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Buddha Purnima 2022: पूरा विश्व मना रहा है बुद्ध पूर्णिमा, क्यों है तीन रूपों में इसका महत्व, जानिये बहुत महत्व की जानकारी

Buddha Purnima 2022 : वैशाख माह की पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा कहते हैं। वैसे प्रचलन में इसे त्रिविधपावनी बुद्ध पूर्णिमा कहने की परम्परा है।

Rajesh Chandra (Famous Scholar Buddhist Philosophy)
Published on: 16 May 2022 8:18 AM IST (Updated on: 16 May 2022 8:51 AM IST)
Buddh Purnima 2022
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Buddh Purnima 2022

Buddha Purnima 2022 : वैशाख माह की पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा कहते हैं। वैसे प्रचलन में इसे त्रिविधपावनी बुद्ध पूर्णिमा कहने की परम्परा है। त्रिविधपावनी का अर्थ होता है- तीन रूपों में पावन। अब तक के ज्ञात इतिहास में यह सर्वाधिक अनूठी घटना है कि 563 ईसा पूर्व जिस दिन राजकुमार सिद्धार्थ गौतम का जन्म हुआ उस दिन वैशाख की पूर्णिमा थी।

राजकुमार सिद्धार्थ गौतम का जन्म लुम्बिनी में हुआ था। बौद्धों के चार महातीर्थों में भगवान बुद्ध का जन्म स्थल लुम्बिनी प्रथम तीर्थस्थान है। 29 वर्ष की आयु में राजकुमार सिद्धार्थ गौतम ने महाभिनिष्क्रमण किया अर्थात गृह त्याग किया। 35 वर्ष की आयु में वह ज्ञान को उपलब्ध हुए। उरुवेला में निरंजना नदी के तट पर पीपल के पेड़ के नीचे वह बुद्ध हो गए, जिस दिन वह बुद्धत्व को उपलब्ध हुए उस दिन भी वैशाख की पूर्णिमा थी। वह स्थान आज विश्वतीर्थ है- जिसे बोधगया कहते हैं। पीपल के जिस पेड़ के नीचे वह बुद्धत्व को उपलब्ध हुए उसे बोधि वृक्ष कहते हैं।


सारी दुनिया से बौद्ध श्रद्धालु इस तीर्थ स्थान के दर्शन करने आते हैं। न केवल बौद्ध बल्कि अन्य धर्मावलंबियों के लिए भी बोधगया एक दर्शनीय पावन स्थल है। आने वाले जीवन में 45 वर्षों तक भगवान बुद्ध पूरे देश में चारिका करते हुए लोगों को ज्ञान देते रहे, उपदेश देते रहे, जन-जन में मैत्री, करुणा, समता, बन्धुता तथा ध्यान-साधना-विपस्सना का प्रचार करते रहे। लगभग 80 वर्ष की आयु में वे महापरिनिर्वाण को उपलब्ध हुए, कुसीनारा में, जिसे अब कुशीनगर कहते हैं। जिस दिन वह महापरिनिर्वाण को उपलब्ध हुए उस दिन भी वैशाख की पूर्णिमा थी। कुशीनगर भी बौद्धों के चार महातीर्थों में गणनीय है।

भगवान बुद्ध के जीवन की तीन घटनाएं

जन्म, बुद्धत्व उपलब्धि और महापरिनिर्वाण- एक ही तिथि को हुईं- वैशाख पूर्णिमा को। इस नाते बुद्ध पूर्णिमा को त्रिविधपावनी बुद्ध पूर्णिमा कहते हैं।

महापरिनिर्वाण भी पावन

एक बारीक बात और भी समझने जैसी है कि जन्म किसी का भी हो उसे पावन ही माना जाता है। आम जन में भी जब किसी बच्चे का जन्म होता है तो बड़ा उत्सव मनाया जाता है। मंगल गीत गाए जाते हैं। बधाइयां दी जाती हैं। जन्म पावन है। कोई परम ज्ञान को उपलब्ध हो जाए तो वह भी पावन तिथि हो जाती है। सिक्ख समाज (Sikh Samaj) अपने गुरूओं के जन्मदिन और ज्ञान दिवस को प्रकाश उत्सव के रूप में मनाता है। मुस्लिम भाई हज़रत मुहम्मद साहब के जन्मदिन और इल्हाम के दिन पर रोशनी करते हैं। इसाई समाज में जीसस के जन्मदिन और ज्ञान दिवस पर गिरजाघरों में मोमबत्तियाँ जलायी जाती हैं।

