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जमीं पर टेराकोटा की उड़ान की उम्मीदें 

seema
Published on: 19 July 2019 1:08 PM IST
जमीं पर टेराकोटा की उड़ान की उम्मीदें 
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जमीं पर टेराकोटा की उड़ान की उम्मीदें

पूर्णिमा श्रीवास्तव

गोरखपुर: अपनी विशेषताओं के चलते दुनिया भर में चमक बिखेरने वाले टेराकोटा शिल्प को योगी सरकार ने जब एक जिला-एक उत्पाद योजना में शामिल किया तो शिल्पकारों से लेकर कद्रदानों की उम्मीदें कुलांचे मार रही थीं। बीते वर्ष 24 जनवरी को योजना लांच हुई तो शिल्पकारों में धनवर्षा के साथ ही शिल्प के प्रमोशन उम्मीदें बंधी थी। 18 महीने से अधिक का समय गुजरने के बाद कागजों में तो योजना का लाभ पाने वालों की सूची लंबी दिखती है, लेकिन जमीन पर कोई बदलाव नहीं दिखता है।

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मिट्टी के शिल्प में जिंदगी का रंग

गोरखपुर में भटहट ब्लाक के करीब दर्जन भर गांव के 200 से अधिक परिवारों के शिल्पकार विशेष काबिस मिट्टी से सालों से मिट्टी के शिल्प में जिंदगी का रंग भर रहे हैं। इसके चलते 30 से अधिक शिल्पकार राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री से लेकर राज्यपाल तक की वाहवाही पा चुके हैं। बीते 18 महीने में मुख्यमंत्री से लेकर प्रभारी मंत्री तक लोन बांटने के कई कार्यक्रमों का आयोजन कर चुके हैं। इसके बावजूद कई शिल्पकार ऋण के लिए भटकते दिख जाते हैं। सरकार का दावा है कि गोरखपुर में 800 से अधिक लोगों को 64 करोड़ से अधिक का ऋण मंजूर किया जा चुका है। 30 शिल्पकारों को राष्ट्रपति, 10 को मुख्यमंत्री और प्रभारी मंत्री धर्मपाल सिंह के हाथों 67 शिल्पकारों को लोन का प्रमाणपत्र मिला है।

ऋण के लिए चक्कर लगा रहे शिल्पकार

औरंगाबाद के हस्तशिल्प कलाकार मोहनलाल प्रजापति, अखिलेश चंद प्रजापति, पन्नेलाल प्रजापति, जीवलाल प्रजापति समेत 30 से अधिक शिल्पकारों ने ऋण के लिए जिला उद्योग केंद्र में बीते दिसम्बर महीने में ही पत्रावली जमा कर दी थी। इसके बावजूद शिल्पकार ऋण के लिए जिला उद्योग केन्द्र से लेकर गुलरिहा के पूर्वांचल बैंक का चक्कर लगा रहे हैं। शिल्पकार मोहनलाल प्रजापति और पन्नेलाल प्रजापति ने बताया कि बिना गारंटी लोन का भरोसा था मगर अब कई पत्रावलियों के लिए दौड़ाया जा रहा है।

सालों तक फीका नहीं पड़ता रंग

गब्बर, मोहन आदि बताते हैं कि भटहट के बरगदही स्थित पोखरे की पीली मिट्टी में जादू है। शिल्प में रंग के लिए इसमें कुछ नहीं मिलाया जाता है। सोडा व आम के छाल से बने घोल में मिट्टी के आकृति को डुबाकर पकाया जाता है। वर्षों तक इसका रंग फीका नहीं पड़ता है। लेकिन मिट्टी को लेकर पुलिस वसूली करती है। टेराकोटा को वैश्विक बाजार देने के लिए अमेजन से किये गए अनुबंध का कोई असर नहीं दिखता है। विभाग के पास कोई आकड़ा नहीं है कि इस ई कामर्स प्लेटफार्म से कितना उत्पाद बिका।

