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Tansen Biography: एक पेड़ ऐसा जिसकी पत्तियां खाने से होती है सुरीली आवाज
Tansen Biography: पीढ़ियों से इसी मान्यता के चलते संगीत साधक और संगीत प्रेमी बरसों बरस से इस अद्भुत, जादुई पेड़ की पत्तियों को खाकर आपनी आवाज़ में सुर और मिठास घोलते चले आ रहें हैं।
Tansen Biography: यह सुनकर आप को बेहद अचरज होगा। लेकिन यह कोई औषधि नहीं बल्कि एक बेहद पुरानी मान्यता चली आ रही है। पीढ़ियों से इसी मान्यता के चलते संगीत साधक और संगीत प्रेमी बरसों बरस से इस अद्भुत, जादुई पेड़ की पत्तियों को खाकर आपनी आवाज़ में सुर और मिठास घोलते चले आ रहें हैं। इस अद्भुत पेड़ में यूं ही संगीत का जादुई असर नज़र नहीं आता। बल्कि इसके पीछे एक बहुत बड़ा राज छिपा हुआ है। असल में हिंदुस्तान के संगीत सम्राट एवं अकबर के दरबार में नौरत्नों में शुमार महान शास्त्रीय संगीत कार मियां तानसेन की कब्र के पास लगा इमली का पेड़ है। आज भी संगीत सीखने वाले लोग उनके क़ब्र पर जाते हैं। उस पेड़ के पत्ते जरूर खाते हैं। साथ ही प्रसाद के तौर पर अपने साथ लेकर भी जाते हैं। इस मान्यता के चलते कि पत्ते खाने से लोगों की आवाज़ सुरीली हो जाती है।
संगीत सम्राट मियां तानसेन की कब्र पर है यह पेड़
सभी संगीतकारों में सबसे महान, तानसेन की मृत्यु 1589 में हुई थी। तानसेन को ग्वालियर में उनके सूफी गुरु शेख मुहम्मद गौस के मकबरे के परिसर में दफनाया गया है । जहां उन्हीं के करीब अपनी घनी छाया के साथ साथ सुर लहरियां बिखराता इमली का पेड़ संगीत प्रेमियों पर जमकर अपना आशीर्वाद बरसा रहा है। कहावत यह भी है कि इसी इमली के पेड़ के नीचे बैठकर तानसेन रोजाना रियाज किया करते थे। भारतीय शास्त्रीय संगीत के जाने-माने कलाकार पंडित जसराज जब यहां आए तो इस पेड़ की पत्तियों को खाने से खुद को रोक नहीं पाए। जब वो जाने लगे तो कुछ पत्तियां अपने साथ भी ले गए।
रागिनियाँ साक्षात् प्रकट हो जाती थी
इनके संगीत से प्रभावित होकर अकबर ने इन्हें अपने नवरत्नों में स्थान दिया था। तानसेन के विषय में अनेक किंवदन्तियाँ प्रचलित हैं। कहा जाता है की इनके गायन के समय राग – रागिनियाँ साक्षात् प्रकट हो जाती थीं। एक बार बादशाह अकबर ने तानसेन से 'दीपक राग' गाने का हठ किया। निश्चित समय पर इन्होने दरबार में दीपक राग गाना शुरू किया। ज्यो – ज्यो आलाप बढ़ने लगा । गायक और श्रोता पसीने से तर होने लगे। राग दीपक जैसे जैसे परवान चढ़ता जा रहा था दरबार में रखे दीपक एक एक कर स्वयं जल उठे और चारो ओर अग्नि की लपटें उठने लगीं थी । उसी समय राग के ताप से तानसेन का शरीर भी अग्नि की ज्वाला से दहक उठा। ऐसी हालत में तानसेन वडनगर पहुंचे, वहाँ भक्त कवि नरसिंह मेहता की बेटी शर्मिष्ठा ने मल्हार राग गाकर उनके जीवन की रक्षा की। इस घटना के कई महीनों बाद तानसेन का शरीर स्वस्थ हुआ। शरीर के अंदर ज्वर बैठ गया था। आखिरकार वह ज्वर फिर उभर आया, और फ़रवरी, 1586 में इसी ज्वर ने उनकी जान ले ली। इनके बारे में मान्यता है कि जब ये गाते थे तो बारिश होने लगती थी।एक बार ये अपने गाने से एक शेर को काबू में कर लिए थे। इनके संगीत में ईश्वर का वास था । अर्थात सरस्वती की अपार कृपा थी । इस वजह से इनके संगीत से पत्थर पिघल जाते थे।
हज़रत मोहम्मद गौस की दुआ से तानसेन पैदा हुए