लेकिन किसी के भी जीवन के आखिरी दिन को पावन नहीं माना जाता। कोई नहीं कहता कि आज बड़ा पावन दिन है कि अमुक व्यक्ति की बरसी है। यूँ औपचारिकतावश पुण्य तिथि कह देने की परम्परा-सी है लेकिन वास्तव में किसी के भी जीवन के आखिरी दिन को पावन तिथि नहीं माना जाता। सच तो यह है कि उस दिन लोग थोड़ा उदास और भावुक होते हैं। लेकिन भगवान बुद्ध के महापरिनिर्वाण दिवस को भी तीन पावन तिथियों में से एक पावन तिथि माना गया है। कारण? क्यों कि भगवान बुद्ध के जीवन की अन्तिम तिथि को बौद्ध कभी मृत्यु नहीं कहते बल्कि महापरिनिर्वाण कहते हैं।


दरअसल हम जिस मृत्यु से वाकिफ हैं वह जन्म के विपरीत एक घटना होती है। ज्यादातर धार्मिक और दार्शनिक मतों में मृत्यु के बाद पुनर्जन्म का सिद्धांत है। यहाँ तक कि इस्लाम और यहूदी मत में भी क़यामत के दिन रूहों के दोबारा जी उठने की मान्यता है। लेकिन भगवान बुद्ध के महापरिनिर्वाण को बौद्ध कभी मृत्यु नहीं कहते बल्कि महापरिनिर्वाण कहते हैं क्योंकि बुद्ध जिस अवस्था को उपलब्ध हुए हैं उसके बाद अब उनका जन्म नहीं होना है, वह जन्म-मृत्यु के चक्र को तोड़ कर महापरिनिर्वाण को उपलब्ध हो गये हैं। ऐसा प्रस्थान भी पावन होता है। इसलिए भगवान बुद्ध के महापरिनिर्वाण को भी तीन पावन तिथियों में से एक पावन तिथि माना गया है।

जवाहर लाल नेहरू (Jawahar Lal Nehru) के निजी सचिव एम. ओ. माथाई (Private Secretary M.O. Mathai) ने अपनी आत्मकथा- रैमिनीसेन्सेस ऑफ दि नेहरू एज- नेहरू युग के संस्मरण- में अपने आवास पर एक निजी वार्ता के सन्दर्भ में बाबा साहेब डा. बी. आर. अम्बेडकर के एक कथन का उल्लेख किया है- "भारत ने आज तक बुद्ध से बड़ा सपूत पैदा नहीं किया है..."


बुद्ध जयंती को मनाता है पूरा विश्व

यह एक सार्वभौमिक व सार्वकालिक सत्य होता जा रहा है। यह भारत के लिए अपार गर्व की बात है कि एकमेव यह महानतम सपूत के कारण पूरी दुनियाा में आज तक भारत आदर पा रहा है और यह सपूत भी पूरी दुनिया में पूजित होता रहा है। भारत का ऐसा दूसरा कोई व्यक्तित्व नहीं है जिसकी जयंती पूरी दुनिया मनाती हो। भारत का कोई ऐसा पर्व या त्योहार नहीं जिसे पूरी दुनिया मनाती हो! सिर्फ बुद्ध जयंती है जिसे पूरा विश्व मनाता है। विश्व का कोई ऐसा महाद्वीप नहीं है, जहाँ बुद्ध पूर्णिमा न मनायी जा रही हो। सर्वोपरि तो संयुक्त राष्ट्र संघ भगवान बुद्ध की जयंती मनाता है, वर्ष 2009 से उसने बुद्ध पूर्णिमा को अपने अन्तरराष्ट्रीय पर्वों की सूची में सम्मिलित किया हुआ है। अपने चार्टर में उसने युद्धरहित दुनिया के आह्वान के लिए भगवान बुद्ध के वचनों को सन्दर्भित किया हुआ है- धम्मपद से।


संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव एंटोनियो गुटेरस कथन है

  • "एकता और सेवा करने का बुद्ध का संदेश बहुत महत्व रखता है। कोरोना वायरस के प्रकोप को रोकने के लिए बुद्ध के ज्ञान को अपनाना होगा।"
  • अमेरिका के कोलाराडो स्टेट ने आगामी बुद्ध पूर्णिमा को वेसाक-डे अर्थात वैशाख दिवस के रूप में मनाने का राजपत्र जारी किया है। व्हाइट हाउस में बुद्ध जयंती मनायी जा रही है। भारत का दूसरा कोई भी महामानव ऐसा नहीं है, जिसकी जयंती को पूरी दुनिया के हर देश में मनायी जा रही है।
  • हमें गर्व है कि हम उस भूमि से हैं जहाँ बुद्ध जन्मे, जहाँ बुद्धत्व का फूल खिला। दुनिया महामारी व युद्ध से मुक्त हो। दुनिया मैत्री व प्रेम से युक्त हो!


