ट से मांग की थी कि कि नगर निगम को अपनी स्थायी समिति के कार्यों का प्रयोग करने की अनुमति दी जाए। याचिका में दावा किया गया कि 1991 में संविधान के अनुच्छेद 239AA के लागू होने के बाद से यह पहली बार है कि उपराज्यपाल ने चुनी हुई सरकार को पूरी तरह दरकिनार करते हुए इस तरह से 'एल्डरमैन' को नामित किया है। एलजी मंत्रिपरिषद की मदद और सलाह पर कार्य करने के लिए बाध्य हैं। यदि कोई मतभेद होता है, तो वह इस मुद्दे को राष्ट्रपति के पास भेज सकते हैं। उपराज्यपाल के पास सिर्फ दो ही विकल्प हैं, पहला- चुनी हुई सरकार की ओर से सुझाए गए गए नामों को मंजूर किया जाए और दूसरा- अगर प्रस्ताव पर सहमति न बने तो इसे राष्ट्रपति के पास भेज दिया जाए। एमसीडी की महापौर शेली ओबेरॉय ने सुप्रीम कोर्ट मे डाली थी।
यहां होती है एल्डरमैन की भूमिका महत्वपूर्ण
एमसीडी में एल्डरमैन की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। ये मेयर के चुनाव या किसी बिल को पास कराने में वोट नहीं करते हैं, लेकिन जोनल कमेटियों में मतदान करते हैं। जोनल कमेटियां नगर निगम की सबसे ताकतवर स्टैंडिंग कमेटी के चुनाव में अपनी अहम भूमिका निभाती है। इसलिए आप सरकार एल्डरमैन की नियुक्ति को अपने हाथ में लेने की कोशिश में जुटी थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आज आए फैसले ने उस पर पानी फेर दिया और फैसला उपराज्यपाल के पक्ष में दिया।