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आज का इतिहास: 12 जून को देश भर में सनसनी फैला दी थी इलाहाबाद HC ने, रद्द किया था इंदिरा गांधी का चुनाव
Aaj Ka Itihas : 21 मई का इतिहास इलाहाबाद HC के एक फैसले के कारण देश में बहुचर्चित तिथि है। आज ही के दिन 1975 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी के चुनाव लड़ने पर 6 साल का प्रतिबंध लगा दिया था।
Today History 12 June in Hindi : देश की सियासत में 12 जून की तारीख का अलग ही महत्व है। 47 साल पहले 1975 में आज ही के दिन इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ऐतिहासिक (Aaj Ka Itihas) फैसला सुनाया था। इसी दिन इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) के जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) को चुनाव में धांधली का दोषी ठहराते हुए उनका चुनाव रद्द कर दिया था। यही नहीं जस्टिस सिन्हा ने छह साल तक इंदिरा गांधी के चुनाव लड़ने पर भी प्रतिबंध लगा दिया था।
जस्टिस सिन्हा के इसी फैसले ने देश में इमरजेंसी की नींव रखी थी। देश में आपातकाल को काले दिनों के रूप में आज भी याद किया जाता है। इंदिरा गांधी के संबंध में इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस बड़े फैसले के बाद देश की सियासत हिल गई थी। इसका कारण यह था कि इंदिरा गांधी उस समय देश की सबसे ताकतवर नेता थीं। फैसला आने के बाद भी वे कुर्सी छोड़ने के लिए तैयार नहीं थीं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का भी दरवाजा खटखटाया मगर वहां से भी राहत न मिलने के बाद उन्होंने 25 जून,1975 को को देश पर इमरजेंसी थोप दी थी।
1971 के लोकसभा चुनाव से जुड़ा है मामला
दरअसल इस कहानी की शुरुआत 1971 के लोकसभा चुनाव से जुड़ी हुई है। 1971 के चुनाव में कांग्रेस ने इंदिरा गांधी की अगुवाई में भारी बहुमत हासिल करते हुए 352 सीटों पर जीत हासिल की थी। इंदिरा गांधी उस समय रायबरेली लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा करती थीं और उन्होंने 1971 के चुनाव में भी इसी सीट से जीत हासिल की थी। उन्हें संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार राजनारायण ने चुनौती दी थी मगर वे एक लाख से अधिक मतों से हार गए थे।
राजनारायण को इस हार से करारा झटका लगा क्योंकि वे काफी तैयारी के साथ चुनाव मैदान में उतरे थे। उन्हें अपनी जीत का पूरा भरोसा था। इसे इसी से समझा जा सकता है कि चुनाव नतीजों की घोषणा के पहले ही उन्होंने विजय जुलूस तक निकाल दिया था मगर बाद में पराजित होने पर उन्हें बड़ा झटका लगा। चुनावी हार के बाद उन्होंने इंदिरा गांधी पर धांधली और सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग करने का बड़ा आरोप लगाया।
चुनाव में धांधली का आरोप,मामला हाईकोर्ट पहुंचा
इस मामले को लेकर राजनारायण इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंच गए। उन्होंने इंदिरा गांधी की चुनावी जीत के खिलाफ याचिका दायर की। इस याचिका में उनका कहना था कि चुनावी जीत हासिल करने के लिए धांधली के साथ ही सरकारी मशीनरी का भी जमकर दुरुपयोग किया गया। उनका कहना था कि इस चुनाव को रद्द किया जाना चाहिए क्योंकि गलत तरीके अपनाकर जीत हासिल की गई है। इलाहाबाद हाईकोर्ट में इस याचिका पर जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने सुनवाई की थी। प्रधानमंत्री से जुड़ा हुआ मामला होने के कारण दोनों पक्षों की ओर से इस मामले में दमदार दलीलें पेश की गईं।
इंदिरा गांधी से पांच घंटे तक हुई जिरह
जगमोहन लाल सिन्हा को अलग मिजाज का जज माना जाता था और उन्होंने इस मामले में इंदिरा गांधी को भी कोर्ट में तलब कर लिया था। उनका यह आदेश काफी महत्वपूर्ण था क्योंकि देश के इतिहास में पहली बार प्रधानमंत्री को कोर्ट में पेश होना पड़ा। हाईकोर्ट के आदेश पर इंदिरा गांधी ने 18 मार्च 1975 को अपना बयान दर्ज कराया था। सुनवाई के दौरान उनसे करीब पांच घंटे तक जिरह गई थी। उनसे सवालों का लंबा सिलसिला चला था।
इंदिरा का चुनाव रद्द, 6 साल का बैन भी लगा
आखिरकार सारी दलीलों और जिरह के बाद 12 जून 1975 को इस महत्वपूर्ण मामले में फैसले की घड़ी आ गई। इलाहाबाद हाईकोर्ट का कोर्ट रूम नंबर 24 फैसला सुनने के लिए खचाखच भरा हुआ था। सबकी निगाहें जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा पर टिकी हुई थीं। कोर्ट रूम में ज्यादा भीड़ को रोकने के लिए बाकायदा पास तक जारी किए गए थे।
फ़ैसले के शुरुआत में ही जस्टिस सिन्हा ने स्पष्ट कर दिया कि राजनारायण की ओर से याचिका में उठाए गए कुछ मुद्दों को उन्होंने पूरी तरह सही पाया है। याचिका में राजनारायण की ओर से सात मुद्दे उठाए गए थे। इनमें से 5 मुद्दों पर तो उन्होंने इंदिरा गांधी को राहत दे दी मगर दो मुद्दों पर उन्होंने इंदिरा गांधी को दोषी ठहराया।
जस्टिस सिन्हा ने इस मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए न केवल इंदिरा गांधी के चुनाव को रद्द कर दिया बल्कि उनके 6 साल तक चुनाव लड़ने पर भी बैन लगा दिया। जस्टिस सिन्हा के यह फैसला सुनाते भी हड़कंप मच गया क्योंकि किसी को भी ऐसे फैसले की उम्मीद नहीं थी। इस फैसले से कांग्रेसी खेमे को जबर्दस्त झटका लगा।
सुप्रीम कोर्ट का भी राहत देने से इनकार
इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला आते ही दिल्ली में बैठकों का दौर शुरू हो गया। इन बैठकों में इंदिरा गांधी के सियासी भविष्य को लेकर पैदा हुई दिक्कतों पर गहराई से मंथन किया गया। आखिरकार इंदिरा गांधी को राहत दिलाने के लिए हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का फैसला किया गया। इंदिरा गांधी ने 23 जून, 1975 को हाईकोर्ट के इस फैसले पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की।
अत्यंत महत्वपूर्ण मामला होने के कारण सुप्रीम कोर्ट ने अगले दिन ही इस मामले में सुनवाई की। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जस्टिस वीआर कृष्णा अय्यर ने हाईकोर्ट के फैसले पर पूरी तरह रोक लगाने से इनकार कर दिया। हालांकि उन्होंने इंदिरा गांधी को राहत देते हुए यह जरूर कहा कि वे प्रधानमंत्री बनी रह सकती हैं। सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें संसद की कार्यवाही में हिस्सा लेने की इजाजत तो दे दे मगर वोट देने के अधिकार से वंचित कर दिया।
इंदिरा गांधी पर बढ़ा इस्तीफे का दबाव
इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला आते ही इंदिरा गांधी पर प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने का दबाव बढ़ने लगा था। विपक्षी नेताओं ने इस्तीफे की मांग को लेकर उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। जब इंदिरा गांधी को सुप्रीम कोर्ट से भी राहत नहीं मिली तो विपक्ष के तेवर और तीखे हो गए। विपक्ष की ओर से इंदिरा के इस्तीफे की मांग को लेकर 25 जून 1975 को दिल्ली के रामलीला मैदान में बड़ी रैली का आयोजन किया गया।
इस रैली में विपक्षी दलों के नेताओं के साथ लोकनायक जयप्रकाश नारायण भी मौजूद थे। रैली में अपने संबोधन के दौरान जेपी ने इंदिरा गांधी पर तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा कि अब इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री के पद पर रहने का कोई नैतिक अधिकार नहीं रह गया है। उन्होंने प्रसिद्ध कवि रामधारी सिंह दिनकर की एक कविता पढ़ते हुए देश के लोगों को नारा दिया-सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।
जेपी की रैली के बाद बैकफुट पर कांग्रेस
जयप्रकाश नारायण की रैली के बाद कांग्रेस पूरी तरह बैकफुट पर आ गई और इंदिरा गांधी पर इस्तीफे का दबाव और बढ़ गया। कांग्रेस में भी संकट से निपटने के लिए मंथन चल रहा था मगर किसी को कोई उपाय नहीं सूझ रहा था इंदिरा गांधी भी रामलीला मैदान की रैली के बाद जबर्दस्त दबाव और तनाव में आ गए थे। रैली के बाद बड़ा फैसला लेते हुए वे राष्ट्रपति भवन पहुंच गईं और उन्होंने तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन आमद से देश में आपातकाल लगाने को कहा। इंदिरा सरकार की सिफारिश पर राष्ट्रपति ने संविधान की धारा 352 के तहत है देश में इमरजेंसी को मंजूरी दे दी।
इंदिरा गांधी ने देश पर थोपी इमरजेंसी
26 जून 1975 की सुबह इंदिरा गांधी ने रेडियो पर देश को संबोधित किया और देशवासियों को इमरजेंसी लगाने की जानकारी दी। इमरजेंसी की घोषणा के बाद इंदिरा सरकार विपक्ष के आंदोलन को कुचलने में जुट गई। सरकार ने सारे लोकतांत्रिक अधिकारों को खत्म करते हुए लोकनायक जयप्रकाश नारायण समेत विपक्ष के सारे नेताओं को जेल भेज दिया।
इंदिरा गांधी के इस कदम को लेकर आज भी कांग्रेस को कटघरे में खड़ा किया जाता है। देश के इतिहास के इस काले अध्याय को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज भी कांग्रेस पर हमला करते हैं जिसका जवाब देना कांग्रेस के लिए आज भी काफी मुश्किल साबित होता है।