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Prashant Kishor: UN में नौकरी, चुनावी रणनीतिकार और अब बिहार में नीतीश-तेजस्वी की बढ़ा रहे मुश्किलें, जानिए कौन हैं प्रशांत किशोर?
Prashant Kishare: 2014 में देश में हुए लोकसभा के आम चुनाव बीजेपी को प्रचंड जीत मिली और यहीं से प्रशांत किशोर को एक नई पहचान मिली। पीके ने उस समय बीजेपी की ओर से पीएम फेस नरेंद्र मोदी के लिए चुनावी रणनीति तैयार की थी। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद पीके का नाम भी काफी सुर्खियों में रहा।
Prashant Kishare: प्रशांत किशोर इस समय बिहार की राजनीति में काफी चर्चा में हैं। यूएन में आठ साल नौकरी करने के बाद प्रशांत किशोर राजनीतिक रणनीतिकार की भूमिका में आ गए और उन्होंने देश की कई राजनीतिक पार्टियों की किस्मत चमकाने के बाद अब वे खुद राजनीति के मैदान में उतर गए हैं और सियासत में अपनी जमीन तलाशने में जुटे हैं। वे लगातार बीपीएससी छात्रों के पक्ष में आवाज उठा रहे हैं। प्रशांत किशोर बीपीएससी छात्रों की मांगों के समर्थन में पटना के गांधी मैदान में कई दिनों से धरने पर डटे थे, लेकिन पुलिस ने उन्हें सोमवार तड़के धरना स्थल से अरेस्ट कर लिया। इससे बिहार की सियासत गरमाने लगी है। बिहार में इसी साल चुनाव होने वोला है।
प्रशांत किशारे बिहार की सियासत में कमर कस कर उतर चुके हैं। उनकी जन सुराज पार्टी इस बार के विधानसभा चुनावों में अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज कराने के लिए प्रयासरत है।
प्रशांत किशोर बिहार ही नहीं पूरे देश में एक जाना पहचाना नाम हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ (यूएनओ) फंडेड स्कीम में सर्विस से लेकर चुनाव रणनीतिकार तक का सफर तय करने वाले पीके ने जन सुराज पार्टी का गठन किया है। दूसरी पार्टियों और नेताओं के लिए चुनावी रणनीति तैयार करने वाले प्रशांत किशोर अब खुद अपनी राजनीतिक चमकाने में जुटे हैं।
...तो आइए जानते हैं यूएन में नौकरी के बाद राजनीतिक रणनीतिकार और अब राजनीतिक दल बनाने तक के पीके के सफर के बारे में।
कौन हैं प्रशांत किशोर
प्रशांत किशोर का 20 मार्च 1977 को बिहार के रोहतास जिले के कोनार गांव में हुआ था। उनके पिता श्रीकांत पांडेय सरकारी डॉक्टर थे। पीके के जन्म के बाद परिवार बक्सर आ गया और पीके की स्कूली शिक्षा यहीं पर हुई। उसके बार पीके इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने हैदराबाद चले गए। पढ़ाई के बाद पीके यूएन के एक हेल्थ प्रोग्राम से जुड़ गए और आठ साल तक यहां पर अपनी सेवाएं दीं।
पीके की पहली पोस्टिंग एक यूएन फंडेड स्कीम के लिए संयुक्त आंध्र प्रदेश के हैदराबाद में हुई। उसके बाद उनको पोलियो उन्मूलन कार्यक्रम के लिए बिहार भेज दिया गया। उस समय बिहार में राबड़ी देवी के नेतृत्व में आरजेडी की सरकार थी। बिहार के बाद पीके अमेरिका चले गए। जहां उन्हें संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में तैनात किया गया लेकिन अमेरिका में उनका मन नहीं लगा। उन्हें डिवीजन हेड की पोजिशन पर चाड भेज दिया गया। जहां उन्होंने करीब चार साल तक काम किया और उसके बाद उन्हें ने सर्विस छोड़ दी।
शुरू की चुनाव रणनीतिकार के रूप में सफर
करीब आठ साल स्वास्थ्य विशेषज्ञ संयुक्त राष्ट्र संघ की नौकरी करने के बाद पीके ने 2011 में सर्विस छोड़ दी और एक नई भूमिका में आ गए। उन्होंने चुनाव रणनीतिकार के रूप में अपने नए सफर का आगाज किया। 2011 में पीके गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की टीम से जुड़े और सीएम मोदी के पीएम मोदी तक के सफर में उनकी रणनीति को भी काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। यहीं से भारतीय राजनीति में ब्रांडिंग के दौर की शुरुआत हुई। पीके ने साल 2013 में इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमिटी बनाई और साल 2014 में सिटीजन फॉर अकाउंटेबल गवर्नेंस (कैग) की स्थापना की।
बीजेपी की जीत के बाद मिली पहचान
2014 में देश में हुए लोकसभा के आम चुनाव बीजेपी को प्रचंड जीत मिली और यहीं से प्रशांत किशोर को एक नई पहचान मिली। पीके ने उस समय बीजेपी की ओर से पीएम फेस नरेंद्र मोदी के लिए चुनावी रणनीति तैयार की थी। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद पीके का नाम भी काफी सुर्खियों में रहा।
इनकी भी चमकाई किस्मत
प्रशांत किशोर ने बीजेपी की ही नहीं बल्कि कई पार्टी और नेताओं की किस्मत चमकाने का काम किया। उन्होंने जेडीयू-आरजेडी गठबंधन से लेकर कांग्रेस तक, अलग-अलग राजनीतिक दलों के साथ भी काम किया। पीके ने 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में आरजेडी-जेडीयू-कांग्रेस के महागठबंधन के लिए चुनाव रणनीतिकार की भूमिका निभाई और इस गठबंधन को चुनाव में भारी सफलता मिली।