तानसेन के पिता मकरंद पांडे गौड़ ब्राह्मण थे। उन्हें ग्वालियर घराने के हज़रत मोहम्मद गौस ग्वालियरी से बड़ी श्रद्धा थी। मकरंद पांडे को कोई संतान नहीं थी। इसलिए एक बार उन्होंने हज़रत मोहम्मद गौस से विनती की कि वे ख़ुदा से दुआ करें कि उन्हें संतान प्रदान करे।" हज़रत मोहम्मद गौस की दुआ से तानसेन पैदा हुए। जब तानसेन पाँच साल के हुए तो मकरंद पांडे उन्हें लेकर हज़रत मोहम्मद गौस की शरण में पहुँचे। उनसे विनती की कि वे दुआ करें कि तानसेन संगीत में नाम पैदा करे। हज़रत मोहम्मद गौस ने उस वक़्त उसे आशीर्वाद दिया । तानसेन के पिता ने तानसेन को उन्हें ही सौप दिया । कहा के ये अब आप ही के चरणों में रहा करेगा।"
हज़रत मोहम्मद गौस ने अपने बेटों की तरह तानसेन का लालन-पालन शुरू किया और ग्वालियर के नामी-गिरामी संगीतज्ञों की देख-रेख में उन्हें संगीत की शिक्षा दिलवायी। तानसेन ने कुछ समय के लिए सुल्तान आदिल शाह के सामने भी पालथी जमायी। उसके बाद दक्षिण जाकर नायक बख़्श की बेटी से राग की शिक्षा ली।
उस्ताद बख़्शू का संसर्ग न मिलने का उन्हें हमेशा था मलाल
तानसेन को उस्ताद बख़्शू का संसर्ग न मिलने का उन्हें हमेशा मलाल था। बख़्शू की बेटी अपने पति के साथ दक्षिण में थीं। बख़्शू ने संगीत की सारी दौलत यानी जानकारी उन्हें प्रदान की थी। इसलिए तानसेन ने उनकी सेवा में उपस्थित होकर बख़्शू के संगीत के बिन्दुओं का ज्ञान प्राप्त करने का संकल्प कर लिया और अपने पीर से इजाज़त लेकर बख़्शू की संगीत की बारीकियों को सीखने के लिए निकल पड़े। बख़्शू की बेटी को तानसेन ने अपने संगीत से परिचित कराया। लेकिन बख़्शू की लड़की ने कोई भाव नहीं दिया और कह दिया कि बेटा अभी कुछ और सीखो। तानसेन ख़ाली हाथ लौट आए।अपने पीर से सारा हाल कहा। उन्होंने तानसेन की ढांढ़स बंधाया और कहा कि घबराओ नहीं। वह एक दिन तुम्हारी कला की मुरीद होंगी।
जब ध्रुपद के विशेषज्ञ माने जाने वाले नायब बख़्शू सुलतान ने ख्वाब में दी संगीत की तामील
एक रात इसी उधेड़बुन और मायूसी में तानसेन सो गए। सपना देखा कि एक वयोवृद्ध आदमी उनको गा गाकर ध्रुपद गायन की तकनीकियों के बारे में कुछ बता रहा है। यहां तक कि कई उच्च स्तरीय ध्रुपदें भी इसी दौरान में याद करवा दीं। तानसेन अलसुबह जब उठे तो महसूस किया कि ये ध्रुपदों की सारी बारीकियां तो उनके गले में अपना स्थान बना चुकीं थीं और ख्वाब में बताए हुए सारे बिन्दु उनके मन-मस्तिष्क में पूरी तरह जज्ब हो चुके थे। यह अनोखा आश्चर्य देखकर उनकी ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा। अपने पीर से ख़्वाब का हाल बयान किया। पीर ने फ़रमाया कि उन बातों को न भूलना। बख़्शू ने तुम्हें कला का तोहफा दिया है। कुछ जगहों पर यह उल्लेख भी मिलता है कि तानसेन ने बाबा हरिदास से भी राग विद्या की शिक्षा प्राप्त की थी।
पीर और मुरीद यानी गुरु और शिष्य का यह रिश्ता अटूट है । तानसेन आज भी हज़रत मोहम्मद ग़ौस की ख़ानक़ाह के अहाते में दफ़्न हैं। मौत के बाद भी आज इस अटूट रिश्ते की डोर में बंधे पास- पास दफ्न होकर भी साथ हैं। तानसेन को आजीवन हज़रत मोहम्मद ग़ौस से अत्यधिक श्रद्धा रही, वे उनसे ही प्रभावित होकर ब्राह्मण से मुसलमान हुए थे। बाद में उनके मुरीदों की फेहरिस्त में शामिल हो गए थे। पीर और मुरीद यानी गुरु और शिष्य का यह रिश्ता अटूट जो कि आज भी मिसाल के तौर पर संगीत जगत में सुविख्यात है। इनकी मज़ार भी अपने गुरु के मज़ार की तरह सब की श्रद्धा का केन्द्र है। देश दुनियां के नामी गिरामी संगीत साधक वहाँ गाना अपने लिय गर्व की बात समझते हैं।
तानसेन अवार्ड :
हर साल दिसम्बर में तानसेन की कब्र के पास ही राष्ट्रीय संगीत समारोह 'तानसेन समारोह' आयोजित किया जाता है। जिसमे हिन्दुस्तानी क्लासिकल म्यूजिक का तानसेन सम्मान और तानसेन अवार्ड दिया जाता है। उनके द्वारा निर्मित राग सदा उनकी बहुमुखी प्रतिभा के गौरवमय इतिहास का स्मरण कराते रहेंगे। भारतीय संगीत के अखिल भारतीय गायकों की श्रेणी में संगीत सम्राट तानसेन का नाम सदैव अमर रहेंगा।