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Uniform Civil Code: क्या है समान नागरिक संहिता और सर्वोच्च न्यायालय का फैसला, जानें सभी पहलू

Uniform Civil Code: पिछले साल नवंबर में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने जोर देकर कहा था कि समान संहिता अनिवार्य है।

Neel Mani Lal
Written By Neel Mani Lal
Published on: 30 Oct 2022 12:52 PM IST
supreme court on religion conversion case said forced- religious conversion is very serious issue
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Supreme Court। (Social Media)

Uniform Civil Code: गुजरात चुनाव के मद्देनज़र जब सामान नागरिक संहिता की बात उठी तो मानो कोहराम मच गया है। ऐसे में Newstrack समान नागरिक संहिता और भारतीय जनता पार्टी के मंसूबों पर एक सीरिज़ लेकर आया है। पेश हैं इस सीरिज़ का एक पहलू ।

सर्वोच्च न्यायालय ने अपने विभिन्न निर्णयों में समान नागरिक संहिता की आवश्यकता की ओर इशारा किया है। अहमद खान बनाम शाह बानो बेगम केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ,"एक सामान्य नागरिक संहिता कानून के प्रति असमान वफादारी को दूर करके राष्ट्रीय एकीकरण के कारण में मदद करेगी, जिसमें परस्पर विरोधी विचारधाराएं हैं।" शाह बानो मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने विधायिका को संविधान के अनुच्छेद 44 द्वारा अनिवार्य समान नागरिक संहिता के लिए जाने का निर्देश दिया था। लेकिन इसके बाद तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने मामला ही पलट दिया।

पिछले साल नवंबर में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने जोर देकर कहा था कि समान संहिता अनिवार्य है। न्यायमूर्ति सुनीत कुमार की एकल-न्यायाधीश पीठ ने कहा था कि एक समान नागरिक संहिता परस्पर विरोधी विचारधारा वाले कानूनों के प्रति असमान निष्ठा को हटाकर राष्ट्रीय एकता के कारण में मदद करेगी।

समान नागरिक संहिता के पक्ष में तर्क

समान संहिता न्याय, समानता और राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देगी। ये लैंगिक समानता और महिलाओं के कल्याण को बढ़ावा देगा। यह तर्क दिया जा सकता है कि पर्सनल लॉ सिस्टम संविधान की समानता के सिद्धांत का उल्लंघन करता है । क्योंकि अलग-अलग धर्मों के लिए अलग-अलग पर्सनल लॉ होने से हम धर्मनिरपेक्षता और समानता के खिलाफ जा रहे हैं। लेकिन समान संहिता सभी नागरिकों के लिए समान कानूनों को शामिल करके समानता और न्याय को बढ़ावा दे सकता है।

एक अन्य लाभ यह है कि यह व्यक्तिगत कानूनों द्वारा शासित जटिल कानूनी मामलों को सरल करेगा। व्यक्तिगत कानूनों के अंतर्निहित लैंगिक अन्याय को दूर करके लैंगिक न्याय को बढ़ावा देगा। मुस्लिम महिलाओं के मामले में भरण-पोषणसमान संहिता की शुरूआत इस तरह के हस्तक्षेप को रोकेगी।सभी महिलाओं के कल्याण के लिए समान प्रावधानों को बढ़ावा देगी।

भारत में विशेष विवाह अधिनियम 1954 जैसे धर्मनिरपेक्ष कानून पहले से मौजूद हैं। यह कानून सभी धर्मों के सदस्यों को नियंत्रित करता है । चाहे हिंदू, मुस्लिम, पारसी, ईसाई आदि किसी भी धर्म के अनुयायी हों। यह भारत के सभी नागरिकों के बीच स्वीकार्य है। इससे पता चलता है कि ऐसा कोई कारण नहीं है कि एक समान धर्मनिरपेक्ष कानून को पूरे भारत में विस्तारित और लागू नहीं किया जा सकता है।

यह ठीक ही बताया गया है कि समान नागरिक संहिता अनुच्छेद 25 और 26 का उल्लंघन नहीं करेगा । यह धर्मनिरपेक्षता और अनुच्छेद 44 का उद्देश्य प्राप्त करने में मदद करेगा। इसके अलावा, यह तर्क दिया जा सकता है कि विवाह, उत्तराधिकार आदि धर्मनिरपेक्ष मामले हैं और कानून उन्हें विनियमित कर सकता है। संविधान का अनुच्छेद 25 राज्य को धर्म के मामलों में हस्तक्षेप करने की शक्ति देता है। इसलिए, राज्य धार्मिक संस्थाओं के कल्याण के लिए प्रावधान बना सकता है । हम तर्क दे सकते हैं कि समान नागरिक संहिता एक कल्याणकारी कानून है । क्योंकि यह पर्सनल लॉ सिस्टम के निहित अन्याय और खामियों को दूर करेगा।

समान नागरिक संहिता की शुरूआत से मुस्लिम सहित भारत के सभी नागरिकों के बीच एकरसता को बढ़ावा मिलेगा और इससे महिलाओं की स्थिति में सुधार होगा। यह तलाक और भरण-पोषण पर व्यक्तिगत कानूनों के संबंध में महिलाओं के प्रति पूर्वाग्रहों को भी दूर करेगा। भारत में हिंदू महिलाओं को नियंत्रित करने वाले कानून मुस्लिम महिलाओं को नियंत्रित करने वाले कानूनों की तुलना में प्रगतिशील और कम भेदभावपूर्ण हैं। ऐसा कोई कारण नहीं है कि महिलाओं के एक हिस्से को ऐसे अधिकारों के लाभों से बाहर रखा जाए। समान संहिता की शुरूआत पूरे भारत में महिलाओं के लिए समान अधिकार सुनिश्चित करेगी।

समान नागरिक संहिता के खिलाफ तर्क

यह तर्क दिया जाता है कि भारत में बहुत सारे धर्मों को मानने वाले लोगों के साथ एक अधिक विविध संस्कृति है । इसलिए भारत को पश्चिम प्रत्यक्षवाद केंद्रित कानून की आँख बंद करके नकल नहीं करनी चाहिए।

इसे बड़े पैमाने पर मुसलमानों द्वारा अपनी पहचान के लिए एक खतरे के रूप में देखा जाता है क्योंकि यह संहिता अपने आप में हिंदुओं की बहुसंख्यक आबादी के पक्ष में प्रतीत होती है। यह एक समान संहिता के बजाय एक समान हिंदू संहिता की तरह दिखता है।

केंद्र सरकार क्या कर रही है

समान नागरिक संहिता का मसला लॉ कमीशन के पास है। कानून मंत्री किरन रिजिजू ने इसी साल 31 जनवरी को भाजपा सांसद निशिकांत दुबे को एक पत्र लिखकर बताया था कि समान नागरिक संहिता का मामला 21वें विधि आयोग को सौंपा गया था, लेकिन इसका कार्यकाल 31 अगस्त, 2018 को खत्म हो गया था। अब इस मामले को 22वें विधि आयोग के पास भेजा सकता है।

Monika

Monika

Content Writer

पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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