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Uniform Civil Code: संविधान में है समान नागरिक संहिता की बात, क्या आप जानते हैं ये बात
Uniform Civil Code: भारत का संविधान, अदालतें और विशेषकर भाजपा – सब सामान नागरिक संहिता की बात करते हैं । लेकिन इसे लागू नहीं किया जा सका है।
Uniform Civil Code: गुजरात चुनाव के मद्देनज़र जब सामान नागरिक संहिता की बात उठी तो मानो कोहराम मच गया है। ऐसे में Newstrack समान नागरिक संहिता और भारतीय जनता पार्टी के मंसूबों पर एक सीरिज़ लेकर आया है। पेश है संविधान में समान नागरिक संहिता की स्थिति व व्याख्या ………
आजादी के बाद से ही भारत में समान नागरिक संहिता पर बहस चल रही है। हालांकि, अब तक इसे लागू नहीं किया जा सका है। भारत का संविधान, अदालतें और विशेषकर भाजपा – सब सामान नागरिक संहिता की बात करते हैं ।लेकिन इसे लागू नहीं किया जा सका है। भारत में विभिन्न समुदाय अलग-अलग व्यक्तिगत कानूनों जैसे हिंदू विवाह अधिनियम, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, हिंदुओं के लिए हिंदू दत्तक ग्रहण और रखरखाव अधिनियम द्वारा शासित होते हैं। जबकि मुस्लिम, पारसी और ईसाई अपने निजी कानूनों से शासित होते हैं। संविधान के अनुच्छेद 44 में यह प्रावधान है कि, "राज्य भारत के पूरे क्षेत्र में नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता को सुरक्षित करने का प्रयास करेगा।"
क्या राज्य सरकार ऐसा कर सकती है?
उत्तराखंड, गुजरात, यूपी, एमपी आदि राज्यों में समान नागरिक संहिता लागू करने की बात कही जा चुकी है। लेकिन क्या कोई राज्य सरकार ऐसा कर सकती है? कुछ एक्सपर्ट्स का कहना है कि कोई भी राज्य सरकार समान नागरिक संहिता को विधि सम्मत तरीके से लागू नहीं कर सकती। समान नागरिक संहिता को केवल संसद के जरिए ही लागू किया जा सकता है। संविधान में कानून बनाने की शक्ति केंद्र और राज्य दोनों के पास है। लेकिन पर्सनल लॉ के मामले में राज्य सरकारों के हाथ बंधे हैं। इसलिए राज्य सरकारें अपनी ओर से पर्सनल लॉ में कोई संशोधन या समान नागरिक संहिता लागू करने का यदि प्रयास करें तो कानून की वैधता को अदालत में चुनौती मिल सकती है। भारत में सिर्फ गोवा में समान नागरिक संहिता लागू है। वहां पुर्तगाल सिविल कोड 1867 लागू है जिसे 1961 में गोवा के भारत में विलय के बाद भी बरकरार रखा गया है।
संविधान की व्यवस्था
समान नागरिक संहिता संविधान के अनुच्छेद 44 के अंतर्गत आती है, जो यह बताती है कि 'राज्य' भारत के पूरे क्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता को सुरक्षित करने का प्रयास करेगा। यहाँ राज्य से तात्पर्य देश से है। भारतीय संविधान में निदेशक सिद्धांतों के अनुच्छेद 44 का उद्देश्य कमजोर समूहों के खिलाफ भेदभाव को दूर करना और देश भर में विविध सांस्कृतिक समूहों में सामंजस्य स्थापित करना था। डॉ. बी.आर. अम्बेडकर ने संविधान बनाते समय कहा था कि एक समान नागरिक संहिता वांछनीय है । लेकिन फिलहाल इसे स्वैच्छिक रहना चाहिए। इस प्रकार संविधान के मसौदे के अनुच्छेद 35 को भाग 4 में राज्य नीति के निदेशक सिद्धांतों के एक भाग के रूप में जोड़ा गया था। भारत के संविधान के अनुच्छेद 44 के रूप में इसे संविधान के एक पहलू के रूप में शामिल किया गया था ।जो तब पूरा होगा जब राष्ट्र इसे स्वीकार करने के लिए तैयार होगा ।इस संहिता को सामाजिक स्वीकृति दी जा सकती है।
उल्लेखनीय है कि वर्तमान में सभी धर्मों के लिए अलग-अलग नियम हैं। विवाह, संपत्ति और गोद लेने आदि में विभिन्न धर्म के लोग अपने पर्सनल लॉ का पालन करते हैं। मुस्लिम, ईसाई और पारसी समुदाय का अपना-अपना पर्सनल लॉ है। हिंदू सिविल लॉ के तहत हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध आते हैं।