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उद्धव का डबल गेम: राष्ट्रपति चुनाव में NDA और उपराष्ट्रपति में विपक्ष के साथ,आखिर क्या है इस खेल का ?
शिंदे गुट की बगावत के बाद भी एनसीपी और कांग्रेस दोनों दल समर्थन के मोर्चे पर उद्धव के साथ खड़े रहे। ऐसे में उद्धव अभी एनसीपी और कांग्रेस का साथ नहीं छोड़ना चाहते।
Uddhav Thackeray Shiv Sena : महाराष्ट्र (Maharashtra) के मुख्यमंत्री की कुर्सी से हाथ धोने वाले शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) ने इस बार राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव (President and Vice President Elections) में 'दोहरी रणनीति' अपनाई है। राष्ट्रपति चुनाव में उन्होंने एनडीए की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू (NDA candidate Draupadi Murmu) को समर्थन देने का ऐलान किया है, तो उपराष्ट्रपति के चुनाव में वे विपक्ष की उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा (Margaret Alva) का साथ देंगे। उपराष्ट्रपति चुनाव को लेकर पार्टी का यह रुख पार्टी के वरिष्ठ नेता संजय राउत (Sanjay Raut) ने स्पष्ट किया है।
दरअसल, सत्ता से बेदखल होने के बाद उद्धव ठाकरे अभी भी एनसीपी (NCP) और कांग्रेस (Congress) के साथ अपने रिश्तों को बनाए रखना चाहते हैं। शिंदे गुट की बगावत के बाद लगे भारी झटके के बाद अब वे सियासी मैदान में फूंक-फूंक कर कदम आगे रख रहे हैं। बीजेपी और शिंदे गुट की ओर से कोई महत्व न मिलने के कारण वे एनसीपी और कांग्रेस के साथ अपनी दोस्ती को तोड़ना नहीं चाहते। इसी कारण, उन्होंने उपराष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष का साथ देने का बड़ा फैसला किया है।
अल्वा के समर्थन का फैसला
रविवार को दिल्ली में एनसीपी मुखिया शरद पवार (NCP chief Sharad Pawar) के घर पर विपक्षी दलों की बैठक (Opposition Parties Meeting) में कांग्रेस नेता मार्गरेट अल्वा के नाम पर मुहर लगाई गई। बैठक में शिवसेना की ओर से संजय राउत भी मौजूद थे। बैठक के बाद उन्होंने मीडिया से बातचीत के दौरान कहा कि, उप राष्ट्रपति चुनाव में शिवसेना मार्गरेट अल्वा का साथ देगी। उन्होंने दावा किया कि उपराष्ट्रपति के चुनाव में विपक्षी दलों की एकता पूरी तरह बनी रहेगी। संजय राउत ने पहले भी स्पष्ट किया था कि राष्ट्रपति चुनाव में द्रौपदी मुर्मू के समर्थन का मतलब यह नहीं है कि हम भाजपा का समर्थन कर रहे हैं।
सांसदों के दबाव पर मुर्मू का समर्थन
दरअसल, राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू का समर्थन करना उद्धव ठाकरे की मजबूरी बन गया था। पार्टी के अधिकांश सांसद मुर्मू के ही समर्थन में थे। उन्होंने सांसदों की बैठक के दौरान उद्धव को यह बात स्पष्ट तौर पर बता दी थी। ऐसे में उद्धव को विपक्ष के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा का समर्थन करने में सांसदों की बगावत का डर भी सता रहा था। विधायकों की बगावत से चोट खाए उद्धव यह खतरा मोल लेने की स्थिति में नहीं थे। इसी कारण न चाहते हुए भी उन्होंने मुर्मू के समर्थन का ऐलान कर दिया।
हालांकि, इसके पीछे मुर्मू के आदिवासी और महिला उम्मीदवार होने का कारण बताया गया मगर सच्चाई कुछ और ही थी। मुर्मू के समर्थन की सफाई में संजय राउत का कहना है कि मुर्मू आदिवासी महिला हैं और आदिवासियों के प्रति देश के लोगों के मन में काफी संवेदना है। हमारे बहुत से सांसद और विधायक भी आदिवासी समुदाय से ही है। इसी कारण मुर्मू का समर्थन करने का बड़ा फैसला लिया गया।
एनसीपी-कांग्रेस को नाराज नहीं करना चाहते
उपराष्ट्रपति चुनाव में उद्धव को अपने मन की करने की छूट मिल गई। दरअसल, शिंदे गुट की बगावत के बाद उद्धव जबर्दस्त झटका खा चुके हैं और उन्हें पता है कि भाजपा उन्हें कोई भाव नहीं दे रही है। उल्टे भाजपा शिवसेना प्रमुख के रूप में उनकी सियासत को पूरी तरह नष्ट करने पर उतारू है। ऐसे में उद्धव सहयोगी दलों एनसीपी और कांग्रेस को नाराज नहीं करना चाहते। इसी कारण उन्होंने उपराष्ट्रपति पद के लिए मार्गरेट अल्वा का नाम तय होते ही उन्हें समर्थन देने का फैसला कर लिया। इस बाबत उन्होंने सांसदों की बैठक बुलाकर किसी प्रकार की कोई चर्चा भी नहीं की ताकि कोई भी उन पर किसी भी प्रकार का दबाव बनाने में कामयाब न हो सके।
बगावत के बाद दोनों दलों ने दिया साथ
राष्ट्रपति के चुनाव में मुर्मू का समर्थन करने से एनसीपी और कांग्रेस में उनके प्रति नाराजगी भी है। उप राष्ट्रपति के चुनाव में विपक्ष के उम्मीदवार का समर्थन करके वे इस नाराजगी को कम करना चाहते हैं। इसके साथ ही वे अपने दोनों सहयोगी दलों को यह संदेश भी देना चाहते हैं कि महाविकास अघाड़ी गठबंधन अभी खत्म नहीं हुआ है। पिछले महीने शिंदे गुट की बगावत के बाद आखिरकार उद्धव को मुख्यमंत्री पद से भी हाथ धोना पड़ा है और अब वे शिवसेना का वजूद बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
शिंदे गुट की बगावत के बाद भी एनसीपी और कांग्रेस दोनों दल समर्थन के मोर्चे पर उद्धव के साथ खड़े रहे। ऐसे में उद्धव अभी एनसीपी और कांग्रेस का साथ नहीं छोड़ना चाहते। उद्धव को पता है कि भाजपा जिस तरह उन्हें झटका देने की कोशिश में जुटी हुई है, उसे देखते हुए उन्हें आगे चलकर विपक्षी दलों की मदद की दरकार होगी। इसी कारण उन्होंने भविष्य की राजनीति को ध्यान में रखते हुए एनसीपी और कांग्रेस से दोस्ती बनाए रखने का बड़ा संदेश दिया है।