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Shiv Sena Crisis: उद्धव को अब सरकार की नहीं, हिंदुत्व की लड़ाई लड़नी होगी
Uddhav Thackeray: शिवसेना, टूटन के संकट से पहली बार नहीं गुजर रही है। बल्कि यह चौथा अवसर है जब शिव सेना दो फाड़ होने के हालात से गुजर रही है। पर इस बार चुनौती बहुत कठिन है।
Maharashtra: महाराष्ट्र (Maharashtra) में लड़ाई सरकार बनाने व सरकार गिराने की नहीं है! शायद यह आपको सुनकर भरोसा करने लायक़ न लगे। पर हक़ीक़त यही है। लड़ाई मूलत: हिंदुत्व पर एकाधिकार की हैं। एकाधिकार की इस लड़ाई में एक नई शिव सेना के बन जाने, पुरानी शिव सेना के उद्धव के हाथ से निकल जाने या एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) की अगुवाई में नई शिवसेना (Shiv Sena) को पुराने सिंबल तीर धनुष मिल जाने जैसी पटकथा धीरे धीरे आपके सामने आने वाली है।
हाँ, यह ज़रूर है कि यहाँ तक पहुँचने के लिए हो सकता हैं महाराष्ट्र को मध्यावधि चुनाव के दौर से गुजरना पड़ जाये। इस बीच भाजपा को महाराष्ट्र के बीएमसी पर बाद होने का मौक़ा मिल जायेगा। इसका बजट भारत के अठारह राज्यों के बजट से ज़्यादा है। ग़ौरतलब है कि बीएमसी के चुनाव बहुत जल्द होने है।
शिवसेना के पास बड़ी चुनौती
शिवसेना, टूटन के संकट से पहली बार नहीं गुजर रही है। बल्कि यह चौथा अवसर है जब शिव सेना दो फाड़ होने के हालात से गुजर रही है। पर इस बार चुनौती बहुत कठिन है। क्योंकि एक तो बाला साहब ठाकरे जैसा नेता नहीं है। दूसरे राज्य में हिंदुत्व की दावेदार दूसरी पार्टी भी है। जिसके पास उद्धव ठाकरे से ज़्यादा ज़मीनी पकड़ और प्रशासनिक समझ है। एकनाथ शिंदे की लड़ाई के तेवर बता रहे हैं कि यह शिव सेना पर क़ब्ज़े की जंग है। सरकार बनाने व गिराने की लड़ाई नहीं है।
क्यों कि शिंदे कह रहे हैं कि असमान विचारधारा वाली पार्टियों से गठजोड़ की जगह भाजपा से मिलकर सरकार बनाने का फ़ैसला उद्धव ले लें तो वह अपने पैर पीछे खींच लेंगे। पर बीते शुक्रवार से जब शिव सैनिकों ने ज़मीन पर उतर कर राजनीतिक पर्यटन पर गये विधायकों के खिलाफ कार्रवाई तेज की हैं तब से ही इस पटकथा में मध्यावधि चुनाव का पन्ना जुड़ा है।
लोकसभा व विधानसभा चुनाव में शिवसेना का रिपोर्ट कार्ड
क्योंकि बीते लोकसभा व विधानसभा चुनाव (Lok Sabha and assembly elections) में भाजपा बड़ी पार्टी के रूप में उभरी। फिर भी उसने बिग ब्रदर का रोल शिव सेना को दे दिया था। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 25 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे। 23 जीते। उसे 27.84 फ़ीसदी वोट हासिल हुए। जबकि गठबंधन के रूप में मैदान में उतरी शिव सेना को 23 में से केवल 18 सीटें व 23.05 फ़ीसदी वोट हासिल हुए। 2019 के विधानसभा चुनाव में तो शिव सेना के हालात इससे ख़राब रहे। भाजपा 105 सीटें जीतीं और उसे 25.75 फ़ीसदी वोट मिले। जबकि शिव सेना के हाथ केवल 56 सीटें व 16.41 फ़ीसदी वोट लगे।
महाराष्ट्र विधानसभा की संख्या 288 की है। शिव सेना के ख़राब प्रदर्शन के बाद भी उद्धव के मन में मुख्यमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा कुलाँचे मारने लगी। ऐसे में उनकी ओर से ढाई ढाई साल के मुख्यमंत्री का प्रस्ताव रखा गया। पहले कौन मुख्यमंत्री बने इसे लेकर एकाध हफ़्ते गतिरोध रहा। इस बीच शरद पवार के भतीजे अजित पवार ने भाजपा से हाथ मिलाते हुए दावा किया कि उनके पास एनसीपी के इतने विधायक हैं कि सदन में बहुमत का आँकड़ा पूरा होता है।
जब महाराष्ट्र में एक नया गठबंधन आया सामने
नतीजतन आनन फ़ानन में देवेंद्र फणनवीस (Devendra Fadnavis) व अजित पवार का मुख्यमंत्री व उप मुख्यमंत्री के रूप में शपथ हो गया। पर शरद पवार ने आगे बढ़कर कमान सँभाली तो न केवल अजित पवार के दावे की पोल खुल गयी बल्कि महाराष्ट्र में एक नये गठबंधन ने आकार ले लिया। जिसमें शरद पवार की पार्टी एनसीपी, कांग्रेस व शिवसेना साथ हो लिये। चूँकि इस गठबंधन से उद्धव ठाकरे की मुख्यमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा पूरी हो रही थी, सो उन्हें यह बेमेल गठबंधन रास आना ही था।
बस यहीं से उद्धव ठाकरे की ग़लतियों व पार्टी पर कमजोर होती पकड़ का दौर शुरू हो गया। शिव सेना का कॉडर हार्ड कोर हिंदू माइंड का है। शिव सेना इमोशन ड्रिवेन पार्टी है। पर उद्धव इन दोनों के खिलाफ चल रहे थे। महाराष्ट्र सरकार में शिव सेना की जगह चल तो एनसीपी की रही थी। एनसीपी के कार्यकर्ता शिव सैनिकों से ज़्यादा मालामाल हो रहे थे। इनकी पावर भी ज़्यादा थीं।
विधायकों की नाराज़गी उद्धव को पड़ी भारी
इसलिए कॉडर में शिथिलता आना स्वाभाविक था। इस बीच स्वास्थ्य ख़राब रहने के चलते उद्धव अपने विधायकों व मंत्रियों को भी समय नहीं दे पा रहे थे। वह संगठन व सरकार में शामिल शिवसेना के नेता व महत्वपूर्ण कार्यकर्ताओं से अन कनेक्टेड थे। मुख्यमंत्री का स्टाफ़ भी पार्टी व संगठन के अपने लोगों को तरजीह नहीं दे रहा था। विधायकों की नाराज़गी उद्धव के करीबी स्टाफ़ मिलिंद से भी कम नहीं थी। उद्धव ठाकरे की अनुपस्थिति में आदित्य ठाकरे का संवाद करना व आदेश देना भी विधायकों कों बहुत ख़राब लग रहा था। उधर देवेंद्र फडनवीस अपनी गोटियाँ बिछाये अपनी मात को बदलनें में लगे थे।
उन्होंने पहले तोड़ फोड़ करके सरकार बना लेने के प्लान पर काम किया। लेकिन शिव सैनिकों द्वारा अपने विधायकों के खिलाफ उपद्रव को देखते हुए यह आशंका बढ़ गयी है कि नाराज विधायकों को मुंबई लाने में ख़तरा है। इस बीच शिवसेना पर क़ब्ज़ा करना या उससे मिलती जुलती नई पार्टी खड़ा करने के लिए भी समय चाहिए होगा। ऐसे में फणनवीस की पटकथा में भगत सिंह कोश्यारी को कुछ समय मिले तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए । इस बीच भाजपा को महाराष्ट्र के बीएमसी पर बाद होने का मौक़ा मिल जायेगा। इसका बजट भारत के अठारह राज्यों के बजट से ज़्यादा है। ग़ौरतलब है कि बीएमसी के चुनाव बहुत जल्द होने है। कुल 236 सीटें हैं। शिव सेना की असली ताक़त बीएमसी ही है।