TRENDING TAGS :

Aaj Ka Rashifal

तमिलनाडु में सीटों के बंटवारे के बाद राजनीतिक दलों की क्या है हैसियत, कौन बना बड़ा भाई

तमिलनाडु की जंग करुणानिधि के उत्तराधिकारियों और जयललिता की विरासत पर दावा करने वाले लोगों के बीच है। कांग्रेस और भाजपा यहां की राजनीति छोटे भाई की हैसियत रखते हैं।

SK Gautam
Published on: 10 March 2021 12:26 PM IST
तमिलनाडु में सीटों के बंटवारे के बाद राजनीतिक दलों की क्या है हैसियत, कौन बना बड़ा भाई
X
तमिलनाडु में सीटों के बंटवारे के बाद राजनीतिक दलों की क्या है हैसियत, कौन बना बड़ा भाई

रामकृष्ण वाजपेयी

तमिलनाडु में 2021 के कुरुक्षेत्र के चुनावी समर के लिए सेनाएं सज चुकी हैं। कौन किसके साथ है और कहां खड़ा है ये स्पष्ट हो चुका है। चूंकि इस दक्षिण राज्य में एक ही पार्टी से निकले दो दलों का वर्चस्व है इसलिए राष्ट्रीय दलों की स्थिति यहां पिछलग्गू बनने से ज्यादा कुछ नहीं हैं। बात चाहे भारतीय जनता पार्टी की हो या कांग्रेस की दोनो ही दल यहां की राजनीति में पैठ बनाने के लिए इन दोनों क्षेत्रीय दलों के रहमोकरम पर हैं।

भाजपा व कांग्रेस यहां क्षेत्रीय दलों की सरपरस्ती में छोटे भाई की भूमिका में

गठबंधन राजनीति के इस दौर में राष्ट्रीय स्तर पर एक दूसरे के विरोधी भाजपा व कांग्रेस यहां भी अपने अपने क्षेत्रीय दलों की सरपरस्ती में छोटे भाई की भूमिका में हैं। काफी रोने झींकने और खींचतान के बाद द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम ने अपने सहयोगी घटक कांग्रेस को 25 सीटों पर चुनाव लड़ने की इजाजत वह भी कांग्रेस नेता सोनिया गांधी के हस्तक्षेप के बाद दी है जबकि द्रमुक के विरोधी घटक सत्तारूढ़ अन्नाद्रमुक के साथ खड़ी भाजपा की स्थिति तो और खराब है सीटों के बंटवारे में उसके हिस्से सिर्फ बीस सीटें आई हैं।

congress party

इस दक्षिणी राज्य में 1980 के दशक से लगातार द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम या आल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम की सरकारें रही हैं। हर पांच साल में सत्ता परिवर्तन होता रहा है। राज्य में करुणानिधि और जयललिता जैसे करिश्माई नेताओं की अनुपस्थिति में ये पहला चुनाव है। इसलिए यह कहना मुश्किल है स्टालिन या पलानी स्वामी में किसका जादू मतदाताओं के सिर चढ़कर बोलेगा।

ये भी देखें: तीरथ सिंह रावत कौन हैं, जानिए इनका राजनीतिक सफर, बने उत्तराखंड के नए सीएम

तमिलनाडु की जंग करुणानिधि के उत्तराधिकारियों और जयललिता की विरासत पर दावा करने वाले लोगों के बीच है। कांग्रेस और भाजपा यहां की राजनीति छोटे भाई की हैसियत रखते हैं। वर्चस्व केवल द्रमुक और अन्नाद्रमुक का है। देखते हैं इतिहास की कसौटी पर क्या कहती है राजनीति।

भारतीय जनता पार्टी इस बार पूरा जोर लगाएगी

इस दक्षिणी राज्य की राजनीति में यहाँ के क्षेत्रीय दलों का प्रभुत्व तोड़ने के लिए भारतीय जनता पार्टी इस बार पूरा जोर लगाए है हालांकि 2016 के चुनाव में वह जीरो पर आउट हुई थी लेकिन पिछले चुनाव में आठ सीटें हासिल करने वाली कांग्रेस यहां का तीसरा प्रमुख दल है। बाकी अन्य छोटे दल यहाँ की राजनीति की दो चतुरंगिणी सेनाओं की शोभा मात्र हैं।

bjp

अंग्रेजों के शासन काल में यह इलाका मद्रास प्रेसिडेंसी के नाम से जाना जाता था। उस समय से लेकर देश की आजादी के बाद तक काँग्रेस यहाँ की प्रमुख राजनीतिक पार्टी रही। साठ के दशक में हिंदी-विरोधी आन्दोलनों में द्रविड़ दलों को स्थानीय भाषा और पहनावे की पहचान के आधार पर महत्व मिला।

