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Teachers' Day 2023 History: देश में पहली बार कब मनाया गया शिक्षक दिवस, जानिए क्यों और कैसे हुई इसकी शुरुआत

Teachers' Day 2023 History: शिक्षक में इतनी बड़ी ताकत होती है कि वह जीवन से निराश हो चुके व्यक्ति में भी नए उत्साह का संचार करके उसे बुलंदी पर पहुंचने की क्षमता रखता है। यही कारण है कि शिक्षक दिवस के दिन छात्र अपने शिक्षक या गुरु के प्रति आभार व्यक्त करना नहीं भूलते।

Anshuman Tiwari
Published on: 5 Sept 2023 7:35 AM IST
Teachers Day 2023 History: देश में पहली बार कब मनाया गया शिक्षक दिवस, जानिए क्यों और कैसे हुई इसकी शुरुआत
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Teachers' Day 2023 History (photo: social media )

Teachers' Day 2023 History: देश के शिक्षा जगत के लिए 5 सितंबर की तारीख काफी महत्वपूर्ण मानी जाती है क्योंकि इसी दिन हर साल शिक्षक दिवस मनाया जाता है। किसी भी छात्र को जीवन में नई दिशा देने में सबसे बड़ी भूमिका गुरु या शिक्षक की ही होती है। शिक्षक ही किसी भी व्यक्ति को सफलता के शिखर पर ले जाता है। शिक्षक में इतनी बड़ी ताकत होती है कि वह जीवन से निराश हो चुके व्यक्ति में भी नए उत्साह का संचार करके उसे बुलंदी पर पहुंचने की क्षमता रखता है। यही कारण है कि शिक्षक दिवस के दिन छात्र अपने शिक्षक या गुरु के प्रति आभार व्यक्त करना नहीं भूलते।

देश के पूर्व राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिवस को पूरे देश में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। डॉ राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर को हुआ था। राधाकृष्णन को महान शिक्षक माना जाता था और उन्होंने अपनी जिंदगी के करीब 40 वर्ष शिक्षक के रूप में बिताते हुए छात्रों को नई दिशा दिखाने का काम किया था। यही कारण कि उनके जन्मदिवस को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। ऐसे में यह जानना भी दिलचस्प है कि आखिरकार शिक्षक दिवस मनाने की शुरुआत कब और कैसे हुई।

शिक्षक से देश के राष्ट्रपति तक का सफर

डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने शिक्षक से देश के राष्ट्रपति पद तक का सफर तय किया था। उनका जन्म 5 सितंबर 1888 को हुआ था। वे स्वतंत्रता के बाद भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति थे। उन्होंने अपना पूर्ववर्ती राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद की गौरवशाली परंपरा को आगे बढ़ने का काम का किया। उन्होंने 13 मई 1962 से 13 मई 1967 तक देश के राष्ट्रपति पद की कमान संभाली। डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन भारतीय संस्कृति के ज्ञानी, एक महान् शिक्षाविद, महान् दार्शनिक होने के साथ ही महान वक्ता भी थे।

उनका व्यक्तित्व दूसरों के लिए काफी प्रेरणादायी था। उन्हें अपने विद्यार्थियों से काफी प्यार रहता था और उन्होंने शिक्षक के रूप में 40 साल बिताए थे। उन्होंने अपने भाषणों, लेखों और पुस्तकों के जरिए पूरी दुनिया को भारतीय दर्शनशास्त्र के गूढ़ रहस्यों से अवगत कराया। उन्हें वेदों और उपनिषदों की भी गहरी जानकारी थी। डॉक्टर राधाकृष्णन समूचे विश्व को एक विद्यालय मानते थे। उनका मानना था कि शिक्षा के जरिए ही मानव मस्तिष्क का सदुपयोग किया जा सकता है।

इस तरह हुई शिक्षक दिवस मनाने की शुरुआत

डॉ राधाकृष्णन को अपने शिष्यों से काफी लगाव था और उनके शिष्यों के मन में भी अपने गुरु के प्रति काफी आदर और सम्मान का भाव था। एक बार उनके शिष्यों ने उनके जन्मदिवस के मौके पर कार्यक्रम आयोजित करने का फैसला किया तो राधाकृष्णन ने ऐसा सुझाव दिया जिससे शिक्षक दिवस मनाने की नींव पड़ी। दरअसल राधाकृष्णन ने अपने शिष्यों से कहा कि मेरा जन्म दिवस अलग से मनाने की कोई जरूरत नहीं है। मैंने अपने जीवन का अधिकांश समय शिक्षक के रूप में ही बिताया है और इसलिए यदि मेरा दिवस शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाए तो मुझे गर्व होगा।

