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उद्धव ठाकरे ने दिया सीएम पद से इस्तीफा , महाराष्ट्र में महा विकास आघाडी सरकार का हुआ अंत
बता दें कि 2019 का विधान सभा चुनाव भाजपा और शिवसेना मिल कर लडे थे। भाजपा ने उस चुनाव में 105 सीट जीत कर सबसे बड़ी पार्टी बनी थी। शिवसेना के 56 विधायक चुनाव जीत कर विधान सभा गए थे तो वहीँ एनसीपी के पास 54 विधायक थे। कांग्रेस ने 44 सीटें जीती थी।
Uddhav Thackeray Resigned: महाराष्ट्र में पिछले कई दिनों से चल रही सियासी उथल-पुथल के बीच मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने आज अपने पद से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने फेसबुक लाइव के दौरान मुख्यमंत्री पद से अपने इस्तीफे का ऐलान किया। महाराष्ट्र विधानसभा में फ्लोर टेस्ट रोकने के लिए शिवसेना को सुप्रीम कोर्ट से आखिरी उम्मीद थी मगर सुप्रीम कोर्ट का फैसला खिलाफ जाने के बाद उद्धव के पास इस्तीफे के सिवा कोई विकल्प नहीं बचा था। शिवसेना के 39 विधायकों की बगावत के कारण उद्धव विधानसभा में बहुमत साबित करने में सक्षम नहीं थे और इस कारण उन्होंने फ्लोर टेस्ट का सामना करने से पहले ही अपने पद से इस्तीफा दे दिया।
इससे पहले आज हुई कैबिनेट बैठक के दौरान ही इस बात का संकेत मिल गया था कि मुख्यमंत्री के रूप में उद्धव की पारी अब खत्म हो गई है। बैठक के अंत में उद्धव ने सभी को ढाई साल तक सहयोग करने के लिए धन्यवाद कहा और यह भी कहा कि यदि इस दौरान मुझसे कोई गलती हुई हो तो मैं उसके लिए क्षमा प्रार्थी हूं। बैठक में उन्होंने यह भी कहा कि मुझे अपनों ने ही धोखा दिया है। उद्धव के इस रुख से साफ हो गया था कि वे जल्द ही अपने पद से इस्तीफा देने वाले हैं।
अपनों ने ही दिया मुझे धोखा
फेसबुक लाइव के दौरान अपने दिल की बात रखते हुए उद्धव ठाकरे ने कहा कि उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी खोने का तनिक भी डर नहीं है। उन्होंने विधान परिषद की सदस्यता भी छोड़ने की घोषणा की। शिंदे गुट के गिले-शिकवे की चर्चा करते हुए उद्धव ठाकरे ने कहा कि आपको अपनी बातें ठीक तरीके से सामने रखनी चाहिए। मैं हमेशा हर मुद्दे पर बातचीत के लिए तैयार था। उन्होंने कहा कि मैं अभी तक यह बात नहीं जान सका हूं कि बागी किस बात को लेकर नाराज हैं। जिन लोगों को मैंने सब कुछ दिया, वही लोग मेरा साथ छोड़ गए।
उन्होंने कहा कि साथ रहने वाले लोगों ने ही मुझे धोखा दिया जबकि जिनसे धोखे की आशंका थी वे साथ बने रहे। उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी और एनसीपी के मुखिया शरद पवार को सरकार चलाने में सहयोग देने के लिए धन्यवाद कहा। उन्होंने कहा कि मैं मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा जरूर दे रहा हूं मगर मेरे पास अभी भी शिवसेना है और आगे भी मैं इस संगठन को मजबूत बनाना जारी रखूंगा।
सरकार बचाने की सारी कोशिशें विफल
उद्धव सरकार का जाना पहले ही तय माना जा रहा था क्योंकि बगावत करने वाले विधायकों को वापस लाने में शिवसेना नेतृत्व अभी तक विफल साबित हुआ था। शिवसेना नेताओं की तमाम कोशिशों के बावजूद बागी नेता एकनाथ शिंदे और उनका साथ देने वाले विधायकों को मनाने में कामयाबी नहीं मिल सकी। उद्धव सरकार मामले को टालते हुए बागी विधायकों का मन बदलने का इंतजार कर रही थी मगर भाजपा नेता व पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने राज्यपाल से मुलाकात करके उद्धव की मुश्किलें बढ़ा दीं।
फडणवीस ने राज्यपाल को पत्र सौंपते हुए मांग की कि उद्धव सरकार अल्पमत में आ गई है। इसलिए सरकार से सदन में बहुमत साबित करने के लिए कहा जाना चाहिए। इसके बाद राज्यपाल ने गुरुवार 30 जून को विधानसभा का सत्र बुलाकर उद्धव सरकार से फ्लोर टेस्ट का सामना करने के लिए कहा।
इसलिए दिया मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा
