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कुरुक्षेत्र में आज भी मौजूद हैं महाभारत की निशानियां
कहा जाता है कि कुरुक्षेत्र का विस्तार 48 कोस में था। यह क्षेत्र आज के हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों तक फैला हुआ है।
कुरुक्षेत्र: जिस कुरुक्षेत्र में महाभारत का युद्ध हुआ था उस कुरुक्षेत्र (आसपास के इलाके भी) में 5500 साल बाद भी निशानियां मौजद हैं। कहा जाता है कि कुरुक्षेत्र का विस्तार 48 कोस में था। यह क्षेत्र आज के हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों तक फैला हुआ है। महाभारत के साक्ष्य कहीं धरती के नीचे दबे हुए हैं तो कहीं उत्खनन में उजागर हुए हैं।
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कुरुक्षेत्र हरियाणा राज्य का एक प्रमुख जिला
वर्तमान में अंबाला दिल्ली राजमार्ग और रेलमार्ग पर पर स्थित कुरुक्षेत्र हरियाणा राज्य का एक प्रमुख जिला और तिर्थस्थल है। इसका शहरी इलाका एक अन्य एतिहासिक स्थल थानेसर से मिला हुआ है। यही नहीं इसी कुरु क्षेत्र में ज्योतिसर नामक स्थान पर भगवान श्रकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था।
कुरुक्षेत्र का धार्मिक एवं ऐतिहासिक महत्व
ऐतिहासक प्रमाणों से स्पष्ट होता है कि इस क्षेत्र का इतिहास करीब 1500 ई.पूर्व भारत में आर्यों के बसने से जुड़ा है। पौराणिक महाकाव्य महाभारत की कथाओं से भी जुड़ा हुआ है। कुरुक्षेत्र का वर्णन श्रीमद्भगवद्गीता के पहले श्लोक में मिलता है।
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यह नहीं प्राचीन भारतीय इतिहास पर नजर डालें तो कुरुक्षेत्र पास ही स्थित थानेसर 606 से 647 तक सम्राट हर्ष की राजधानी रहा है। इस भव्य नगर को मुगल आक्रमणकारी महमूद गजनवी ने सन 1011 ई. में उजाड़ दिया था। प्राचीन नगर के अवशेष आज भी थानेसर और इसके आसपास के क्षेत्रों में मिल जाते हैं।
कभी वैदिक संस्कृति का केंद्र था कुरुक्षेत्र
हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार कुरुक्षेत्र ब्राह्मणकाल में वैदिक संस्कृति का केन्द्र था। जिसकी वहज से कुरुक्षेत्र को धर्मक्षेत्र भी कहा गया है। महंत आत्म प्रकाश शास्त्री के अनुसार कुरुक्षेत्र के महत्व व पौराणिक कथाओं का उल्लेख ब्राह्मण-ग्रन्थों- तैत्तिरीय ब्राह्मण और ऐतरेय ब्राह्मण में मिलता है।
इन ग्रंथों के मुताबिक सरस्वती ने कवष मुनि की रक्षा की थी। ऐतरेय ब्राह्मण में ही कुरुओं एवं पंचालों के देशों का उल्लेख किया गया है।
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सरस्वती नदी के तट पर होता था कुरुक्षेत्र
आत्म प्रकाश शास्त्री के अनुसार महाभारत के वनपर्व के 83वें अध्याय के अनुसार कुरुक्षेत्र को सरस्वती नदी के तट पर होना बताया गया है। वे कहते हैं यदि नारद पुराण का अध्ययन करें तो कुरुक्षेत्र के लगभग सौ तीर्थों के नाम दिये हैं।
जिसमें ब्रह्मसर तीर्थ प्रमुख है। नारद पुराण के अनुसार यहां पर राजा कुरु संन्यासी के रूप में निवास करते थे। कहा जाता है कि जो लोग कुरुक्षेत्र में आकर रहते हैं वे पाप मुक्त हो जाते हैं।
ब्रह्मसरोवर
कुरूक्षेत्र के पौराणिक स्थलों में से मुख्य है यहां का ब्रह्मसरोवर। यह सरोवर थानेसर में स्थित है। इस तीर्थ के बारे में कहा जाता है कि इसके महात्म का उल्लेख महाभारत और वामन पुराण में भी मिलता है।
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इस तीर्थ को ब्रह्मा से भी जोड़ा गया है। आत्म प्रकाश शास्त्री के अनुसार यह वही सरोवर है जिसके पानी में खुद को बचान के लिए दुर्योधन छिप गया था। सूर्यग्रहण के दिन यहां पर विशाल मेले का आयोजन किया जाता है।
इस दौरान लाखों लोग ब्रह्मसरोवर में स्नान करते हैं। यहां दिसंबर में प्रति वर्ष गीता जयंती मनाई जाती है। जिसमें देश-विदेश लाखों लोग पहुंचते हैं।
यही भगवान श्री कृष्ण ने दिया अर्जुन को उपदेश
कुरुक्षेत्र के थानेसर करीब पांच की दूर स्थित है ज्योतिसर। कहा जाता है कि इसी स्थान पर आज से करीब साढ़े पांच हजार साल पहले भगवान श्री कृष्ण ने एक वट वृक्ष्ा के नीचे अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था।
यहां मौजूद वट बृक्ष को महाभारत कालीन बताया जाता है। मान्यता है कि इसी बरगद के नीचे कृष्ण ने अर्जुन को अपना विराट रूप दिखाया था। इसी पेड़ के नीचे एक चबूतरा है। कहा जाता है कि इसका निर्माणा दरभंगा नरेश ने करवाया था।
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सन्निहित सरोवर में पांडवों ने किया था पिंडदान
कुरु क्षेत्र के अन्य दर्शनीय स्थलों में से एक सन्निहित सरोवर है। इस सरोवर के पास श्री कृष्ण संग्रहालय भी है। सन्निहित सरोवार के बारे में कहा जाता है कि महाभारत युद्ध के बाद पांडवों ने युद्ध में मारे गए लोगों की मुक्ति के लिए के लिए तर्पण और पिंड-दान किया था। यहां आमावश्या के दिन भारी भीड़ रहती है और सरोवर में स्नान-दान करते हैं।
कैसे पहुंचे
कुरु क्षेत्र पहुंचने के लिए सड़क और रेल की उत्तम व्यवस्था है। कुरुक्षेत्र दिल्ली-अंबाला रेलखंड पर स्थित है। कुरुक्षेत्र जंक्शन मुख्य रेलवे स्टेशन है। यहां का निकटतम हवाई अड्डा चंडीगढ और दिल्ली है। यहां से निजी साधनों क्षरा पहुंचा जा सकता है।
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रिपोर्ट- दुर्गेश पार्थसारथी