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पूर्व RBI गवर्नर ने नोटबंदी-GST को क्यों बताया विकास की राह में रोड़ा, इन आठ बिन्दुओं में जानें!

Aditya Mishra
Published on: 11 Nov 2018 11:03 AM IST
पूर्व RBI गवर्नर ने नोटबंदी-GST को क्यों बताया विकास की राह में रोड़ा, इन आठ बिन्दुओं में जानें!
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नई दिल्ली: रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन मोदी सरकार पर हमला बोलने के लिए जाने जाते है। वह मोदी सरकार के कार्यों पर टिप्पणी करके अक्सर चर्चा में भी बने रहते है। उन्होंने इस बार भी कुछ ऐसा ही बयान दे दिया है। जिससे मोदी सरकार की मुश्किलें बढ़ सकती है। दरअसल रघुराम ने नोटबंदी और जीएसटी को देश की आर्थिक वृद्धि की राह में आने वाली ऐसी दो बड़ी अड़चन बताया।

उन्होंने कहा कि इन दोनों की वजह से पिछले साल वृद्धि की रफ्तार काफी प्रभावित हुई थी। इस बात पर जोर देते हुए कहा कि सात प्रतिशत की मौजूदा विकास दर देश की जरूरतों के हिसाब से काफी नहीं है। राजन ने ये बातें बर्कले में शुक्रवार को कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में आयोजित एक कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए कही थी। तो आइये इन आठ बिन्दुओं के जरिये समझते है उन्होंने ऐसा क्यों कहा। इसके पीछे आखिर क्या वजह थी।

1-अधिक रोजगार पैदा करने की है जरूरत

आजतक, इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक़ राजन ने कहा कि 25 साल तक सात प्रतिशत की आर्थिक वृद्धि दर बेहद मजबूत वृद्धि है लेकिन कुछ मायनों में यह भारत के लिये वृद्धि की नयी सामान्य दर बन चुकी है। जो कि पहले साढ़े तीन प्रतिशत हुआ करती थी। उन्होंने कहा, "सच यह है कि जिस तरह के लोग श्रम बाजार से जुड़ रहे हैं उनके लिये सात प्रतिशत पर्याप्त नहीं है और हमें अधिक रोजगार पैदा करने की जरूरत है। हम इस स्तर पर संतुष्ट नहीं हो सकते हैं।"

2-7 प्रतिशत से कम न हो विकास दर

रघुराम राजन के अनुसार यदि हम सात प्रतिशत से कम दर से वृद्धि करते हैं तो निश्चित तौर पर कुछ गड़बड़ियां हैं। उन्होंने कहा कि भारत को इस आधार पर कम से कम अगले 10-15 साल तक वृद्धि करनी होगी।

3-नोटबंदी-जीएसटी की वजह से भारत की रफ्तार सुस्त

पूर्व आरबीआई गवर्नर ने वैश्विक वृद्धि के प्रति भारत के संवेदनशील होने की बात स्वीकार करते हुए कहा कि भारत अब काफी खुली अर्थव्यवस्था है। यदि दुनिया विकास करती है तो भारत भी वृद्धि करता है।

उन्होंने कहा, "2017 में यह हुआ कि दुनिया में ग्रोथ रेट में स्पीड पकड़ने के बाद भी भारत की रफ्तार सुस्त पड़ी। इससे पता चलता है कि इन झटकों (नोटबंदी और जीएसटी) वास्तव में गहरे झटके थे। इन झटकों के कारण हमें ठिठकना पड़ा।"

4-कच्चे तेल की कीमतों का अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा असर

राजन ने भारतीय अर्थव्यवस्था के समक्ष कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों की चुनौती के मद्देनजर ऊर्जा जरूरतों की पूर्ति के लिये तेल आयात पर देश की निर्भरता का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि कच्चे तेल की कीमतें बढ़ने से घरेलू अर्थव्यवस्था के समक्ष परिस्थितियां थोड़ी मुश्किल होंगी, भले ही देश नोटबंदी और जीएसटी की रुकावटों से उबरने लगा हो।

5- हर महीने पैदा करनी होगी 10 लाख जॉब्स

रघुराम राजन ने कहा कि भारत को श्रम बल से जुड़ रहे नये लोगों के लिये हर महीने 10 लाख रोजगार के अवसर पैदा करने की जरूरत है। राजन ने कहा कि देश के सामने अभी तीन दिक्कतें हैं। पहली दिक्कत उबड़-खाबड़ बुनियादी संरचना है। उन्होंने कहा कि निर्माण वह उद्योग है जो अर्थव्यवस्था को शुरुआती चरण में चलाता है। उसके बाद बुनियादी संरचना से वृद्धि का सृजन होता है। उन्होंने कहा कि दूसरा अल्पकालिक लक्ष्य बिजली क्षेत्र की स्थिति को बेहतर बनाना हो सकता है. यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि सालाना पैदा होने वाली बिजली उनके पास पहुंचे जिन्हें इसकी जरूरत है।

6-सत्ता का केंद्रीकरण बड़ी समस्या

भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन का मानना है कि भारत में राजनीतिक निर्णय लेने में शक्ति का अत्यधिक केंद्रीकरण प्रमुख समस्याओं में से एक है। इस संबंध में उन्होंने गुजरात में हाल ही में अनावरण की गई सरदार पटेल की मूर्ति 'स्टैच्यू ऑफ यूनिटी' परियोजना का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि इस परियोजना के लिए भी प्रधानमंत्री कार्यालय की मंजूरी लेने की जरूरत पड़ी, राजन ने कहा, "भारत एक केंद्र से काम नहीं कर सकता है।

7- 'स्टैच्यू ऑफ यूनिटी' जैसी शक्ति की जरूरत

रघुराम राजन ने कहा कि हमने सरदार पटेल की इस इतनी बड़ी मूर्ति को समय पर पूरा किया। यह दिखाता है कि जब चाह होती है तो राह भी है। लेकिन क्या इस तरह की चाह हम अन्य चीजों के लिये भी दिखा सकते हैं? उनके इस बयान पर सभागार में हंसी के ठहाके और तालियों की गड़गड़ाहट सुनायी दी।

8- पब्लिक सेक्टर और नौकरशाही की अनिच्छा

शक्ति के अत्यधिक केंद्रीकरण के अलावा उन्होंने भारत में नौकरशाही की अनिच्छा को एक बड़ी समस्या बताया। रघुराम राजन ने कहा कि जब से भारत में भ्रष्टाचार के घोटाले उजागर होने शुरू हुए, नौकरशाही ने बड़े प्रोजेक्ट से अपने कदम पीछे खींच लिए। उन्होंने यह भी कहा कि भारत की पब्लिक सेक्टर कंपनियां बड़ी चीजों पर पहल लेने से कतराती हैं. ये एक बड़ी समस्या है।

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