महामारी का रूप ले लिया है स्वाइन फ्लू और डेंगू, मुश्किल में जान

raghvendra
Published on: 6 Oct 2017 1:37 PM IST
महामारी का रूप ले लिया है स्वाइन फ्लू और डेंगू, मुश्किल में जान
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राम शिरोमणि शुक्ल की रिपोर्ट

रायपुर: छत्तीसगढ़ में जो क्षेत्र सर्वाधिक उपेक्षित माने जाते हैं, उनमें एक क्षेत्र चिकित्सा का है। राज्य में हैजे से मौतें होती हैं। दस से ज्यादा वर्षों तक किडनी की बीमारी से लोग मरते रहे हैं। लोग ‘सिकलसेल’ के शिकार होते रहते हैं। मानसिक बीमारियां बढ़ती रहती हैं।

आक्सीजन न मिलने के कारण बच्चों की मौत हो जाती है। नसबंदी में महिलाओं की जान चली जाती है। मोतियाबिंद के आपरेशन में बूढ़े अंधे हो जाया करते हैं। बच्चे कुपोषण के शिकार होते रहते हैं। इसके अलावा भी बहुत कुछ होता रहता है, लेकिन स्वास्थ्य विभाग को लगता ही नहीं कोई फिक्र है। सरकार में भी किसी तरह की चिंता नहीं नजर आती।

ऐसा नहीं है कि सरकार कुछ करती नहीं। स्वास्थ्य और चिकित्सा के क्षेत्र में सरकार की ओर से अनेक योजनाएं संचालित करने से लेकर कई सुविधाएं दिए जाने के दावे किए जाते हैं। सरकार स्मार्ट कार्ड के जरिये बीमा सुविधा भी प्रदान करती है। लेकिन उसका कितना लाभ किसको मिलता है, यह अलग से देखने की चीज है। फिलहाल आजकल पूरा राज्य स्वाइन फ्लू और डेंगू व मलेरिया की चपेट में है। लोगों की मौत हो रही है।

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अस्पतालों में मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है। स्वाइन फ्लू से भारतीय वन सेवा के अफसर आशुतोष मिश्रा की दिल्ली के अपोलो अस्पताल में उपचार के दौरान मौत हो गई। इससे पहले दुर्ग में एक निजी अस्पताल में भर्ती भिलाई के चिकित्सक की मौत हो गई थी। एक सप्ताह में भिलाई में स्वाइन फ्लू से एक और युवक की मौत के बाद संख्या छह से ज्यादा हो चुकी है।

दवाओं और वैक्सीन तक की कमी

अस्पतालों में दवाओं और वैक्सीन तक की कमी है। बीमारियों का प्रकोप कम होने के बजाय बढ़ता ही जा रहा है। स्वाइन फ्लू वायरस इस सीजन में 15 से अधिक लोगों की जान ले चुका है। सरकारी हो या निजी अस्पताल, सब जगह पीडि़तों की भरमार है। सरकारी अस्पतालों का हाल यह है कि वहां स्वाइन फ्लू की दवा गायब है।

सरकारी स्वास्थ केंद्रों में दवा सप्लाई करने वाली एजेंसी छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेस कॉरपोरेशन (सीजीएमएससी) के वेयर हाउस में भी दवाइयां और वैक्सीन नहीं हैं। पता चला है कि बीते एक सप्ताह से ज्यादा समय से वैक्सीन खत्म हैं। दवा उससे भी पहले से ही खत्म थी। स्वास्थ्य विभाग ने अब जा कर दवा सप्लाई के लिये फिर से टेंडर जारी किया है।

राजधानी रायपुर का हाल यह है कि अंबेडकर अस्पताल से अब तक 262 मरीजों का सैंपल जांच के लिए शासकीय लैब जगदलपुर भेजा गया है। स्वाइन फ्लू के संदिग्ध माने जाने वाले 99 मरीज पॉजटिव पाए गए हैं। अंबेडकर अस्पताल में ही स्वाइन फ्लू से पीडि़त सात लोगों की मौत हो चुकी है।

विशेषज्ञों के अनुसार आने वाले दिनों में तापमान में गिरावट और रात ठंड बढऩे से स्वाइन फ्लू के वायरस और ज्यादा ताकतवर हो सकते हैं। अब भी स्वाइन फ्लू के नए और संदिग्ध मरीज लगातार सामने आ रहे हैं।

