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क्या राष्ट्रपति सिर्फ एक रबर स्टम्प होता है? जानिये उस राष्ट्रपति को जिनके दस्तखत से लागू हुई इमरजेंसी
Emergency Anniversary: इंदिरा गांधी द्वारा देश में आपातकाल (Emergency) लगाए जाने के प्रस्ताव पर साल 1975 में आज ही के दिन तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने हस्ताक्षर किया था।
Emergency Anniversary: क्या राष्ट्रपति केवल एक रबर स्टाम्प होता है। इस विषय पर गाहे-बगाहे बहस छिड़ ही जाती है। ऐसे समय में जब देश एक नया राष्ट्रपति चुनने से बस कुछ ही दिन दूर है, राष्ट्रपति की शक्तियों के बारे में भी चर्चा होना लाजमी है। आज ही के दिन 1975 में देश में इमरजेंसी (Emergency in India) घोषित की गयी थी। वो इमरजेंसी भी एक राष्ट्रपति के मुहर पर ही लागु हुई थी। अगर राष्ट्रपति उस समय अपना दस्तखत नहीं करते तो शायद देश को वो काला दौर नहीं देखना पड़ता।
देश में एक बार फिर राष्ट्रपति चुनाव को लेकर सियासी हलचल तेज है। सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों ने अपने उम्मीदवारों को मैदान में उतार दिया है। अगले माह 21 जुलाई को देश को एक नया राष्ट्रपति मिलेगा। आज 25 जून है, आज ही के दिन 1975 में देश को आपातकाल की बेड़ियों में बांध दिया गया था। तत्तकालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद (Fakhruddin Ali Ahmed) के एक दस्तखत ने देश में आपातकाल लगाने का मार्ग प्रशस्त किया था। ऐसे में राष्ट्रपति चुनाव के मद्देनजर उनका मूल्यांकन किया जाना जरूरी है।
देश में आपातकाल की घोषणा
आजादी के बाद के इतिहास में 25 जून 1975 की तारीख काफी मायने रखती है। ये वह दिन है जब दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को जंजीरों में बांध दिया गया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) ने आजादी के महज 28 साल बाद इस तारीख की आधी रात को देश में आपातकाल लगा दिया था। अगली सुबह समूचे देश के लोगों ने इंदिरा गांधी की आवाज में संदेश सुना कि भाईयों और बहनों राष्ट्रपति जी ने आपातकाल की घोषणा की है। मगर इससे सामान्य लोगों को डरने की जरूरत नहीं है।
आपातकाल और राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद
देश के पांचवे राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद उन व्यक्तियों में शुमार हैं, जिन्होंने देश में आपातकाल लगाने में खास भूमिका अदा की थी। 25-26 जून की रात को तत्तकालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कहने पर आपातकाल के आदेश पर दस्तखत किए थे। उनके दस्तखत के साथ ही इंदिरा गांधी को धारा 352 के तहत बेहिसाब ताकत मिल गया था, जिसका उन्होंने इमरजेंसी के दौरान कैसा इस्तेमाल किया, इसे बताने की जरूरत नहीं है। इस काले आदेश पर दस्तखत के साथ ही राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद देश की राजनीति में एक विलेन बन गए।
कहा जाता है कि आधी रात को जब राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद सोए हुए थे, तब उन्हें जगाकर आपातकाल के आदेश पर साइन करवाया गया था। उन्होंने ने भी बेहिचक कोई सवाल-जवाब किए इंदिरा गांधी के प्रति अपनी वफादारी को दिखाने के लिए इस पर हस्ताक्षर कर दिया। जबकि वह चाहते तो इस काले आदेश को देश में लागू होने से रोक सकते थे। प्रतिष्ठित अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस में उस समय छपे अबू अब्राहम का वह तीखा कार्टून आज भी याद किया जाता है, जिसमें बाथटब में नहाते हुए राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद अध्यादेश पर हस्ताक्षर कर रहे हैं। दस्तखत के लिए अगर और अध्यादेश हों तो वह नहा लेने का समय मांग रहे हैं। इस कार्टून के जरिए उन्हें तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी का रबड़ स्टाम्प बताने की कोशिश की गई है।
स्वतंत्रता सेनानी थे फखरुद्दीन अली अहमद
फखरुद्दीन अली अहमद देश के लिए आजादी की लड़ाई लड़ चुके हैं। 1942 में उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा भी लिया था और उन्हें साढ़े तीन साल की सजा सुनाई गई थी। आजादी के बाद वह कांग्रेस के जरिए राजनीति करने लगे। कैंब्रिज में कानून की पढ़ाई करने के दौरान उनकी दोस्ती पंडित नेहरू से हो गई थी। जिसका फायदा उन्हें बाद के दिनों में राजनीति में हुआ। गांधी परिवार के प्रति उनकी वफादारी को देखते हुए ही इंदिरा गांधी ने उन्हें 1974 में देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर बैठाया। अहमद राष्ट्रपति पद पर बैठने के बाद भी इंदिरा गांधी के प्रति अपनी वफादारी निभाना नहीं भूले और आपातकाल जैसे स्याह फैसले का समर्थन कर देश की राजनीति में हमेशा के लिए खलनायक बन गए। फखरुद्दीन अली अहमद का जन्म 13 जुलाई 1905 को दिल्ली में हुआ था। वह मूल रूप से असम के रहने वाले थे।
अब जरा आपातकाल के बैकग्राउंड को संक्षिप्त में जान लेते हैं। दरअसल 12 जून 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी के लोकसभा चुनाव को रद्द घोषित कर दिया था और उनके 1971 के चुनाव में उनके निकटतम प्रतिदंवदी रहे राजनारायण को विजेता घोषित कर दिया था। उन पर छह साल तक चुनाव न लड़ने का प्रतिबंध भी लगा दिया गया था। इस फैसले से इंदिरा और उनके बेटे परेशान संजय गांधी परेशान थे। इंदिरा किसी भी कीमत पर सत्ता छोड़ने के मूड में नहीं थीं और उनके छोटे बेटे संजय भी नहीं चाहते थे कि उनकी मां के हाथ से सत्ता चली जाए। उधर, विपक्ष लगातार सरकार पर दवाब बना रहा था। नतीजा ये हुआ कि इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 की आधी रात को देश में आपातकाल लागू करने का फैसला किया।