उपायुक्त उद्योग पूजा श्रीवास्तव कहती हैं कि शिल्पकारों को ऋण मिले हैं। उनके लिए कई ट्रेनिंग कैंप लगाए गए हैं जिसमें परम्परागत शिल्प से इतर डिमांड पर मॉडल तैयार करने का हुनर सिखाया जा रहा है। शिल्पकारों को अत्याधुनिक मशीनें दी जा रही हैं। गुलहिरा में एक कलस्टर बनाया जा रहा है जहां शिल्पकार एक छत के नीचे शिल्प बनाने के साथ ही इसकी बिक्री भी कर सकते हैं।

बनारसी सिल्क पर नहीं बन रही बात

आशुतोष सिंह

वाराणसी: रोजगार को बढ़ावा देने और शहरों की पहचान को बरकरार रखने के लिए पिछले साल वन डिस्ट्रिक वन प्रोडक्ट योजना की शुरूआत की गई। इस योजना को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी योजना कहा जाता है। वाराणसी में खुद नरेंद्र मोदी ने इसकी शुरुआत की थी। इस योजना के तहत बनारस जिले के लिए बनारसी सिल्क को प्रोडक्ट के तौर पर चुना गया। सरकार की कोशिश है कि पहले से मंदी की मार झेल रहे बनारसी सिल्क उद्योग को उबारा जाए, लेकिन इसे लेकर अभी तक जिला प्रशासन कन्फ्यूज है।

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पूरी दुनिया में डिमांड

बनारसी सिल्क से बने उत्पादों की पूरे विश्व में डिमांड है। खासतौर से बनारसी साड़ी की तो देश-दुनिया में धमक है। हर महिला की हसरत होती है कि वो बनारसी साड़ी में ही मायके से विदा हो, लेकिन पिछले कुछ सालों से इस उद्योग पर ग्रहण लग गया है। रंग बिरंगी साडिय़ां बनाने वाले बुनकरों की जिंदगी बदरंग पड़ी है तो बड़े गद्दीदार भी जीएसटी से परेशान हैं। मौजूदा वक्त में बनारस में लगभग 1.20 लाख बुनकर बनारसी साड़ी बनाने के काम में लगे हैं। इसमें लगभग 80 हजार पावरलूम बुनकर हैं जबकि करीब 40 हजार हैंडलूम बुनकर हैं। अगर सालाना कारोबार की बात करें तो बनारस में 700 करोड़ रुपए का साड़ी का कारोबार होता है। बनारस में बनने वाली साडिय़ां मुख्य रूप से खाड़ी देशों व दक्षिण भारत के राज्यों में भेजी जाती हैं।

20 हजार बुनकरों को फायदा

लिहाजा वन डिस्ट्रिक, वन प्रोडक्ट के जरिए सरकार उद्योग से जुड़े लोगों को राहत देने की कोशिश कर रही है। योजना के तहत अभी तक 20 हजार बुनकरों को फायदा मिला है। योजना के तहत बुनकरों को आर्थिक तौर पर मदद की जा रही है। इसके अलावा उनके तैयार माल को निर्यात करने के लिए स्थानीय प्रशासन मदद कर रहा है। लेकिन जिला उद्योग विभाग के सामने सबसे बड़ी समस्या उद्योग को लेकर कारोबारियों का चयन है क्योंकि बनारसी सिल्क काफी महंगा होता है। लिहाजा अधिकांश बुनकर साडिय़ों को सस्ती बनाने के चक्कर में बनारसी सिल्क का इस्तेमाल कम करते हैं।

सिर्फ 25 फीसदी बनारसी सिल्क का इस्तेमाल

बनारस में बनने वाली लगभग 75 प्रतिशत साडिय़ों में सिर्फ 25 प्रतिशत ही बनारसी सिल्क होता है। ऐसे में बहुत कम कारीगर ही प्योर बनारसी सिल्क का काम करते हैं। अधिकांश बनारसी साडिय़ों में सिल्क चीन से या फिर दक्षिण भारत से आता है। अधिकारियों की दूसरी परेशानी यह है कि योजना में आखिर किसे-किसे शामिल किया जाए। मसलन बुनकरों के अलावा इस काम में अप्रत्यक्ष रूप से भी हजारों लोग जुड़े रहते हैं। जैसे इसमें कढ़ाई व रंगाई करने वालों के साथ ही गद्दीदार और बड़े एक्पोर्टर भी शामिल होते हैं।