बौद्ध दर्शन के विश्व विख्यात अध्येता व मर्मज्ञ राजेश चंद्रा का परिचय


राजेश चन्द्रा वर्ल्ड कान्स्टिट्यूशन एण्ड पार्लियामेन्ट एसोसिएशन, अमेरिका तथा हीवेनली कल्चर फाॅर वर्ल्ड पीस एण्ड रिस्टोरेशन ऑफ लाइट, साउथ कोरिया के मानद सदस्य, शैक्षिक पृष्ठभूमि से टेक्नोक्रैट, एम. टेक. (साफ्टवेयर), सेन्टर फाॅर रेलवे इन्फॉर्मेशन सिस्टम्स (क्रिस) में साफ्टवेयर इंजीनियर के रूप में सेवाएं प्रदान कर चुके हैं तथा वर्तमान में उत्तर प्रदेश शासन में प्रथम श्रेणी अधिकारी के पद पर कार्यरत हैं। राजेश चन्द्रा अब तक दो दर्जन से अधिक पुस्तकों के रचयिता हैं।

वे मूलत: बौद्ध दर्शन के विश्वविख्यात अध्येता व मर्मज्ञ हैं। वे भगवान बुद्ध की वाणी के प्रमाणिक संग्रह त्रिपिटक के आधिकारिक विद्वान हैं तथा भगवान बुद्ध के वचनों को आधुनिक सन्दर्भों में प्रस्तुत करने में सिद्धहस्त हैं। उनकी सर्वाधिक प्रसिद्ध कृति 'बुद्ध का चक्रवर्ती साम्राज्य' की भूमिका लिख कर परम पावन दलाई लामा ने उनकी लेखनी को आशीर्वाद प्रदान किया है। धम्मपद समग्र संगायन का पालि-हिंदी ऑडियो संस्करण आपकी सर्वाधिक लोकप्रिय कृति है। 'महापरित्राण पाठ' का ऑडियो संस्करण आपकी अगली महत्वाकांक्षी परियोजना है। ये दोनों कृतियाँ विश्व की पहली अनूठी कृतियाँ हैं। इससे पूर्व धम्मपद तथा सम्पूर्ण परित्त पाठ का समग्र सपुस्तक ऑडियो संस्करण पूरे विश्व में कहीं उपलब्ध नहीं है।

वैज्ञानिक अध्यात्मवाद श्री चन्द्रा का प्रमुख विषय है। वे हिन्दी की प्रख्यात पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से लिखते रहते हैं। उन्होंने 'फ्रेंड्स ऑफ वेस्टर्न बुद्धिस्ट ऑर्डर' इंग्लैंड के इतिहास पर ब्रिटिश धम्मचारी सूर्यप्रभा द्वारा निर्मित और निर्देशित चार खंडों की अंग्रेजी फिल्म तथा अमेरिका के अंबेडकर अध्ययन के विशेषज्ञ मोनिका फूटे द्वारा निर्मित डाक्यूमेंट्री 'राइजिंग लाइट' का हिंदी अनुवाद भी किया है। श्री चन्द्रा का हिन्दी, अंग्रेज़ी, संस्कृत, पालि, भोजपुरी पर समान अधिकार है। उनकी हर पुस्तक आन्तरिक अन्वेषण व शोध पर आधारित होती है।

आकाशवाणी, दूरदर्शन तथा विभिन्न टीवी चैनलों पर श्री चन्द्रा को बुद्ध धम्म के विशेषज्ञ के रूप में आमंत्रित किया जाता है। साथ ही ऑनलाइन माध्यमों पर व्याख्यानों के लिए आपकी देश-विदेश में मांग रहती है। वे एक प्रखर वक्ता हैं। शब्दों व वाणी पर आपका प्रभावी अधिकार है। विद्यालयों, महाविद्यालयों तथा विश्वविद्यालयों में आपको ध्यान व प्रबोधन सत्रों के लिए आमन्त्रित किया जाता है। वे ध्यान-साधना की विविध पद्यतियों के अनुभवसिद्ध जानकार हैं। उन्हें अपने समकालीन उन्नत गुरुओं यथा परम पावन दलाई लामा, पूज्य तिक न्हात हन्ह (वियतनाम), विपस्सना आचार्य सत्य नारायण गोयनका, डा. ब्रान्कट सित्थिपोल (थाई माता), पूज्य लांगफा सानोंग (थाईलैण्ड) आदि का आशीर्वाद प्राप्त है। आप सक्रिय समाज सेवी, धम्म व ध्यान प्रशिक्षक तथा उत्तर भारत के केन्द्र लखनऊ में अन्तरराष्ट्रीय त्रिपिटक संगायन के संयोजक हैं।



Deepak Kumar

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