वैक्सीन का उत्पादन नहीं कर पा रही कंपनी

छत्तीसगढ़ के लिए स्वाइन फ्लू वैक्सीन की खरीद मुंबई की एक कंपनी से की जाती है। इस कंपनी के पास वैक्सीन का फिलहाल इतना आर्डर है कि वह डिमांड के हिसाब से उसका उत्पादन नहीं कर पा रही है। हैदराबाद में भी एक कंपनी है जो बड़े स्तर पर वैक्सीन का उत्पादन करती है पर वहां भी बड़े संख्या में आर्डर है।

यह ऐसी दवा नहीं है कि जिसकी डिमांड हमेशा हो और उसकी बड़ी मात्रा में नियमित उत्पादन किया जाए। डिमांड के हिसाब से दवा उत्पादन के लिए कंपनियों का सेटअप भी छोटा है।

पहली बार ऐसा प्रकोप

छत्तीसगढ़ में पहली बार स्वाइन फ्लू के मरीजों की संख्या 400 से पार हो गई है। जनवरी से अब तक इस बीमारी से 100 से ज्यादा लोगों की मृत्यु हुई है। इसकी वजह तलाश रहे प्रदेश के विशेषज्ञ डाक्टर पुणे की वायरोललॉजी लैब से इस खुलासे से चौंक गए हैं कि यहां स्वाइन फ्लू के वायरस एच1एन1 में म्यूटेशन नजर आने लगा है। निजी अस्पतालों में हर दो-तीन दिन बाद किसी न किसी की मृत्यु की खबरें आ रही हैं।

डाक्टरों के मुताबिक, स्वाइन फ्लू पहली बार छत्तीसगढ़ में इतनी तेजी से फैला है। मार्च अंत से जुलाई तक, जब रायपुर समेत प्रदेशभर में दिन का औसत तापमान 40 डिग्री या ऊपर रहता है, उस बक्त भी इस फ्लू के पीडि़त अस्पताल पहुंचते रहे हैं। अब अक्टूबर तक स्वाइन फ्लू का प्रकोप घटने के बजाय बढ़ता ही जा रहा है। सबसे ज्यादा मौत रायपुर व दुर्ग जिले में 12-12 लोगों की हुई है।

बालोद में पांच, बिलासपुर में चार लोगों की मौत हुई है। अब तक सरकारी व निजी अस्पतालों से 900 से ज्यादा सैंपल भेजे गए हैं। इनमें 400 लोगों में पॉजिटव मरीजों का आंकड़ा ही 250 है। जिन लोगों की मौत हुई है, उनमें महिलाएं व बुजुर्ग दोनों है। पांच से ज्यादा गर्भवती महिलाएं थीं। विशेषज्ञों के मुताबिक, तापमान की कमी की वजह से स्वाइन फ्लू का वायरस एच-1 एन-1 बच्चों व बुजुर्गों को बहुत तेजी से प्रभावित करता है।

पिछले दो वर्षों से 42 डिग्री सेल्सियस तापमान में भी स्वाइन फ्लू से पीडि़त होने के मामले आए हैं। सामान्य तौर पर मौसम में परिवर्तन के बाद इस तरह के मरीज अस्पतालों में पहुंचते हैं। रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने से 4 से 5 दिन में स्वाइन फ्लू के वायरस का लक्षण देखने को मिलता है।

इसके अलावा, राज्य में डेंगू और मलेरिया का खतरा भी बढ़ता जा रहा है। बीते माह राज्य में डेंगू और मलेरिया के 1600 से अधिक मरीज मिलने की पुष्टि स्वास्थ्य विभाग ने की है। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों का कहना है कि सितंबर में मुख्यमंत्री स्वास्थ बीमा योजना के अंतर्गत डेंगू के 21 मरीजों का इलाज कराया गया।

इसमें सर्वाधिक रायगढ़ जिले के थे जहां एक माह में डेंगू के 17 मरीज सामने आए। बिलासपुर और कोरिया जिले से 1-1 और बस्तर से दो लोगों में डेंगू पाया गया। राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत डेंगू के 16 मरीज और मलेरिया के 1641 मरीजों का उपचार किया गया है। योजना के तहत बीते दो महीने में मलेरिया के 3254 मरीज सामने आए हैं। बलरामपुर, कांकेर, बीजपुर, नारायणपुर, राजनांदगांव, धमतरी, जशपुर, कोरिया और सरगुजा में मलेरिया पीड़ित सर्वाधिक मरीज मिले हैं।

