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SYL: केंद्र सरकार के पास अब एक ही विकल्प, नए सिरे से बनाए TRIBUNAL
पंजाब सरकार के पास एकमात्र विकल्प है कि नए सिरे से कोई ट्रिब्यूनल बने। उसमें पानी की मात्रा के बंटवारे के बजाय नहर में पानी की उपलब्धता का निष्पक्ष व ईमानदारी से मूल्यांकन हो। चूंकि अब केंद्र सरकार की जवाबदेही भी बेंच ने स्पष्ट कर दी है इसलिए केंद्र सरकार को तत्काल हस्तक्षेप करना होगा।
उमाकांत लखेड़ा
नई दिल्ली: एसवाईएल विवाद ने जिस तरह का बवाल खड़ा कर दिया है उसे देखते हुए अब केंद्र की मोदी सरकार के पास एकमात्र विकल्प बचा है। विकल्प है कि पुराने झगड़ों पर पर्दा डालकर पंजाब-हरियाणा के बीच जल विवाद का नए सिरे से मामला बनाकर ट्रिब्यूनल बनाने का माहौल बनाया जाए। कानूनी जानकारों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति को यह विवाद सुलझाने की जो राय दी है, उसके बाद केंद्र की जवाबदेही बढ़ गई है।
पंजाब को झटका
जाहिर है कि सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने हाल में राष्ट्रपति को जो सलाह दी है उसके दो ही मतलब निकलते हैं। एक, कि हरियाणा को पानी पहुंचाने के लिए पंजाब सरकार नहर निर्माण का काम जारी रहने दे, और दूसरा, कि केंद्र सरकार यह सुनिश्चित करे कि यह नहर तय वक्त में बनकर तैयार हो।
एसवाईएल विवाद पर सुप्रीम कोर्ट की ओर से दी गई राय को कानूनी जानकार अलग-अलग ढंग से परिभाषित कर रहे हैं। लंबे दौर से नहर विवाद पर पंजाब व हरियाणा के बीच चल रही रस्साकसी के बाद पंजाब सरकार पर अब यह कानूनी बाध्यता आ गई है कि उसकी तरफ से अब कुछ किए बिना काम नहीं चलने वाला। पंजाब को सबसे बड़ा झटका इस बात से भी लगा है कि ताजा फैसले में सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने नहर का निर्माण जारी रखने और हरियाणा पक्ष को सही ठहराने की बाबत सुप्रीम कोर्ट के पूर्व दो आदेशों को पलटने से इनकार कर दिया।
सलाह है, आदेश नहीं
बताते चलें, कि ये दोनों आदेश सुप्रीम कोर्ट की दो अलग-अलग बेंचों क्रमशः जस्टिस जीबी पटनायक व जस्टिस सुश्री रूमा पाल की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने दिए थे। हरियाणा अपने पक्ष में इन दोनों बेंचों के फैसलों को आधार बनाता रहा है। हालांकि कानूनी विशेषज्ञ मानते हैं कि अब नए हालात में पंजाब सरकार यह तर्क पेश कर सकती है कि सर्वोच्च अदालत की बेंच ने जो परामर्श राष्ट्रपति के जरिए केंद्र सरकार को दिया है,उसे मानने के लिए वह बाध्य नहीं है, क्योंकि बेंच ने राष्ट्रपति को सिर्फ सलाह दी है आदेश नहीं।
इसमें पेंच यह है कि हरियाणा के पक्ष में पूर्व में सुप्रीम कोर्ट की दोनों बेंचों के आदेश पंजाब सरकार के खिलाफ गए। आखिर में सुप्रीम कोर्ट की बेंच के 2003 के आदेश की बाध्यता निरस्त करने के लिए ही पंजाब सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। इसे कोर्ट ने 4 जून 2004 को खारिज कर दिया था। उसके बाद ही पंजाब सरकार ने राज्य विधानसभा में 12 जुलाई 2004 को हरियाणा के साथ 1981 में हुए पानी बंटवारे के एग्रीमेंट को निरस्त करने के लिए विधेयक पेश किया था, जो राज्यपाल के हस्ताक्षर न होने की वजह से कानून का रूप नहीं ले सका था।
आगे स्लाइड में पढ़िए क्यों पिछड़ा पंजाब ...
2002 की डिक्री की अहवेलना के बाद पंजाब कानूनी लड़ाई में पिछड़ता गया
पंजाब, हरियाणा व राजस्थान के बीच 31 दिसंबर 1981 में रावी-ब्यास के पानी के बंटवारे को लेकर समझौता हुआ था। इन राज्यों के बीच देशहित में यह तय हुआ था कि नदियों के पानी की उपलब्धता के हिसाब से बंटवारा करेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने 15 जनवरी 2002 को पंजाब सरकार को एसवाईल निर्माण जारी रखवाने की बाबत फैसला मानने का जो दो टूक आदेश दिया था, उस पर पंजाब सरकार ने कोई अमल नहीं किया। इस एवज में पंजाब सरकार ने 18 जनवरी 2002 को सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पिटिशन दाखिल की थी, जिसे कोर्ट ने 5 मार्च 2002 को खारिज कर दिया था। इसी क्रम में सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब सरकार की याचिका को खारिज करते हुए हरियाणा सरकार के उस आदेश पर स्टे दे दिया जो हरियाणा ने पंजाब विधानसभा में पारित विधेयक को राज्यपाल के पास भेजा था। सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब सरकार के रवैये को असंवैधानिक करार दिया।
आगे स्लाइड में पढ़िए SC के सीनियर एडवोकेट राजीव धवन का इंटरव्यू...
