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त्रिपुरा विधानसभा चुनाव : वजूद के लिए कसरत कर रही कांग्रेस
त्रिपुरा विधानसभा चुनाव जहां भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए राज्य में उगते सूरज की किरण लेकर आ रहा है, तो वहीं देश में अपने खोते अस्तित्व को बचाने में जुटी कांग्रेस के लिए यह किसी जंग से कम नहीं है। कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती उन सीटों को बचाना होगी, जहां से पार्टी की टिकट पर चुनाव जीतने वाले विधायक भाजपा के साथ जा चुके हैं, जिसमें सबसे पहला नाम मोहनपुर विधानसभा सीट का आता है।
वर्तमान विधानसभा में अपनी अस्तित्व को बचाने में जुटी कांग्रेस के सिर्फ दो ही विधायक हैं। दरअसल पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के वामपंथी दलों से हाथ मिलाने के बाद कांग्रेस के छह विधायक तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए थे। जिसके बाद से पार्टी अपनी अंदरूनी लड़ाई लड़ रही है।
बात करें क्षेत्रीय राजनीति की तो 1972 में पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त होने के बाद मोहनपुर विधानसभा सीट पर 1972 और 1977 में हुए चुनाव में माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के राधारमन देब नाथ ने जीत हासिल की थी। लेकिन इसके बाद 1983 से लेकर 2013 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने इस सीट को गंवाया नहीं।
1983 और 1988 में कांग्रेसी नेता धीरेंद्र नाथ देबनाथ और 1993, 1998, 2003, 2008 और 2013 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के दिग्गज नेता रतन लाल नाथ ने इस सीट को कांग्रेस की सबसे अहम सीटों में शुमार कर दिया। पिछले 25 सालों से राज्य की सत्ता पर काबिज माकपा के लिए हर बार मोहनपुर विधानसभा सीट को जीतना टेढ़ी खीर रहा।
2018 के विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस का दामन छोड़ विधायक रतन लाल नाथ 22 दिसंबर को भाजपा में शामिल हुए थे। वह विधानसभा में विपक्ष के नेता की भूमिका निभा रहे थे। कांग्रेस के बागी नेता रतन लाल उस वक्त सुर्खियों में थे, जब 17 जुलाई को राष्ट्रपति चुनाव में नाथ ने राजद के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद को वोट दिया था।
रतन के ऊपर भाजपा नेताओं से करीबी संबंध के आरोप लगे थे, जिसके चलते उन्हें कारण बताओ नोटिस भी जारी किया गया था। रतन लाल कई बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार की नीतियों की तारीफ कर चुके थे और अंत में वह भाजपा में शामिल हो गए। भाजपा ने पांच बार के विधायक और बागी रतन लाल नाथ को ही मोहनपुर विधानसभा सीट से अपना उम्मीदवार घोषित किया है।
कांग्रेस ने मोहनपुर क्षेत्र से दिलीप कुमार घोष को मैदान में उतारा है। दिलीप त्रिपुरा कांग्रेस प्रदेश इकाई के कार्यकारी सदस्य हैं। इस चुनाव में दिलीप पर न केवल इस सीट को दोबारा से कांग्रेस के खेमे में लाने की होगी, बल्कि उनके ऊपर रतन लाल नाथ जैसे दिग्गज नेता को हराने की चुनौती होगी। इसके अलावा हमेशा से इस सीट को जीतने की जद्दोजहद में दिखी माकपा ने सुभाष चंद्र देवनाथ को टिकट दिया है। आमरा बंगाली पार्टी ने हरलाल देबनाथ को चुनाव मैदान में उतारा है।
युवा नेता माकपा से टकराने को तैयार
सत्तारूढ़ माकपा के साथ-साथ राज्य सरकार के मंत्रियों के लिए यह चुनाव खासा चुनौतीपूर्ण होने जा रहा है। सरकार के साथ पार्टी के कद्दावर नेताओं की किस्मत भी चुनाव के मैदान में दांव पर लगी है। इस सूची में मजलिशपुर विधानसभा क्षेत्र से माकपा उम्मीदवार और वर्तमान सरकार में मंत्री माणिक डे शामिल हैं।
1977 में यहां पहली बार विधानसभा चुनाव हुए, जिसमें माकपा के खगेन दास ने कांग्रेस को हराकर जीत हासिल की। इसके बाद 1983 में भी उन्होंने जीत दर्ज की, लेकिन 1988 में कांग्रेस के दीपक नाग ने दास की जगह चुनाव लड़ रहे माणिक डे को हराकर सीट माकपा से छीन ली और अगले चुनाव में भी इस सीट पर अपना दबदबा कायम रखा। लेकिन 1998 में माकपा के टिकट पर चुनाव लडऩे वाले माणिक डे ने न सिर्फ जीत दर्ज की, बल्कि उसके बाद लगातार तीन चुनाव जीतकर खुद को पार्टी के कद्दावर नेताओं में शुमार कर दिया। माणिक डे वर्तमान वाम मोर्चे की सरकार में ऊर्जा, शहरी विकास, ग्रामीण विकास और परिवहन मंत्री का पदभार संभाल रहे हैं।
