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जानिए क्या है ट्रिपल तलाक और हलाला का इससे वास्ता?

Gagan D Mishra
Published on: 22 Aug 2017 1:06 PM IST
जानिए क्या है ट्रिपल तलाक और हलाला का इससे वास्ता?
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ट्रिपल तलाक दरअसल है क्या और हलाला का क्यों है इससे वास्ता?

लखनऊ: आज जब कि ट्रिपल तलाक के मसले पर सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए इस पर फौरी तौर पर 6 महीने के लिए रोक लगाई है और देश की संसद को इस पर कानून बनाने को कहा है, इस मसले ने पूरे देश का ध्यान अपनी ओर खीचा है और देश के हर तबके में खासकर मुस्लिमों में ये सबसे ज्यादा चर्चित विषय रहा है।

हम यहां आपको दरअसल ट्रिपल तलाक है क्या और कैसे ये मुस्लिम महिलाओं के जीवन को प्रभावित करता है उस विषय मे संक्षेप मे जानकारी देने जा रहे हैं। ईसाईयों से इतर मुसलमानों में विवाह की परंपरा बिल्कुल अलग है। मुस्लिम ला के अंतर्गत विवाह को केवल एक संस्कार के रुप में ही नहीं देखा जाता बल्कि एक सिविल कांट्रेक्ट के तौर पर लिया जाता है और ये कान्ट्रै्क्ट आपसी सहमति के आधार पर दो पार्टियों के बीच कुबुलनामे के तहत तय होता है।

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त्वरित ट्रिपल तलाक अथवा तलाक-ए-बिदत एक प्रथा है जिसे न्यायालय में चुनौती दी गई है। ये उस तलाक-ए- सुन्नत प्रथा से अलग है जो कि मुस्लिमों में किसी भी विवाह को आदर्श तरीके से खत्म करने का तरीका है।

अगर तलाक-ए-सुन्नत की बात करें तो इस प्रथा में पति जब अपनी पत्नी को तलाक की घोषणा करता है तो पत्नी को तीन महीने की इद्दत का समय मिलता है जिसमें तीन माहवारी शामिल है और इस बीच में पति चाहे तो अपनी पत्नी से विवाद को खत्म करके समझौता कर सकता है। इन तीन महीनों में यदि पति पत्नी के बीच सहवास हो जाए तो तलाक अपने आप ही खत्म हो जाता है। लेकिन अगर तीन महीने बीत जाते हैं और पति द्वारा तलाक वापस नही लिया जाता और इसका अंत नहीं होता है तो उस स्थिति में तलाक को अंतिम मान लिया जाता है।

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जबकि तलाक-ए-बिद्दत के केस में जब कोई व्यक्ति एक बार में ही तीन तलाक की घोषणा करता है, या फोन पर ऐसा करता है, तलाकनामे पर लिख देता है या फिर एसएमएस पर लिखता है। ऐसी सूरत में तलाक फौरी तौर पर हो जाता है और इसे वापस नहीं लिया जा सकता। ऐसी सूरत में भी नहीं जब कि वो व्यक्ति खुद इसे वापस लेना चाहे। ऐसा केवल एक ही सूरत में हो सकता है जबकि निकाह हलाला किया जाए। निकाह हलाला की रश्म में उस महिला की दोबारा शादी कराई जाती है और फिर तलाक कराया जाता है जिसमें तीन महीने की इद्दत पीरियड भी शामिल है उसके बाद ही वो अपने पति के पास वापस आ सकती है। तलाक-ए-बिद्दत की परंपरा व्यवहारिक रुप से तो घृणास्पद मानी जाती है लेकिन मुस्लिम कानून के हिसाब से सही ठहराई जाती रही है।

अब जब कि आज सुप्रीम कोर्ट ने इसके ऊपर 6 महीने की रोक लगाई है। इस मसले पर बहस और तेज हो गई है।

Gagan D Mishra

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