डॉक्टर भी नहीं

समस्या सिर्फ दवाओं और वैक्सीन तक ही सीमित नहीं है। राज्य में चिकित्सकों और चिकित्सा उपकरणों की भी कभी है। इसके बाद अस्पतालों तक मरीजों की पहुंच की भी समस्या है। आम तौर पर ऐसा पाया जाता है कि लोग आसानी से सामुदायिक चिकित्सा केंद्र तक नहीं पहुंच पाते। किसी तरह वहां पहुंच भी गए, तो पता चलता है कि या तो चिकित्सक नहीं हैं या विशेषज्ञ चिकित्सक नहीं हैं।

ऐसे में उनके सामने राजधानी अथवा किसी अन्य अस्पताल में जाने को मजबूर होना पड़ता है। आर्थिक रूप से कमजोर मरीजों के लिए बड़े अथवा निजी अस्पतालों में इलाज करा पाना भी संभव नहीं होता। प्रदेश के 27 जिला अस्पतालों में से 16 विशेषज्ञ डॉक्टर नहीं हैं। दूसरे जिलों के मरीजों को अंबेडकर अस्पताल समेत राजधानी के दूसरे अस्पतालों की दौड़ लगानी पड़ती है।

गायनकोलॉजिस्ट, सर्जन, आर्थोपीडिक सर्जन व नेत्र रोग विशेषज्ञों के लिए भी मरीजों को रायपुर आना पड़ता है। जिला अस्पतालों में विशेषज्ञ डॉक्टरों के पद पिछले चार-पांच साल से खाली हैं। चार साल पहले गठित नौ जिला मुख्यालयों में स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (सीएचसी) को अपग्रेड कर जिला अस्पताल का दर्जा दिया गया। लेकिन विशेषज्ञ डॉक्टर नहीं होने के कारण मरीजों को इसका फायदा नहीं मिला।

बालोद, बेमेतरा, मुंगेली, गरियाबंद, बलौदाबाजार, बीजापुर, नारायणपुर, सुकमा, कोंडागांव जैसे जिला अस्पतालों में न गायनकोलॉजिस्ट हैं और नही नेत्र तथा ईएनटी सर्जन। दंतेवाड़ा के जिला अस्पताल में 12 साल बाद सर्जन की नियुक्ति हुई है। यहां ऑपरेशन थियेटर था लेकिन सर्जन नहीं थे।

अमेरिका की है देन

वर्ष 2009 में अमेरिका से स्वाइन फ्लू का एच1एन1 वायरस भारत आया था। वर्ष 2009 में स्वाइन फ्लू का पहला मामला मेक्सिको में देखा गया था। इसके बाद यह बीमारी कई देशों में फैल गई। 11 मई 2009 को हैदराबाद के एयरपोर्ट पर एक यात्री की स्क्रीनिंग में एच1एन1 की पुष्टि हुई थी। वह यात्री अमेरिका से हैदराबाद आया था। इसके बाद यह बीमारी महाराष्ट्र, गुजरात, दिल्ली सहित देश के कई हिस्सों में फैल गई।

उसी साल दिल्ली में डेढ़ सौ लोगों की इससे मौत हो गई थी। 2010 में इससे 1763 लोगों की मौत हो गई थी। इसके बाद वर्ष 2011 में इसका प्रकोप कम रहा। वर्ष 201५ से यह वायरस फिर तेजी से बढ़ा है। माना जाता है कि एच1एन1 वायरस से दुनिया भर में पहली बार महामारी वर्ष 1918 में फैली थी।

देश में महामारी बना स्वाइन फ्लू

वैसे देश भर में स्वाइन फ्लू महामारी का रूप लेता जा रहा है और केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार देश भर में इस साल अगस्त तक 25 हजार से ज्यादा मामले आये जिसमें महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा 4456 मामले दर्ज किये गए। नौ साल पहले अचानक देश में आया यह वायरस अब जिंदगी का हिस्सा बन चुका है। दो-तीन दिन का सर्दी-जुकाम मरीज को वेंटीलेटर तक लाकर छोड़ रहा है।

इस साल ही के एक हजार से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि अब स्वाइन फ्लू स्थाई हो गया है। वायरस का आकार-प्रकार बदलने इसका असर साल-दर-साल कम ज्यादा हो सकता है। इस बीमारी से केवल कोई दवा खाने या टीका लगवाने से नहीं बचा जा सकता।

जरूरी है कि इसका संक्रमण रोका जाए। इस बीमारी में दी जाने वाली एंटी वायरल दवा लक्षण के 48 घंटे में दी जाए, तब असर दिखाती है, लेकिन ज्यादातर मामलों में मरीज ही पांच से छह दिन बाद अस्पताल पहुंच रहे हैं।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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