माणिक डे ने 1988 में मजलिशपुर सीट से चुनाव लड़ा था, लेकिन वह कांग्रेस के दीपक नाग से मात्र 306 वोटों से चुनाव हार गए थे, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने क्षेत्र की जनता के लिए काम किया और 1998 में चुनाव जीतकर इस सीट का माकपा के लाल रंग में रंग दिया। उनका क्षेत्र की जनता पर प्रभुत्व दिखाता है कि उन्होंने 1998,2003 और 2008 में कांग्रेस के उम्मीदवार और दो बार के विधायक दीपक नाग को बड़े अंतर से हराया। माणिक हाल ही में भाजपा उम्मीदवार सुशांत चौधरी पर हमला कराने के आरोप का सामना कर रहे हैं।
ऋषियामुख पर माकपा को चुनौती देना मुश्किल
ऋषियामुख विधानसभा सीट पर अब तक हुए कुल नौ विधानसभा चुनावों में से अगर 1972 और 1993 के चुनावों को छोड़ दें, तो इस सीट पर माकपा के बादल चौधरी ने सात में जीत दर्ज की है। माणिक सरकार में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, राजस्व और लोक निर्माण मंत्री बादल चौधरी राज्य के कद्दावर माकपा नेताओं में से एक हैं। बादल चौधरी क्षेत्र में अपनी साफ सुथरी छवि के लिए जाने जाते हैं।
बतौर 35 साल के लंबे कार्यकाल में उनके ऊपर कोई भी आपराधिक मामला दर्ज नहीं है। माकपा ने बादल पर एक बार फिर से दांव आजमाया है और वह रिकॉर्ड 10वीं बार चुनाव मैदान में हैं। वहीं भाजपा ने बादल के किले में सेंध लगाने के लिए अपने युवा नेता आशीष वैद्य को उतारा है। आशीष ऋषियामुख में भाजपा प्रदेश इकाई के मंडल अध्यक्ष हैं। कांग्रेस ने अपने अनुभवी नेता दिलीप कुमार चौधरी पर फिर से भरोसा जताया है।
दिलीप ने 1993 में माकपा के बादल चौधरी को शिकस्त दी थी, लेकिन अगले तीन चुनाव 1998, 2003 और 2008 में उन्हें बादल के हाथों शिकस्ता का सामना करना पड़ा। इसके बाद पार्टी ने 2013 में दिलीप का टिकट काटकर सुशांकर भौमिक को खड़ा किया, लेकिन नतीजे वहीं रहे और बादल विजयी रहे। राज्य में पिछले 25 सालों के माकपा के शासन में उसकी सुरक्षित सीटों ने बहुत साथ दिया है। ऋषियामुख भी उन्हीं सीटों में से एक है।
प्रतापगढ़ पर सटीक बैठेगा ‘चलो पालटाई’ का नारा!
पश्चिमी त्रिपुरा का प्रतापगढ़ विधानसभा क्षेत्र माकपा के सबसे सुरक्षित किलों में से एक है। 1972 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के मधुसूदन दास ने यहां से जीत हासिल की थी, लेकिन 1977 में माकपा नेता अनिल सरकार ने उन्हें हराकर यह सीट हासिल की थी। वर्ष 1977 में जीत के बाद लगातार सात और कुल आठ चुनाव जीत कर अनिल सरकार ने राज्य की राजनीति में अपनी धाक जमा ली।
शिक्षक से राजनेता बने अनिल सरकार ने 1978 के बाद से वाम मोर्चे की सात सरकारों में से छह में बतौर मंत्री के रूप में अपनी सेवाएं दी थीं। अनिल सरकार 1956 में भाकपा में शामिल हुए थे और 1964 में माकपा की स्थापना के दौरान वह पार्टी के सदस्य बने। 1972 में उन्हें कांग्रेस शासन काल में जेल जाना पड़ा था।
उन्होंने 1971 में नौ महीने के लंबे बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान त्रिपुरा में आश्रित लाखों शरणार्थियों को राहत और आश्रय प्रदान करने में एक अहम भूमिका निभाई थी। 10 फरवरी, 2015 को सरकार के निधन के बाद प्रतापगढ़ विधानसभा सीट खाली हो गई, जिस पर हुए उपचुनाव में माकपा के ही रामू दास ने अपनी भाजपा प्रतिद्वंद्वी मौसमी दास को 17 हजार से ज्यादा मतों से हराया।
भाजपा ने कांग्रेस उम्मीदवार रंजीत कुमार दास को तीसरे नंबर पर धकेल दिया था। उपचुनाव में भाजपा को 10,229 मत प्राप्त हुए थे तो वहीं कांग्रेस को 5,187 मत। उपचुनाव में मिली जीत के बाद माकपा ने प्रतापगढ़ विधानसभा चुनाव 2018 के लिए फिर से रामू दास पर भरोसा जताया है। रामू पर अनिल सरकार के करिश्मे और उनकी विरासत को आगे बढ़ाने का दबाव होगा। भाजपा ने इस बार यहां से रेवती मोहन दास को टिकट दिया है।
दास भाजपा राज्य इकाई में आमंत्रित सदस्य हैं। वहीं कांग्रेस ने यहां से अर्जुन दास को अपना उम्मीदवार घोषित किया है। 1972 में मधुसूदन को मिली जीत कांग्रेस के लिए यहां पहली और अंतिम जीत रही है। इसके अलावा तृणमूल कांग्रेस के मिथुन दास और आमरा बंगाली के उम्मीदवार वीरेंद्र दास चुनाव मैदान में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं।