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आखिर उद्धव ने क्यों लिया मुर्मू के समर्थन का फैसला, शिवसेना प्रमुख के फैसले में छिपा है बड़ा सियासी संदेश
Presidential Election 2022: शिवसेना के अधिकांश सांसद मुर्मू का ही समर्थन करने के पक्ष में थे मगर उद्धव का कहना है कि उनके सामने किसी भी प्रकार का कोई दबाव नहीं था।
Presidential Election 2022: कई दिनों की ऊहापोह के बाद शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ( Uddhav Thackeray) ने राष्ट्रपति चुनाव में समर्थन के मुद्दे पर बड़ा फैसला ले लिया है। राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू (Draupadi Murmu) के समर्थन के उद्धव के फैसले में बड़ा सियासी संदेश छिपे होने की बात कही जा रही है। हालांकि शिवसेना (shiv sena) के अधिकांश सांसद मुर्मू का ही समर्थन करने के पक्ष में थे मगर उद्धव का कहना है कि समर्थन के मुद्दे पर उनके सामने किसी भी प्रकार का कोई दबाव नहीं था।
सियासी जानकारों का मानना है कि उद्धव के इस कदम के पीछे बड़ा सियासी संदेश छिपा हुआ है। दरअसल शिवसेना में हुई बगावत के बाद अब वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा से शिवसेना के रिश्तों को सुधारना चाहते हैं। शिवसेना के विधायकों की बगावत के पीछे भी भाजपा से शिवसेना की दूरी को बड़ा कारण माना गया था। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की अगुवाई में 40 विधायकों के पाला बदलने के बाद उद्धव के सामने शिवसेना का अस्तित्व बचाने का बड़ा संकट खड़ा हो गया है। माना जा रहा है कि शिवसेना की सियासी मजबूती के लिए अब वे काफी फूंक-फूंक कर कदम रख रहे हैं। भाजपा से रिश्ते सुधारने के लिए ही उन्होंने एनसीपी प्रमुख शरद पवार के दबाव की भी अनदेखी कर दी।
भाजपा के साथ रिश्ते सुधारने की कोशिश
एक अंग्रेजी अखबार में छपी रिपोर्ट के मुताबिक सत्ता से बेदखल होने के बाद शिवसेना का अस्तित्व बचाना उद्धव ठाकरे के लिए बड़ी चुनौती बन गया है। शिवसेना छोड़ने के बाद भी बागी विधायकों ने उद्धव और उनके परिवार पर हमला बोलने से अभी तक परहेज किया है। बागी विधायकों की ओर से सिर्फ भाजपा से हाथ मिलाने की बात पर जोर दिया जा रहा था। बागी विधायक एनसीपी और कांग्रेस के साथ गठबंधन तोड़ने की मांग पर अड़े हुए थे।
राष्ट्रपति चुनाव के मुद्दे पर उद्धव का कहना है कि उन्होंने काफी सोच समझकर एनडीए उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू का समर्थन करने का फैसला किया है। उनका यह भी कहना है कि फैसले को लेकर उन पर किसी भी प्रकार का दबाव नहीं था। ऐसे में माना जा रहा है कि इस कदम के जरिए उद्धव ने भाजपा के साथ अपने रिश्ते सुधारने की दिशा में एक कदम आगे बढ़ाया है। सियासी जानकारों का कहना है कि उन्होंने यह बताने की कोशिश की है कि भाजपा के साथ शिवसेना के रिश्ते अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुए हैं।
पवार के दबाव की अनदेखी
राष्ट्रपति चुनाव में शिवसेना प्रमुख उद्धव पर एक ओर पार्टी सांसदों का दबाव था तो दूसरी ओर एनसीपी के मुखिया शरद पवार का भी दबाव कम नहीं था। शरद पवार के आवास पर आयोजित बैठक में ही विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा के नाम पर मुहर लगी थी और पवार ने यशवंत सिन्हा के प्रचार की कमान संभाल रखी है।
विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा का समर्थन करने के लिए उद्धव पर पवार का भी भारी दबाव था मगर उद्धव ने इस दबाव की अनदेखी करते हुए द्रौपदी मुर्मू के समर्थन में जाने का बड़ा फैसला लिया है। उद्धव ने यह फैसला ऐसे वक्त में लिया है जबकि दो दिन पूर्व ही पवार ने अगले विधानसभा चुनाव में शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के एकजुट होकर लड़ने की बात कही थी। ऐसे में उद्धव का फैसला एनसीपी मुखिया पवार के लिए भी बड़ा झटका माना जा रहा है।
भाजपा ने भी किया स्वागत
राष्ट्रपति चुनाव में मुर्मू के समर्थन के उद्भव के फैसले का भाजपा ने भी स्वागत किया है। भाजपा नेता राम कदम ने कहा कि शिवसेना ने आदिवासी महिला उम्मीदवार के समर्थन की घोषणा करके उचित फैसला लिया है और इसका स्वागत किया जाना चाहिए। प्रदेश भाजपा के पदाधिकारी ने कहा कि सियासत में कोई भी स्थायी मित्र या दुश्मन नहीं होता। भाजपा नेतृत्व भी शिवसेना के साथ अपने संबंधों को खत्म नहीं करना चाहता।
उद्धव के खिलाफ हमले से परहेज
भाजपा नेता किरीट सोमैया ने हाल में उद्धव ठाकरे को माफिया सीएम बताया था जिसे लेकर शिवसेना के बागी विधायकों ने तीखी आपत्ति जताई थी। बाद में डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस ने भी साफ किया था कि भाजपा नेताओं और बागी विधायकों की बैठक में उद्धव और उनके परिवार को निशाना बनाने का फैसला किया गया था।
किरीट सोमैया ने भी बाद में उद्धव के खिलाफ कोई बयान न देने की बात कही थी। इससे साफ हो गया है कि भाजपा और शिवसेना प्रमुख के बीच रिश्ते अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुए हैं। भविष्य में दोनों दलों के बीच दोस्ती का विकल्प अभी भी खुला हुआ है।