डॉ राधाकृष्णन की यह बात सभी को जंच गई और फिर 1962 में उनके जन्म दिवस पर शिक्षक दिवस मनाने की शुरुआत हुई। डॉ राधाकृष्णन को उनकी शैक्षिक और दार्शनिक उपलब्धियां के कारण 1954 में देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। उनका निधन 17 अप्रैल 1975 को चेन्नई में हुआ था।

शिक्षक में जीवन बदलने की क्षमता

डॉ राधाकृष्णन ने अपने जीवनकाल में समय-समय पर शिक्षक की भूमिका को रेखांकित करते हुए उसे विद्यार्थी का जीवन बदलने में सक्षम बताया था। उनका कहना था कि शिक्षक सिर्फ विद्यार्थी को ही नहीं बल्कि समाज को सही दिशा दिखाने का काम करता है। शिक्षक से मिले ज्ञान के आधार पर कोई भी व्यक्ति विपरीत परिस्थितियों का सामना करने में खुद को सक्षम पाता है। उनका कहना था कि समाज में शिक्षक को उचित सम्मान दिया जाना चाहिए क्योंकि किसी का जीवन बदलने में शिक्षक की ही सबसे महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

अलग-अलग दिन मनाया जाता है शिक्षक दिवस

एक दिलचस्प बात यह भी है कि भारत में शिक्षक दिवस तो 5 सितंबर को मनाया जाता है मगर दुनिया के कई अन्य देशों में शिक्षक दिवस दूसरे दिन मनाया जाता है। यूनेस्को की ओर से 1994 में शिक्षकों के सम्मान में 5 अक्टूबर को विशेष दिवस मनाने की घोषणा की गई थी। उसके बाद रूस समेत कई देशों में 5 अक्टूबर को ही शिक्षक दिवस मनाया जाने लगा।

वैसे जिस तरह भारत में अलग दिन यानी 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है उसी तरह दुनिया के कई अन्य देश भी अलग-अलग दिनों पर शिक्षक दिवस का आयोजन करते हैं। ऐसे देशों में चीन, जर्मनी, बांग्लादेश, ऑस्ट्रेलिया, पाकिस्तान, ईरान, श्रीलंका और ब्रिटेन जैसे देश शामिल हैं। इस तरह पूरी दुनिया में शिक्षक दिवस अलग-अलग दिन मनाया जाता है।

सनातन धर्म पर दिया था बड़ा बयान

शिक्षक दिवस के मौके पर डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के विचार जानना भी जरूरी है। डॉ राधाकृष्णन अपने जीवन में अध्ययन को काफी महत्व दिया करते थे और दूसरों को भी लगातार किताबें पढ़ने की प्रेरणा दिया करते थे। उनका मानना था कि किताबें पढ़ने से हमें एकांत में विचार करने की ताकत मिलने के साथ ही सच्ची खुशी भी हासिल होती है। उनका मानना था कि यदि मनुष्य मानव बन जाता है तो यह उसकी जीत है और यदि वह महामानव बनने में कामयाब होता है तो इसे उसका चमत्कार माना जाना चाहिए। इसके विपरीत यदि मनुष्य दानव बन जाता है तो है तो यह उसकी निश्चित रूप से हार मानी जानी चाहिए।

सनातन धर्म पर बयानबाजी को लेकर इन दोनों देश में घमासान छिड़ा हुआ है और ऐसे में सनातन धर्म को लेकर भी डॉक्टर राधाकृष्णन का विचार काफी महत्वपूर्ण हो जाता है। उनका कहना था कि सनातन धर्म सिर्फ आस्था से जुड़ा हुआ मसला नहीं है बल्कि यह तर्क और अंदर से आने वाली आवाज का समागम है। उनका मानना था कि सनातन धर्म को परिभाषित नहीं किया जा सकता। इसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है।



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Anshuman Tiwari

Anshuman Tiwari

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