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झारखंड: महंगी दवाओं से हैं परेशान, टेंशन नहीं लेने का 'दवाई दोस्त' है ना
रांची: तीन दोस्तों के संकल्प ने लोगों के महंगे इलाज को को सस्ता कर दिया है। यह आपस में ही दोस्त नहीं है बल्कि जेनेरिक दवाओं ने इन्हें पूरे शहर का दोस्त बना दिया है। झारखंड की राजधानी रांची में रहने तीनों दोस्तों ने अपने माता-पिता की दी हुई सीख से इस जनसेवा को आगे बढ़ाया है। बता दें इन तीन दोस्तों में दो सगे भाई हैं।
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ऐसे आया आइडिया
इन लोगों ने सबस पहले उनके बारे में जिनके दवाएं खरीदने के लिए पैसे नहीं होते। महंगी दवाइयों की वजह से वह इलाज नहीं करा पाते हैं या इलाज कराने में उनका घर तक बिक जाता है। ऐसे लोगों की मदद के लिए गंभीरता से सोचने के बाद इनकों जेनेरिक दवाओं का आइडिया आया।
इन तीन दोस्तों में पुनीत पोद्दार, पंकज पोद्दार और एनआरआइ राजीव बरोलिया शामिल हैं। इन्होंने 'दवाई दोस्त' नाम से ट्रस्ट बनाया और कई जेनेरिक दवा केंद्र खोल दिए। इन्होंने तीन साल पहले दवाई दोस्त मुहिम की शुरुआत की थी। अब राजधानी रांची में 20 शाखाएं हैं, जहां से 70 हजार लोग हर महीने जेनेरिक दवाएं खरीदते हैं।
हाल ही में इस ट्रस्ट ने कंसल्टेशन केंद्र भी खोला है, जहां गरीबों को नि:शुल्क चिकित्सकीय परामर्श और एक सप्ताह की दवा भी दी जा रही है। राज्य के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल रिम्स में भी दवाई दोस्त का काउंटर का खोला है। यहां से प्रतिदिन लगभग 800 लोग दवा लेते हैं।
रांची के लोगों का बचता है एक करोड़
ट्रस्ट का दावा है कि दवाओं के माध्यम से हर महीने रांची के लोगों के डेढ़ करोड़ रुपये बच रहे हैं। ब्रांडेड दवा की कीमत जेनेरिक दवाओं की कीमत के मुकाबले कई गुना अधिक है, जबकि दोनों ही एकसमान असर करती हैं।
यहां की कंपनियां विश्व के कई देशों में जेनेरिक दवाओं की आपूर्ति करती हैं। ऐसी कोई भी बीमारी नहीं जिसकी जेनरिक दवा उपलब्ध नहीं, लेकिन कमीशन के लालच में डॉक्टर मरीज को ये दवाएं नहीं लिखते।
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फिलहाल दवाई दोस्त केंद्रों में 22 फार्मासिस्ट को मिलाकर लगभग 100 लोग काम करते हैं। चूंकि आमद सीमित है, ऐसे में तनख्वाह और दूसरे मद में ट्रस्ट का प्रति माह दो से तीन लाख रुपये खर्च होता है, जिसका खर्चा उद्योगपति उठाते हैं।
जेनेरिक दवाओं में बारे में जानिए
किसी एक बीमारी के इलाज के लिए कई तरह की रिसर्च और स्टडी के बाद एक रसायन (साल्ट) तैयार किया जाता है जिसे आसानी से उपलब्ध करवाने के लिए दवा की शक्ल दे दी जाती है। इस साल्ट को हर कंपनी अलग-अलग नामों से बेचती है। कोई इसे महंगे दामों में बेचती है तो कोई सस्ते, लेकिन इस साल्ट का जेनेरिक नाम साल्ट के कंपोजिशन और बीमारी का ध्यान रखते हुए एक विशेष समिति द्वारा निर्धारित किया जाता है। किसी भी साल्ट का जेनेरिक नाम पूरी दुनिया में एक ही रहता है। महंगी दवा और उसी साल्ट की जेनेरिक दवा की कीमत में कम से कम पांच से दस गुना का अंतर होता है।
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यहा से ले सकते हैं जेनेरिक दवाओं की जानकारी
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