1967 में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार डीएमके द्वारा बनाई गयी। यह साल तमिल राजनीति का टर्निंग पाइंट बना क्योंकि इसके बाद से यहाँ की राजनीति में द्रविड़ दलों का प्रभुत्व कायम हो गया।

ये भी देखें: BJP के स्टार प्रचारकों के नाम का एलान, बंगाल में उतरेंगे ये दिग्गज, यहां देंखें लिस्ट

विचारधारा के स्तर पर द्रविड़ राजनीतिक दलों में कम्युनिस्ट एवं समाजवादी विचारों की स्वीकारोक्ति के चलते दक्षिणपंथी पार्टियों को यहां जगह नहीं मिल सकी। अन्य छोटे दलों में भारतीय रिपब्लिकन पार्टी, मार्क्सवादी पार्टी, सर्वहारा पीपुल्स पार्टी, पुनर्जागरण द्रमुक, वीसीके, राष्ट्रीय प्रगतिशील द्रविड़ कषगम, भारतीय जनता पार्टी, मानवतावादी पीपुल्स पार्टी तमिल नवजागरण निगम, नए राज्य पार्टी, अखिल भारतीय समानता पीपुल्स पार्टी इत्यादि नाम गिनाये जा सकते हैं। लेकिन इनका कोई वजूद नहीं है।

Karunanidhi and Jayalalithaa

करुणानिधि यहाँ की राजनीति में एक प्रमुख व्यक्तित्व रहे हैं

डीवेन रामास्वामी, अन्नादुरई, एमजीआर और जयललिता तमिलनाडु की राजनीति में महत्वपूर्ण लोग रहे हैं। करुणानिधि यहाँ की राजनीति में एक प्रमुख व्यक्तित्व के रूप में रहे। 2016 के विधानसभा चुनाव में कुल 232 सीटों में इंडियन नेशनल कांग्रेस को 8, ऑल इंडिया अन्‍ना द्रविड़ मुन्‍नेत्र कड़गम(अन्नाद्रमुक) को 134, द्रविड़ मुनेत्र कड़गम(डीएमके) को 89 और इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग को मात्र एक सीट मिली थी।

2011 के विधानसभा चुनाव में अन्नाद्रमुक गठबंधन को 203 सीटें मिली थीं तो अन्नाद्रमुक की इसमें 150 सीटों की भागीदारी थी। डीएमडीके को 29, माकपा को 10, भाकपा को नौ, एमएनएमके को दो, पीटी को दो और एआईएफबी को एक सीट मिली थी। जबकि डीएमके गठबंधन को 31, डीएमके को 23, कांग्रेस को पांच, पीएमके को तीन सीटें मिली थीं।

2011 और 2016 में भाजपा शून्य पर आउट हुई थी। 2011 में 2.2 प्रतिशत वोट शेयरिंग वाली भाजपा को 2016 में मात्र 2.86 फीसद वोट मिले थे। हालांकि उसके वोटों में .66 फीसद की बढ़ोत्तरी हुई थी। लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में राजग का वोट प्रतिशत बढ़कर 18.5 प्रतिशत हो गया और भाजपा का 5.5 प्रतिशत हो गया।

AIADMK

ये भी देखें: थाईलैंड के PM को आया गुस्सा, झल्लाकर किया अजीब बर्ताव, वीडियो वायरल

भाजपा की राह में अन्नाद्रमुक

भाजपा 2019 के चुनाव में अन्नाद्रमुक के हारने के बावजूद अपनी बढ़त को लेकर आश्वस्त है लेकिन अन्नाद्रमुक उसे खुलकर खेलने का मौका नहीं दे रही बड़े भाई की भूमिका में वह उसे सीमित सीटें ही दे रहा है।

ऐसे में भाजपा के लिए मौजूदा चुनाव तमिल राजनीति में पैठ बनाने के अवसर के अलावा अधिक कुछ नहीं है। लेकिन अन्नाद्रमुक जिसका 2011 से सत्ता पर काबिज है उसके लिए अपनी सत्ता बचाए रखना एक बड़ी चुनौती है। शायद यही एक वजह है कि जयललिता की सहेली शशिकला ने फिलहाल सक्रिय न हो कर चुनाव के नतीजे देखने के बाद अपना अगला कदम तय करने का फैसला किया है।

दोस्तों देश दुनिया की और को तेजी से जानने के लिए बनें रहें न्यूजट्रैक के साथ। हमें पर फॉलों करने के लिए @newstrack और ट्विटर पर फॉलो करने के लिए @newstrackmedia पर क्लिक करें।



\
SK Gautam

SK Gautam

Next Story