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ब्लैक पॉटरी उद्योग के दिन बहुरने के आसार

संदीप अस्थाना

आजमगढ़: सरकार की एक जिला-एक उत्पाद योजना के तहत आजमगढ़ के ब्लैक पॉटरी उद्योग का चयन किया गया है। इस जिले के निजामाबाद कस्बे के दो सौ से अधिक परिवार इस उद्योग से जुड़े हुए हैं। योजना में इस उद्योग के चयन के बाद इस पेशे से जुड़े लोगों में एक आस जगी है। फिलहाल इस उद्योग का विकास किस तरह से होगा, इसके लिए कितना धन मिलेगा, यह सारी चीजें अभी स्पष्ट नहीं हैं। इस योजना के तहत अभी तक इस जिले को कोई धन भी आवंटित नहीं किया गया है।

कई शिल्पकार हो चुके हैं सम्मानित

पॉटरी कला का उद्भव मुगल सम्राट आलमगीर के शासनकाल में निजामाबाद कस्बे में हुआ था। कहा जाता है कि उस समय यहीं के निवासी काजी अब्दुल फरह गुजरात प्रांत के मुख्य न्यायाधीश थे। उन्होंने वहां पर इस कला से प्रभावित होकर वहां के कलाकारों को निजामाबाद कस्बे में लाकर बसाया। इसका जिक्र वरिष्ठ आईपीएस अफसर शैलेन्द्र सागर की कहानी 'माटी' में मिलता है। आगे चलकर यहीं की मिट्टी ने इस कला से जुड़ी अनेक विभूतियों को राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित करवाया। राजेन्द्र प्रसाद प्रजापति को 1971 में राज्य दक्षता एवार्ड मिला। जबकि 1987 में राष्ट्रीय पुरस्कार तत्कालीन राष्ट्रपति आर वेंकटरमन के हाथों मिला। उनकी धर्मपत्नी स्व. कल्पा देवी को भी 1981 में स्टेट एवार्ड तथा 1987 में राष्ट्रपति पुरस्कार मिला। उनके पुत्र रामजतन प्रजापति को 1987 में राज्य दक्षता पुरस्कार, 1993-94 में राज्य पुरस्कार तथा 2004 में नेशनल मेरिट एवार्ड मिला। शिवरतन व शिवजतन प्रजापति को राज्य पुरस्कार मिला। इनके अलावा स्व. रामलाल प्रजापति को 1989 में राज्य दक्षता पुरस्कार दिया गया।

युवाओं का पलायन रुकने की उम्मीद

यहां की विश्वविख्यात ब्लैक पाटरी कला को देखने के लिये तो समय-समय पर बड़े-बड़े लोग आते हैं, लेकिन प्रशासनिक उपेक्षा के चलते इस कला से जुड़े युवा जीविकोपार्जन के लिए अब बड़े शहरों की तरफ पलायन कर रहे हैं। निजामाबाद कस्बे की काली मिट्टी के बर्तन देश के साथ ही विदेशों के संग्राहलयों की शोभा बढ़ा रहे हैं। यहां के बने बर्तनों की पूरे विश्व में मांग है। साल के 12 महीने यहां देशी-विदेशी पर्यटकों का आना-जाना लगा रहता है। करीब दो सौ परिवार इस पेशे से जुड़े हुए हैं। एक जिला-एक उत्पाद योजना में इस जिले के ब्लैक पाटरी उद्योग को चुने जाने के बाद यहां के मिट्टी के कलाकारों में आस जगी है। इन कलाकारों का कहना है कि अब लगता है कि इस कला में लगे परिवार के युवा वर्ग का पलायन रुक जायेगा एवं यह कला उद्योग का रूप धारण कर सकती है।



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सीमा शर्मा लगभग ०६ वर्षों से डिजाइनिंग वर्क कर रही हैं। प्रिटिंग प्रेस में २ वर्ष का अनुभव। 'निष्पक्ष प्रतिदिनÓ हिन्दी दैनिक में दो साल पेज मेकिंग का कार्य किया। श्रीटाइम्स में साप्ताहिक मैगजीन में डिजाइन के पद पर दो साल तक कार्य किया। इसके अलावा जॉब वर्क का अनुभव है।

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