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Maharashtra Politics: चुनावी हार के बाद नई उलझन में फंसे उद्धव ठाकरे, हिंदुत्व की ओर लौटने का बढ़ रहा दबाव

Maharashtra Politics: उद्धव सेना की बैठक के दौरान एक बार फिर हिंदुत्व का मुद्दा उठा। बैठक के दौरान कई वक्ताओं का कहना था कि पार्टी को हिंदुत्व की विचारधारा छोड़कर कांग्रेस से हाथ मिलाने का खामियाजा भुगतना पड़ा है।

Anshuman Tiwari
Written By Anshuman Tiwari
Published on: 29 Nov 2024 8:58 AM IST
Uddhav Thackeray
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Uddhav Thackeray  (photo: social media )

Maharashtra Politics: महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में मिली बड़ी हार के बाद विभिन्न राजनीतिक दलों ने अब समीक्षा का काम शुरू कर दिया है। हिंदुत्व की विचारधारा छोड़कर कांग्रेस और एनसीपी से हाथ मिलाने वाले उद्धव ठाकरे भी अपनी पार्टी को मिली करारी हार के बाद संकट में फंसे हुए दिख रहे हैं। उद्धव सेना की बैठक के दौरान एक बार फिर हिंदुत्व का मुद्दा उठा। बैठक के दौरान कई वक्ताओं का कहना था कि पार्टी को हिंदुत्व की विचारधारा छोड़कर कांग्रेस से हाथ मिलाने का खामियाजा भुगतना पड़ा है।

उल्लेखनीय बात यह है कि इसी मुद्दे को लेकर पार्टी में एकनाथ शिंदे की अगुवाई में बड़ी बगावत हुई थी जिसके बाद उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था। उद्धव ठाकरे को विधानसभा चुनाव से बड़ी उम्मीदें थीं मगर विधानसभा चुनाव के दौरान पार्टी को सिर्फ 20 सीटों पर ही जीत हासिल हो सकी है। इस बड़ी चुनावी हार के बाद पार्टी में संगठन को मजबूत बनाने और अपने दम पर चुनाव लड़ने की मांग उठने लगी है।

हिंदुत्व की विचारधारा से समझौते का आरोप

शिवसेना में जून 2022 में भी हिंदुत्व का मुद्दा उठा था और इसके बाद एकनाथ शिंदे की अगुवाई में 40 विधायक शिवसेना से अलग हो गए थे। उन्होंने शिंदे की अगुवाई में अलग गुट बना लिया था। उस समय तेजतर्रार नेता एकनाथ शिंदे और अन्य विधायकों ने आरोप लगाया था कि उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस के साथ हाथ मिलाकर हिंदुत्व के साथ समझौता किया है।

इसके साथ ही उद्धव ठाकरे पर बाल ठाकरे की विचारधारा के विपरीत जाकर काम करने का बड़ा आरोप भी लगा था। पिछले दिनों हुए लोकसभा चुनाव के दौरान उद्धव सेना को तो ज्यादा फायदा नहीं हुआ मगर कांग्रेस को काफी फायदा हुआ था। इसके बाद उद्धव ठाकरे की निगाहें विधानसभा चुनाव पर लगी हुई थीं मगर विधानसभा चुनाव के दौरान शिंदे सेना ने 57 सीटों पर जीत हासिल की है जबकि उद्धव ठाकरे की शिवसेना 20 सीटों पर ही सीमित गई है।

कांग्रेस के साथ हाथ मिलाने पर उठे सवाल

इस बड़ी चुनावी हार के बाद उद्धव ठाकरे के आवास मातोश्री पर हुई पार्टी नेताओं की बैठक के दौरान पार्टी नेताओं ने कांग्रेस के साथ हाथ मिलाने पर सवाल उठाए। पार्टी नेताओं का कहना था कि हमें मुंबई की ऐसी सीटों पर भी चुनावी हार का सामना करना पड़ा जिन्हें अभी तक हमारा गढ़ माना जाता रहा है। इसका एकमात्र कारण यह था कि हमने कांग्रेस के साथ हाथ मिलाने के साथ ही हिंदुत्व की विचारधारा के साथ समझौता किया।

इस कारण जनता के बीच अच्छा संदेश नहीं गया और हमें चुनावी हार का सामना करना पड़ा। शिवसेना (यूबीटी) के एक नेता ने बताया कि बैठक के दौरान उद्धव ठाकरे को गठबंधन से अलग होने का सुझाव भी दिया गया। पार्टी नेताओं का मानना था कि कांग्रेस के साथ जाने के कारण मराठी मानुष की पार्टी की छवि को करारा धक्का लगा है।

अब अपने दम पर चुनाव लड़ने का सुझाव

शिवसेना नेता ने कहा कि अब हम चाहते हैं कि स्थानीय निकाय चुनाव के दौरान पार्टी अकेले चुनाव मैदान में उतरे। मातोश्री में हुई इस बैठक के दौरान पार्टी नेताओं ने अलग होकर चुनाव लड़ने का प्रस्ताव रखा।

विधान परिषद में पार्टी के नेता अंबादास दानवे ने कहा कि पार्टी के कई नेताओं का मानना है कि हमें अकेले चुनावी मैदान में उतरना चाहिए। उन्होंने कहा कि संगठन को मजबूत बनाए जाने की जरूरत है ताकि गठबंधन के बिना अकेले चुनावी अखाड़े में उतर जा सके।

बैठक के बाद दानवे ने विधानसभा चुनाव के दौरान मिली हार का ठीकरा कांग्रेस पर फोड़ा। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ओवर कॉन्फिडेंस में थी और कांग्रेस का यह अति आत्मविश्वास ही सबको ले डूबा। उन्होंने आखिरी समय तक सीट बंटवारा होने और ठोस चुनावी रणनीति न होने को भी चुनावी हार का कारण बताया।

सहयोगी दलों के वोट बैंक का फायदा नहीं

बैठक के दौरान वक्ताओं का यह भी कहना था कि लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा और उसके साथियों की ओर से महाराष्ट्र में खूब जोरों से यह प्रचार किया गया कि मुसलमानों के वोट की वजह से हमें जीत हासिल हुई है। इस प्रचार की वजह से लोगों के बीच य। संदेश गया कि उद्धव ठाकरे अब अपने पुराने हिंदू वोट बैंक को छोड़कर मुसलमानों को लुभाने की कोशिश में जुटे हुए हैं।

इसी कारण पार्टी को गद्दार वाले अभियान का भी फायदा नहीं मिल सका। उद्धव ठाकरे ने एकनाथ शिंदे को टारगेट करते हुए यह अभियान चलाया था। इसके बावजूद शिंदे और ताकतवर बनकर उभरे हैं।

वक्ताओं का यह भी मानना था कि पार्टी कांग्रेस और एनसीपी के साथ चुनावी अखाड़े में जरूर उतरी मगर इन पार्टियों का वोट बैंक उद्धव सेना को ट्रांसफर नहीं हो सका। इन पार्टियों से जुड़े मतदाताओं ने उद्धव सेना के प्रत्याशियों को समर्थन नहीं दिया।

इस बैठक के बाद अब उद्धव ठाकरे पर हिंदुत्व की पुराने विचारधारा की ओर लौटने का दबाव बढ़ गया है। अब आने वाले दिनों में यह देखने वाली बात होगी कि उद्धव ठाकरे स्थानीय निकाय चुनाव के दौरान पार्टी को मजबूत बनाने के लिए क्या रणनीति अपनाते हैं।



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Monika

Monika

Content Writer

पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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