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अपराधी नेताओं पर सुप्रीम कोर्ट की नकेल, अब करना होगा ये काम
राजनीतिक दलों के लिए सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश मुसीबत भरा साबित होगा क्योंकि उन्हें यह भी बताना होगा कि उन्होंने किसी बेदाग प्रत्याशी को चुनाव मैदान में क्यों नहीं उतारा।
विशेष प्रतिनिधि
नई दिल्ली: राजनीति में बढ़ता अपराधीकरण किसी से छिपा नहीं है। सभी राजनीतिक दल राजनीति में शुचिता की बात तो करते हैं मगर चुनाव जीतने के लिए अपराधियों को टिकट देने से किसी को भी परहेज नहीं है। राजनीति में बढ़ते अपराधीकरण को खत्म करने की दिशा में सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने ऐसा आदेश सुनाया है जो सभी राजनीतिक दलों के लिए एक बड़ी मुसीबत साबित होगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अब राजनीतिक दलों को दागी उम्मीदवारों को चुनाव का टिकट दिए जाने की वजह बतानी होगी। इस आदेश का पालन न करने पर अवमानना की कार्रवाई की जा सकती है।
43 फीसदी सांसदों पर गंभीर मामले
माना जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला इसलिए सुनाया है क्योंकि तमाम कोशिशों के बावजूद राजनीति में अपराधियों का बोलबाला घटने के बजाय बढ़ता ही जा रहा है। एक रिपोर्ट के मुताबिक 2004 में 24 फीसदी सांसद आपराधिक पृष्ठभूमि वाले थे, लेकिन 2009 में ऐसे सांसदों की संख्या बढक़र 30 फीसदी और 2014 में 34 फीसदी हो गई। चुनाव आयोग के मुताबिक मौजूदा लोकसभा में 43 फीसदी सांसदों के खिलाफ गंभीर अपराध के मामले लंबित हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि उसे भारत में राजनीति के बढ़ते अपराधीकरण तथा देश के नागरिकों के बीच इसकी जानकारी के अभाव का संज्ञान है। कोर्ट ने जानकारी के इस अभाव को खत्म करने के लिए चुनाव लडऩे वाले समस्त प्रत्याशियों के बारे में निर्देश जारी किए हैं। कोर्ट ने कहा है कि चुनाव लडऩे वाला प्रत्येक प्रत्याशी चुनाव आयोग द्वारा दिए गए फॉर्म को भरेगा जिसमें सभी जरूरी जानकारियां होनी चाहिए। इसका मतलब साफ है कि निर्दल प्रत्याशियों को भी अपने ऊपर कायम मुकदमों की जानकारी चुनाव आयोग को देनी होगी। प्रत्याशी अपने खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों की जानकारी बोल्ड यानी बड़े अक्षरों में लिखेगा।
वेबसाइट पर अपलोड करें सारे मुकदमे
जस्टिस रोहिंटन नरीमन और एस.रविंद्र भट्ट की बेंच ने राजनीति के अपराधीकरण पर चिंता जताते हुए तमाम राजनीतिक पार्टियों को निर्देश दिया कि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों का चयन करने के 48 घंटों के भीतर उनकी पूरी प्रोफाइल पार्टी की वेबसाइट पर अपलोड करें। इसमें दागी व्यक्ति पर दर्ज सारे मुकदमों का ब्योरा देना होगा। कोर्ट ने कहा कि पिछले चार लोकसभा चुनावों के नतीजों से साफ है कि राजनीति में अपराधियों की संख्या में काफी बढ़ोतरी हुई है।
अदालत ने यह भी कहा कि सभी राजनीतिक दलों को उम्मीदवार घोषित करने के 72 घंटे के भीतर चुनाव आयोग को भी इसकी जानकारी देनी होगी। अदालत ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया कि इन निर्देशों का पालन न किए जाने पर मामले को कोर्ट के संज्ञान में लाया जाए। ऐसे में यदि पार्टियों ने कोर्ट के निर्देश का पालन नहीं किया तो चुनाव आयोग को इस मामले की जानकारी को कोर्ट को देनी होगी।
अखबार व सोशल मीडिया में देनी होगी जानकारी
सुप्रीमकोर्ट ने राजनीतिक दलों के लिए गाइडलाइन जारी करते हुए कहा कि राजनीति में अपराधियों का वर्चस्व लगातार बढ़ रहा है। इसे रोकने के लिए जरूरी है कि यदि राजनीतिक दल किसी आपराधिक पृष्ठभूमि के व्यक्ति को टिकट देते हैं तो उसका आपराधिक विवरण पार्टी की वेबसाइट के साथ ही सोशल मीडिया पर भी दें। राजनीतिक पार्टियां ऐसे उम्मीदवारों का विवरण फेसबुक और ट्विटर जैसे तमाम सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर भी शेयर करें। इसके साथ ही एक स्थानीय व एक राष्ट्रीय अखबार में भी उस दागी से जुड़ा विवरण तीन बार प्रकाशित कराएं। इलेक्ट्रानिक मीडिया पर भी इसकी जानकारी देनी होगी।
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राजनीतिक दलों के लिए सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश मुसीबत भरा साबित होगा क्योंकि उन्हें यह भी बताना होगा कि उन्होंने किसी बेदाग प्रत्याशी को चुनाव मैदान में क्यों नहीं उतारा। सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि उम्मीदवारों का चयन करने का कारण योग्यता के आधार पर होना चाहिए, न कि जीतने के आधार पर। जीतने की काबिलियत तर्कसंगत नहीं हो सकती।
