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चुनावी बांड से हजारों करोड़ का स्कैम, एडीआर की इसे खत्म करने की मांग
एडीआर का यह भी कहना है कि यह बांड्स चुनावी फंडिंग के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी रोककर नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं। उसका कहना है कि इस तरह की अपारदर्शिता बड़े सार्वजनिक हित की कीमत पर है और यह पारदर्शिता और जवाबदेही के मूल सिद्धांतों के लिए गंभीर झटका है।
लखनऊ। नेशनल इलेक्शन वॉच और एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स ने अपनी एक रिपोर्ट में चुनावी बांड के जरिए चुनावी फंडिंग को लेकर कई महत्वपूर्ण सवाल उठाए हैं। एडीआर ने मांग की है कि चुनावी बांड योजना 2018 को पूरी तरह से खत्म कर दिया जाना चाहिए।
एडीआर का यह भी कहना है कि यह बांड्स चुनावी फंडिंग के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी रोककर नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं। उसका कहना है कि इस तरह की अपारदर्शिता बड़े सार्वजनिक हित की कीमत पर है और यह पारदर्शिता और जवाबदेही के मूल सिद्धांतों के लिए गंभीर झटका है।
एडीआर ने कहा है कि योजना की निरंतरता के मामले में दानदाता की गुमनामी के सिद्धांत को सार्वजनिक किया जाना चाहिए। राजनीतिक दल चुनावी बांड के माध्यम से जो दान प्राप्त करते हैं, उन्हें अपने योगदान में दिए गए वित्तीय वर्ष में प्राप्त दान की कुल राशि के साथ प्रत्येक बांड के अनुसार दानदाताओं का विस्तृत विवरण, प्रत्येक बांड की राशि और प्रत्येक बांड को प्राप्त क्रेडिट के पूर्ण विवरण की घोषणा करनी चाहिए।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि राजनीतिक दलों की वित्तीय स्थिति की एक सच्ची तस्वीर आम जनता के सामने आए यह सुनिश्चित करने के लिए प्रक्रियाओं और रिपोर्टिंग ढांचे को मानकीकृत किया जाना चाहिए।
चुनाव आयोग को सौंपी जाए जिम्मेदारी
एडीआर ने यह भी कहा है कि चुनाव आयोग को यह जिम्मेदारी सौंपी जानी चाहिए कि कोई भी राजनीतिक दल जो चुनावी बांड योजना 2018 के चुनावी बांड के माध्यम से दान प्राप्त करता है पर वह दल निर्धारित मतदान प्रतिशत से कम मत प्राप्त करता है तो इस तरह के बांड को वह दल भुना न सके। चुनाव आयोग सीबीडीटी या अन्य किसी संबंधित संस्थान को यह देखरेख की जिम्मेदारी सौंपी जानी चाहिए कि चुनावी बांड के नकदीकरण और दलों द्वारा चुनावी बांड के माध्यम से प्राप्त दान के मूल्य में कोई भिन्नता तो नहीं है और केवल योग्य राजनीतिक दलों को चुनाव से दान प्राप्त हो रहा है।
सभी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय राजनीतिक दलों को सूचना के अधिकार आरटीआई के तहत चुनावी बांड से प्राप्त दान से संबंधित सभी जानकारी प्रदान करनी चाहिए । सभी दानदाताओं का पूरा विवरण सूचना के अधिकार के तहत जांच के लिए उपलब्ध कराया जाना चाहिए।
इन जगहों से आया गुमनामी दान
एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक मार्च 2018 और अक्टूबर 2019 के बीच दिल्ली जहां राष्ट्रीय दलों का मुख्यालय है 8930 चुनावी बांड का नकदी करण किया गया इनकी कुल कीमत 4917 करोड़ थी, जो पूरे नगदीकरण का 80 फ़ीसदी था। जबकि बांड का अधिकतम मूल्य मुंबई में खरीदा गया। इसके बाद हैदराबाद से 8.4 फ़ीसदी यानी 1255 से 512 करोड़ और भुवनेश्वर से 3.9 फ़ीसदी 484 बांड्स से 236 करोड के चुनावी बांड्स भुनाए गए।
कोलकाता और मुंबई से क्रमशः 3.3 फ़ीसदी और 2.4 फीस दी चुनावी बांड्स भुनाए गए। चेन्नई, पटना, और लखनऊ सहित शेष 8 शहरों में 265 बांड्स का नकदीकरण किया गया जिसकी कीमत 88 करोड़ थी।
एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक वित्तीय वर्ष 2018-19 के दौरान तीन राष्ट्रीय दलों भाजपा, कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस और पांच क्षेत्रीय दलों बीजेडी, टीआरएस, वाईएसआर कांग्रेस, जेडीएस और एसडीएफ ने चुनावी बांड्स से 2422 करोड़ की राशि एकत्र की लेकिन दलों ने इसी वित्तीय वर्ष में चुनावी बांड्स से 2540 करोड़ की राशि का नगदीकरण किया।
रिपोर्ट के मुताबिक 2 दिसंबर 2019 को एसबीआई से प्राप्त सूचना के अनुसार योजना के प्रारंभ से 6128.72 करोड़ के कुल 12313 बेचे गए इनमें से 6108 करोड़ के 12173 बांड्स का राजनीतिक दलों द्वारा नकदी करण कराया गया शेष 140 बांड्स से प्राप्त कुल 20 करोड़ की धनराशि प्रधानमंत्री राहत कोष में जमा की जाएगी क्योंकि नियमानुसार 15 दिन की वैधता अवधि के भीतर यदि नकदीकरण नहीं कराया जाता है तो बांड की धनराशि पीएमआरएस में जमा कर दी जाएगी।