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अमेरिका की चेतावनियां बेअसर, पाक बना हुआ आतंकियों के लिए पनाहगाह

Newstrack
Published on: 4 Nov 2017 12:50 PM IST
अमेरिका की चेतावनियां बेअसर, पाक बना हुआ आतंकियों के लिए पनाहगाह
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प्रमोद भार्गव

एक बार फिर भारत की धरती से पाकिस्तान को आतंकी अड्डे खत्म करने की चेतावनी देकर अमेरिकी विदेश मंत्री रेक्स टिलरसन लौट गए। रेक्स ने पाकिस्तान और पाक अधिकृत कश्मीर की धरती पर चल रहे आतंकियों को सैन्य प्रशिक्षण देने वाले शिविरों और बुनियादी संरचना को तत्काल समाप्त करने की चेतावनी दी है। सब जानते हैं कि पाक इस समय आतंकियों के लिए सुरक्षित पनाहगाह बना हुआ है। भारत में कश्मीर से लेकर अफगानिस्तान के समूचे क्षेत्र में पाक से प्रशिक्षित आतंकी ही आतंक का पर्याय बने हुए हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि यदि इन आतंकी समूहों पर ठोस कार्रवाई नहीं होती है तो ये कालांतर में इस्लामाबाद की सरकार के लिए भी गंभीर खतरा बन सकते हैं। लेकिन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप समेत अमेरिका के अन्य पक्ष व विपक्ष के नेताओं द्वारा फटकार लगाए जाने के बावजूद पाक का राजनीतिक नेतृत्व एवं सैन्य संगठन बेअसर है।

अब तो चीन की शह के चलते ऐसा अहसास हो रहा है कि पाकिस्तान ने अमेरिका की धमकियों को गीदड़ भभकियां समझना शुरू कर दिया है। ऐसा इसलिए भी है, क्योंकि अमेरिका फटकार तो लगाता है,लेकिन न तो पाकिस्तान को आर्थिक मदद देना बंद करता है और न ही आतंकियों के शिविरों पर सैन्य कार्रवाई करने का जोखिम उठाता है। अमेरिका की इसी दुविधा का लाभ उठाकर पाक आतंकियों को सरंक्षण देते हुए उनका इस्तेमाल भारत और अफगानिस्तान के विरुद्ध खुले तौर पर कर रहा है।

भारत यात्रा पूरी करने से पहले रेक्स टिलरसन ने भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के साथ साझा प्रेस वार्ता भी की। इसमें भी रेक्स ने कहा कि आतंकियों के सुरक्षित ठिकाने बर्दाश्त नहीं किए जाएंगे। रेक्स ने यह भी कहा कि ये आतंकी गुट पाकिस्तानी सरकार की स्थिरता और सुरक्षा के लिए भी गंभीर खतरा है। दूसरी तरफ सुषमा स्वराज ने कहा कि हाल ही में अफगानिस्तान में जो आतंकी हमले हुए है, उनसे साफ हुआ है कि पाकिस्तान की सरजमीं पर आतंकियों के सुरक्षित अड्डे कायम हैं।

बहरहाल अमेरिका आतंकियों को खत्म करने के दावे प्रतिदावे कुछ भी करे मगर हकीकत यह है कि अब उसकी धमकियां पाकिस्तान पर बेअसर साबित हो रही हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि एक तो दक्षिण एशियाई क्षेत्र में अमेरिकी हितों के लिए अमेरिका को पाकिस्तान की जरूरत है। दूसरे पाकिस्तान ने चीन के साथ इतने गहरे आर्थिक और सामरिक संबंध बना लिए हैं कि पाक की जिन जरूरतों की पूर्ति अमेरिका से होती थी, उन्हें अब चीन करने लगा है। यही वजह है कि आतंकवादियों को पनाह देने के मामले में पाकिस्तान के चेहरे से पूरी तरह आवरण हट जाने के बावजूद अमेरिका पाक को फटकार लगाने से आगे नहीं बढ़ पा रहा है।

भारत के साथ इस आतंकवाद विरोधी आवाज के समर्थन में सऊदी अरब, बांग्लादेश, अरब-अमीरात और अन्य कई इस्लामिक देश भी आ गए हैं। जापान और जर्मनी भी भारत के साथ खड़े हैं। मोदी ने दुनिया में जिस बुलंदी के साथ आतंकवाद के खिलाफ आवाज बुलंद की है, उसी का परिणाम है कि खुद पाकिस्तान में बुद्धिजीवियों का एक तबका यह आवाज उठाने लगा है कि केवल मजहबी जुनून से कोई देश स्थिर नहीं रह सकता है। इससे बिखराव और विखंडन की स्थिति ही निर्मित होगी। यही वजह है कि पाकिस्तान में सिंध, बलूच, गिलगिट और बाजीरस्तान में पाक विरोधी स्वर मुखर हो रहे है।अमेरिका असमंजस की स्थिति से क्यों गुजर रहा है, यह इसलिए भी समझ से परे है क्योंकि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप स्वयं अगस्त 2017 में अमेरिकी सेना को संबोधित करते हुए कह चुके हैं कि पाकिस्तान को दी जाने वाली आर्थिक व सामरिक मदद अमेरिकी हितों के खिलाफ इस्तेमाल नहीं की जा सकती है। पाकिस्तान किसी भी सूरत में आतंक व आतंकी संगठनों के लिए मददगार साबित नहीं हो सकता है। भारत को अफगानिस्तान में अधिक निवेश करके उसके साथ उदार साझेदारी निभाने की जरूरत है। लगभग इन्हीं मुद्दों को रेक्स ने बिना किसी परिणाम की उम्मीद के बिना भारत की धरती से दोहराया है।

ट्रंप और टिलरसन के इन बयानों के बीच अक्टूबर 2017 में अमेरिका के सुरक्षा सचिव मेटिस ने यह कहकर अमेरिका की दुविधा जता दी थी कि अमेरिका पाकिस्तान पर एक बार फिर विश्वास करते हुए उसके साथ काम करने को इच्छुक है। इस बयान से यही अर्थ निकलता है कि आखिरकार अमेरिका पाकिस्तान के खिलाफ कोई कठोर कार्रवाई करने के पक्ष में नहीं है।

अमेरिका ने भारत के खिलाफ पाकिस्तान द्वारा दी गई परमाणु हमले की धमकियों पर भी कड़ी आपत्ति जताई थी। तब पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने कहा था कि पाक भारत के खिलाफ परमाणु हथियारों का इस्तेमाल कर सकता है। यही नहीं पाकिस्तान के विदेश सचिव ऐजाज चौधरी ने भी कहा था कि उनके देश ने कम क्षमता के सामरिक परमाणु हथियारों का विकास कर लिया है। पाकिस्तान को लेकर आशंका इसलिए ज्यादा है, क्योंकि वहां निर्वाचित राजनीतिक नेतृत्व कमजोर है। सुरक्षा संबंधी सारे फैसले सेना लेती है। १



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