ऐसे लोगों को टिकट देने की क्या है मजबूरी
राजनीति में बढ़ते अपराधीकरण को रोकने के लिए बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय सहित कई लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर रखी है। याचिकाकर्ताओं की मांग है कि कोर्ट चुनाव आयोग को निर्देश दे कि वह राजनीतिक दलों पर दबाव डाले कि राजनीतिक दल आपराधिक पृष्ठभूमि वाले नेताओं को चुनाव मैदान में न उतारें। किसी अपराधी को टिकट देने पर चुनाव आयोग राजनीतिक दलों के खिलाफ कार्रवाई करे। इन्हीं याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए शीर्ष अदालत ने राजनीतिक दलों से सवाल किया कि आखिर उनकी ऐसी क्या मजबूरी है कि वे आपराधिक पृष्ठभूमि वाले प्रत्याशी को चुनाव मैदान में उतारते हैं।
छह महीने में नहीं हुए कोई गंभीर प्रयास
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने राजनीति के अपराधीकरण को खत्म करने के लिए चुनाव आयोग को एक हफ्ते में फ्रेमवर्क तैयार करने का निर्देश दिया था। जस्टिस आर.एफ.नरीमन और जस्टिस रवींद्र भट की बेंच ने आयोग से कहा था कि राजनीति में अपराध के वर्चस्व को खत्म करने के लिए एक फ्रेमवर्क तैयार किया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता भाजपा नेता एवं अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय और चुनाव आयोग को साथ मिलकर इस मामले पर विचार करने को कहा था ताकि राजनीति में अपराधीकरण को पूर्ण रूप से रोक लगाने में मदद मिले।
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सितंबर 2018 में पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने इस मामले में फैसला सुनाया था कि सभी उम्मीदवारों को चुनाव लडऩे से पहले चुनाव आयोग के समक्ष अपनी आपराधिक पृष्ठभूमि का ऐलान करना होगा और उन्हें प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में भी व्यापक तौर पर प्रचार करना होगा। हालांकि सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बावजूद राजनीति में अपराधियों को रोकने में ज्यादा नहीं मिल सकी। अश्विनी उपाध्याय ने अपनी याचिका में कहा है कि दागी नेताओं को टिकट दिए जाने के खिलाफ पिछले छह महीने में सरकार या चुनाव आयोग ने कोई गंभीर प्रयास नहीं किया है।
क्या है अधिनियम
जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा आठ दोषी राजनेताओं को चुनाव लडऩे से रोकती है, लेकिन ऐसे नेता चुनाव लडऩे के लिए स्वतंत्र हैं जिन पर केवल मुकदमा चल रहा है। ऐसा व्यक्ति भी चुनाव लड़ सकता है जिस पर गंभीर आरोप भी लगे हों। जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा आठ (3) में कहा गया है कि उपर्युक्त अपराधों के अलावा किसी भी अन्य अपराध के लिए दोषी ठहराए जाने वाले किसी भी विधायिका के सदस्य को यदि दो वर्ष से अधिक के कारावास की सजा सुनाई जाती है तो उसे दोषी ठहराए जाने की तिथि से अयोग्य माना जाएगा। ऐसे व्यक्ति सजा पूरी किए जाने की तारीख से छह वर्ष तक चुनाव लडऩे के योग्य नहीं होंगे।
कांग्रेस ने मोदी सरकार पर साधा निशाना
इस बीच कांग्रेस ने आरोपी नेताओं को टिकट देने के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद मोदी सरकार पर निशाना साधा। कांग्रेस ने आरोप लगाया कि भाजपा ने कर्नाटक में जंगलों की कटाई के आरोपी को वन एवं वर्यावरण मंत्री बनाकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश की उसी दिन धज्जियां उड़ा दीं। पार्टी के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने ट्वीट कर कहा कि लो जी, मोदी जी ने तो आज ही आरोपित नेताओं को टिकट देने के कारण बताने के आदेशों की धज्जियां उड़ा दीं। सुप्रीम कोर्ट कहता है कि आरोपित नेताओं को टिकट ना दो। मोदी जी कहते हैं उन्हें विधायक नहीं, मंत्री बनाओ और वो भी उस विभाग का, जिसका कानून तोडऩे के लिए विधायक जी पर मुकदमा दर्ज हो।
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सुरजेवाला ने कर्नाटक में आनंद सिंह को वन एवं पर्यावरण मंत्री बनाए जाने का हवाला देते हुए कहा कि वे कहते थे कि न खाऊंगा, न खाने दूंगा, लेकिन जिस पर जंगल काटने और अवैध खनन के मुकदमे दर्ज हैं, उसे ही वन एवं पर्यावरण विभाग का मंत्री बनाऊंगा। पहले खाद्य आपूर्ति मंत्री बनाया, फिर 24 घंटे में ही वन एवं पर्यावरण मंत्री। बिल्ली को ही दूध की रखवाली सौंप दी। आखिर उच्चतम न्यायालय के आदेश की कौन परवाह करता है?