TRENDING TAGS :
किसान नेताओं की बड़ी समस्या, टिकैत ने बोला किसान वापस जाएँ भी तो किस मुंह से
दिल्ली के बाहर धरने पर बैठे किसानों के नेताओं की समस्या है कि वे अब पीछे हटें तो भी कैसे। उन्होंने अपने आंदोलन का अंतरराष्ट्रीयकरण भी कर दिया है। उन सेलेब्रिटीज़ को भी अपने पक्ष में कर लिया है जो यथास्थितिवादी हैं।
नीलमणि लाल
लखनऊ। दिल्ली की सीमा पर किसान डटे हैं। कृषि कानून की वापसी से कम पर तैयार नहीं हैं। सरकार का नजरिया भी साफ है कि कानून वापस नहीं होने। ऐसे में किसान आंदोलन का क्या हश्र होगा ये एक बड़ा सवाल है।
किसान नेताओं की समस्या
दिल्ली के बाहर धरने पर बैठे किसानों के नेताओं की समस्या है कि वे अब पीछे हटें तो भी कैसे। उन्होंने अपने आंदोलन का अंतरराष्ट्रीयकरण भी कर दिया है। उन सेलेब्रिटीज़ को भी अपने पक्ष में कर लिया है जो यथास्थितिवादी हैं। किसानों के ग्रुप्स को कांग्रेस का पूरा सपोर्ट मिल रहा है। ऐसे में पीछे हटना मुश्किल है। अभी फिलहाल पंजाब हरियाणा के किसान खेती के काम से खाली हैं सो उनके पास दिल्ली की सीमा पर बैठे रहने के काफी वक्त है। अप्रैल के बाद ये स्थिति बदल सकती है क्योंकि तब किसान फसल कटाई के लिए जायेंगे। ऐसे में उनकी जगह ग्रामीण महिलाएं, वृद्ध आदि ले सकते हैं।
पॉलिटिकल पार्टियां उठा रही है फायदा
एक्सपर्ट्स और जानकारों का कहना है कि ये मामला राज्यों के आसन्न विधानसभा चुनावों तक गरमाया रहेगा। पॉलिटिकल पार्टियों को उन चुनावों में फायदा उठाना है। इसलिए वो किसान आंदोलन को बनाये रखेंगे। कांग्रेस समेत विपक्षी दलों को मोदी सरकार की घेराबंदी करने का ये सुनहरा अवसर मिला हुआ है। बंगाल के चुनाव में किसान का मुद्दा उठाया भी जाने लगा है।
यह भी पढ़ें... 11 साल बाद अमेरिका शुरू करेगा यान की लैंडिंग, जानें इस स्पेस प्लेन की खासियत
कृषि कानून को पहले ही रोक रखा है SC
एक पहलू सुप्रीम कोर्ट का है। कृषि कानून को सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही लागू किये जाने से रोक रखा है। सुप्रीम कोर्ट अपनी बनाई गई कमेटी की रिपोर्ट देखने के बाद कोई फैसला सुनाएगा। सो इस फैसले के बाद मामला दूसरा स्वरुप ले लेगा। अगर सुप्रीम कोर्ट कृषि कानूनों को बनाये रखने के पक्ष में कोई बात कहता है या कोर्ट ने कानूनों को साल डेढ़ साल लंबित रखने को कहा तब किसान नेता क्या करेंगे? अगर तब भी नेता कानून वापसी पर अड़े रहे किसान नेताओं का अड़ियल रुख कोर्ट की अवमानना की श्रेणी में आ जाएगा।
किसान नेता बीच का रास्ता निकालने में जुटें
अभी जिस तरह का रुख है उससे प्रतीत होता है कि किसान नेता कोई बीच का रास्ता निकालने की कोशिश में हैं। राकेश टिकैत ने भी बातचीत में शामिल होने की बात कही है। उनके बड़े भाई नरेश टिकैत पहले ही कह चुके हैं कि किसान वापस जाएँ भी तो किस मुंह से। ऐसे में इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि किसान नेता सुप्रीम कोर्ट की कमेटी की रिपोर्ट और उसके उपरान्त कोर्ट के फैसले का इंतजार कर रहे हैं। एक बार कोर्ट का फैसला आ जाये तो उनके लिए घर वापसी की राह आसान हो जायेगी। वापसी के बाद आन्दोलन को यूपी के चुनावों तक ज़िंदा भी रखने का बहाना और मौक़ा मिल जाएगा।
40 से ज्यादा संगठन चला रहे है आंदोलन
दिल्ली में 26 जनवरी की तरह उपद्रव फिर नहीं होगा ये भी कहा नहीं जा सकता। पहले तो किसान आन्दोलन को 40 से ज्यादा संगठन चला रहे थे और उनमें पंजाब और हरियाणा के संगठन ज्यादा सक्रिय थे। इन्हीं संगठनों के अतिवादी तत्वों ने 26 जनवरी को बवाल किया था। लेकिन उसके बाद से वेस्ट यूपी के किसान और उनके नेता राकेश टिकैत अगुआ हो गए हैं। ये भी मुमकिन हो सकता है कि आन्दोलन के नेतृत्व की लड़ाई भी शुरू हो जाए।
यह भी पढ़ें... गोरखपुर: MMMUT दीक्षांत समारोह में बोले राजेन्द्र सिंह, मां गंगा हमारे अध्यात्म की धारा
आंदोलनकारियों के लिए रास्ता है कठिन
बहरहाल, आगे का रास्ता आंदोलनकारियों के लिए ज्यादा कठिन है। अभी तक के आंदोलनों का इतिहास यही बताता है कि वही बड़े आंदोलन कुछ कर पाते हैं जिनको संयम और व्यावहारिक सौदेबाजी से चलाया जाता है। सिर्फ धरना देने से बात बनती तो यहाँ बरसों तक धरने चले हैं और हासिल कुछ नहीं हुआ है। अगर अतिवादी और अड़ियल रुख अपनाया गया तो आन्दोलन टिक नहीं पाता और बिखर जाता है भले ही मांगें कितनी तर्कपूर्ण क्यों न हों।
दोस्तों देश दुनिया की और को तेजी से जानने के लिए बनें रहें न्यूजट्रैक के साथ। हमें फेसबुक पर फॉलों करने के लिए @newstrack और ट्विटर पर फॉलो करने के लिए @newstrackmedia पर क्लिक करें।