"सुप्रीम कोर्ट ने मांगी गई सलाह की वैधता में उलझकर फंसा दिया मामला"- राजीव धवन, सीनियर एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट
सवाल- एसवाईएल पर सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने जो सलाह दी उसे आप किस रूप में देखते हैं?
जवाब- मेरे विचार में सुप्रीम कोर्ट को इस विवाद को दो पड़ोसी राज्यों के बीच लंबे अरसे से चल रहे विवाद को सुलझाने की दिशा में व्यापक दृष्टिकोण से सोचना चाहिए था। मेरे विचार में सुप्रीम कोर्ट को इस केस में राष्ट्रपति की ओर से मांगी गई सलाह की वैधता पर नहीं जाना चाहिए था। बेंच का फोकस पंजाब विधानसभा द्वारा पारित विधेयक में उलझने की मेरिट पर जाने के बजाय इस बात पर ध्यान देना चाहिए था कि दोनों राज्यों के बीच जल विवाद को सुलझाने के लिए सही व व्यावहारिक रास्ता क्या हो।
सवाल- पंजाब सरकार देश की सर्वोच्च अदालत की सलाह से सहमत क्यों नहीं?
जवाब- क्योंकि पंजाब को लगता है कि उसके पक्ष को नए सिरे से समझने की कोशिश नहीं की गई जिससे उसके हितों को भारी नुकसान हुआ है। सुप्रीम कोर्ट चाहता तो सलाह देने के बजाय दूसरे विकल्प तलाशने का परामर्श भी दे सकता था। मुझे याद है कि बाबरी मसजिद विवाद में भी नब्बे के दशक में सुप्रीम कोर्ट से राष्ट्रपति ने राय मांगी थी। तब चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली बेंच ने इस आधार पर कोई एडवाइजरी देने से इनकार कर दिया था कि जब हमारी अपनी सलाह मानने को सरकार बाध्य नहीं है तो ऐसी सूरत में कोई सलाह देने का औचित्य नहीं है। जाहिर है कि एसवाईएल के मामले में भी हो यही रहा है कि पंजाब सरकार ने सर्वोच्च अदालत की सलाह को मानने से इनकार कर दिया है।
सवाल- आप भी तो सुप्रीम कोर्ट में पंजाब सरकार की पैरवी कर चुके हैं, आपका अनुभव क्या रहा?
जवाब- यह सही है कि मुझे पंजाब सरकार ने केस में पैरवी करने के लिए नियुक्त किया था लेकिन ऐन मौके पर मुझे सुनवाई से अलग कर दिया गया। मुझे इस बात का कतई मलाल नहीं है लेकिन कानूनी तौर पर आगे की जो भी रणनीति अपनाई गयी उसमें पंजाब सरकार अपने राज्य के हितों की रक्षा करने में पूरी तरह विफल रही। पंजाब की ओर से प्रयास बहुत हुए लेकिन असल में सही वक्त पर सही रणनीति अपनाने में गलतियां हुई हैं। बाकी बहुत सारी बातें हैं, जिन पर मैं कोई टिप्पणी नहीं करूंगा।
सवाल- पंजाब के पास नए सिरे से ट्रिब्यूनल बनाए जाने की बाबत क्या विकल्प बचे हैं?
जवाब- मेरा तो मानना है कि यही एकमात्र विकल्प है पंजाब सरकार के पास कि नए सिरे से कोई ट्रिब्यूनल बने। उसमें पानी की मात्रा के बंटवारे के बारे में पुरानी लकीरों को पीटने के बजाय नहर में पानी की उपलब्धता का निष्पक्ष ढंग व ईमानदारी से मूल्यांकन हो। चूंकि अब केंद्र सरकार की जवाबदेही भी बेंच ने स्पष्ट कर दी है इसलिए केंद्र सरकार को तत्काल हस्तक्षेप करना होगा।
सवाल- मौजूदा दौर में नहर के निर्माण और पानी के बंटवारे पर पंजाब व हरियाणा में जो सियासी उबाल आया है उस पर क्या कहेंगे?
जवाब- पंजाब हरियाणा में जो उथल-पुथल मची है, उसे शांत किया जाना बहुत जरूरी है। मुझे याद है कि 1990 में एसवाईएल के सुपरिटेंडिंग इंजीनियर की हत्या कर दी गई थी। यह एक दुखद हादसा था। ऐसे मामलों में होता यह है कि अपने छोटे राजनीतिक स्वार्थों के लिए लोगों को भड़काने के लिए समाज विरोधी तत्व भी सक्रिय कर दिए जाते हैं। पंजाब में आतंकवाद के दौर का जो इतिहास रहा है उसे देखते हुए दोबारा आतंकवाद और खून-खराबा रोकने को केंद्र सरकार को तत्काल कदम उठाने होंगे, ताकि सुलह-शांति से बीच का रास्ता निकल सके।
(फोटो साभार:न्यूजडी)