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कूलभूषण की ईंटों से खड़ा हो रहा सपनों का महल, जानिए इसकी खासियत

पंजाब में चंडीगढ़ से लगे डेराबस्सी के मूल निवासी कूलभूषण अग्रवाल ने मिट्टी से सपनों के महल को खड़ा कर दिया। कूलभूषण ने मशीन मेड वायर कट एक्ट रूडर ब्रिक्स के रूप में ऐसे ईंट बनाईं हैं जो देश में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में पंसद की जा रही है।

Dharmendra kumar
Published on: 4 Feb 2019 5:24 PM IST
कूलभूषण की ईंटों से खड़ा हो रहा सपनों का महल, जानिए इसकी खासियत
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लखनऊ: पंजाब में चंडीगढ़ से लगे डेराबस्सी के मूल निवासी कूलभूषण अग्रवाल ने मिट्टी से सपनों के महल को खड़ा कर दिया। कूलभूषण ने मशीन मेड वायर कट एक्ट रूडर ब्रिक्स के रूप में ऐसे ईंट बनाईं हैं जो देश में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में पंसद की जा रही है।

इन ईंटों की बड़ी बात यह है कि ये इको फ्रेंडली यानी पर्यावरण हितैषी साबित हो रही है। इसे बनाने में सामान्य ईंटो की तुलना में चार गुना कम पानी का प्रयोग होता है। पकाने में ऊर्जा की खपत भी कम होती है। क्षमता तीन गुना अधिक होती है। ईंट हिच प्रूफ भी है। लिहाजा गर्मी से भी बचाती हैं।

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कूलभूषण ने सिर्फ 26 साल की उम्र में ही अपने पुस्तैनी ईंट भट्टे के कारोबार में एक अलग सपना बूना था। उनको सपनों के चटग रंग आज देहरादून के पेट्रोलियम विश्वविदायल, दून इंटरनेशनल स्कूल, डीपीएस नोएडा जैसे संस्थानों की इमारतों में दिख रहे हैं। ऐसी अनेक इमारतें इन्हीं ईटों से बनाई गई हैं।

19 साल के सफलता के सफर में आज द एनर्जी एंड रिसोर्स इंस्ट्टीयूट दुनिया के 22 देशों में कूलभूषण के इनोवेशन का गुणगान कर रही है। यूनाइटेड नेशन्स डेवलपमेंट प्रोग्राम में कूलभूषण के प्रोडक्ट का जिक्र किया गया है।

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कूलभूषण की भारत ब्रिक्स कंपनी द्वारा तैयार की जा रही ईंटों का प्रदर्शन प्रदशर्नियों में किया जाता रहा है। कूलभूषण का कहना है कि ईंट को तापमान के मुताबिक प्राकृतिक रंग मिल जाता है। जिस कारण ईंटों का प्रयोग करने पर अलग से पेंट की जरूरत नहीं होती है। यही वजह है कि भारत के वाटर एंड सेनी टेशन डिपार्टमेंट ने कूलभूषण द्वारा तैयार ईंट की सीवरलाइन के लिए सबसे उपयुक्त पाते हुए इसे मान्यता दी है।

कूलभूषण बताते हैं कि मशीन से मिट्टी को कंप्रेश किया जाता है जिससे मिट्टी गारे में से हवा पूरी तरह बाहर निकल जाती है और पानी भी महज 6 फीसदी रह जाता है। इस कारण उसे पकाने में कम तापमान का प्रयोग होता है। बाद में इन ईंटों को अलग-अलग तापमान में पकाना शुरू किया तो ईंट तापमान के अनुसार अपने प्राकृतिक रंग में सामने आने लगीं।

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मिट्टी को कंप्रेश किए जाने से पकी ईंट की क्षमता सामान्य ईटों की तुलना में तीन गुना अधिक होती है। इस समय मशीन से ईंट से और भी कई कंपनियां बना रही हैं, लेकिन वे इस प्रकार की ईंटों मिट्टी के बजाय दूसरी चीजों का प्रयोग कर रही हैं।

कूलभूषण ने मिट्टी से ही ईंटों को बनाना जारी रखा है। द एनर्जी एंड रिसोर्स इंस्टीट्यूट के प्रोग्राम में कूलभूषण की ईंट का जिक्र देखकर इंग्लैंड के इंजीनियर इस ईंट की काफी मांग कर रहे हैं।



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Dharmendra kumar

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