राज्यपाल के इस फरमान के बाद ही उद्धव खेमे में हड़कंप मच गया था और सुप्रीम कोर्ट के जरिए फ्लोर टेस्ट को टालने की पूरी कोशिश की गई। इस बाबत दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने फ्लोर टेस्ट पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट के इस रुख से मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को करारा झटका लगा क्योंकि अब उनके बचने की कोई उम्मीद बाकी नहीं रह गई थी।
यही कारण था कि फ्लोर टेस्ट का सामना करने से पहले ही उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। जानकारों का कहना है कि उद्धव ठाकरे और शिवसेना के अन्य नेताओं को इस बात का बखूबी एहसास था कि वे सदन में बहुमत साबित करने में कामयाब नहीं हो सकेंगे। इसी कारण उन्होंने पहले ही पद से इस्तीफा देने का फैसला किया।
इस्तीफे से पहले बड़ा हिंदुत्व कार्ड
इससे पहले कैबिनेट बैठक के दौरान उद्धव सरकार ने बड़ा हिंदुत्व कार्ड चलते हुए औरंगाबाद का नाम बदलकर संभाजी नगर करने का फैसला किया है। उस्मानाबाद को अब धाराशिव के नाम से जाना जाएगा। शिवसेना लंबे समय से औरंगाबाद का नाम बदलकर संभाजी नगर रखने की मांग करती रही है। उद्धव ठाकरे और शिवसेना के अन्य नेता पहले ही औरंगाबाद को संभाजी नगर के नाम से संबोधित करते रहे हैं।
माना जा रहा है कि बागी विधायकों के हिंदुत्व कार्ड को जवाब देने के लिए ही मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की ओर से यह बड़ा कदम उठाया गया। उद्धव ठाकरे पर अभी तक हिंदुत्व की अनदेखी करने के आरोप लगते रहे हैं। बागी विधायकों ने भी आरोप लगाया है कि उद्धव बाला साहब ठाकरे के हिंदुत्व के रास्ते से भटक चुके हैं। उद्धव सरकार के फैसले को बागी विधायकों को तीखा जवाब माना जा रहा है।
महा विकास आघाडी सरकार का अंत
इसके साथ ही सूबे में महा विकास आघाडी सरकार का अंत हो गया है। महाराष्ट्र में 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद राज्य स्तरीय राजनीतिक गठबंधन का गठन किया गया था। 2019 में चुनाव के बाद शिवसेना का अपने पसंदीदा मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवारों और अन्य विभागों के पदों पर भाजपा के साथ मतभेद था।
बता दें कि 2019 का विधान सभा चुनाव भाजपा और शिवसेना मिल कर लडे थे। भाजपा ने उस चुनाव में 105 सीट जीत कर सबसे बड़ी पार्टी बनी थी। शिवसेना के 56 विधायक चुनाव जीत कर विधान सभा गए थे तो वहीँ एनसीपी के पास 54 विधायक थे। कांग्रेस ने 44 सीटें जीती थी।
भाजपा और शिवसेना के बीच सरकार बनाने को लेकर मतभेद उठने के बाद सूबे में महा विकास अघाड़ी का गठन हुआ। गठबंधन में शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के शरद पवार और कांग्रेस की सोनिया गांधी के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी, प्रहार जनशक्ति पार्टी, पीडब्ल्यूपीआई और कई अन्य राजनीतिक दल और निर्दलीय विधायक के समर्थन से किया गया था। गठबंधन में शिवसेना के पास 56, राकांपा के 54, कांग्रेस के पास 44 और अन्य के पास 16 विधायक हैं।
महा विकास अघाड़ी का 2.5 साल का आंतरिक संघर्ष
गठबंधन सरकार का आपस में तकरार होना कोई नई बात नहीं है। वास्तव में, गठन के कुछ महीनों बाद ही शिवसेना ने लोकसभा में नागरिकता विधेयक को अपना समर्थन दिया, जिसका कांग्रेस ने कड़ा विरोध किया। पार्टी जल्द ही अपने पहले के रुख से मुकर गई और कहा कि वह राज्यसभा में विधेयक का समर्थन नहीं करेगी।
जनवरी 2020 में, शिवसेना नेता संजय राउत ने दावा किया था कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी मुंबई में एक अंडरवर्ल्ड गैंगस्टर से मिलने जाती थीं। इस बयान पर कांग्रेस नेताओं ने नाराजगी जताई। बाद में राउत को अपनी टिप्पणी वापस लेनी पड़ी।
एमवीपी के गठन के बाद से पिछले कुछ वर्षों में, शिवसेना के मुखपत्र सामना ने कई मौकों पर कांग्रेस पर कटाक्ष किया है। एक बार इसने देश की सबसे पुरानी पार्टी की तुलना शोर करने वाली एक पुरानी खाट से की और दूसरी बार यह कहा कि पार्टी "कमजोर और बिखर गई" थी।