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इस राजनेता की कमजोरी थी औरतें, मानते थे वासना का सामान
देश के मशहूर पत्रकार, लेखक, उपन्यासकार, राजनेता और इतिहासकार खुशवंत सिंह का आज 105वां जन्मदिन है। उनका जन्म 2 फरवरी 1915 को पंजाब के हदाली में हुआ था।
नई दिल्ली: देश के मशहूर पत्रकार, लेखक, उपन्यासकार, राजनेता और इतिहासकार खुशवंत सिंह का आज 105वां जन्मदिन है। उनका जन्म 2 फरवरी 1915 को पंजाब के हदाली में हुआ था। जो अब पाकिस्तान में है। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफन्स कॉलेज से पढ़ाई की। उसके बाद में उन्होंने 1951 में ऑल इंडिया रेडियो (AIR) में काम करना शुरू किया। एक लेखक के तौर पर वो हमेशा अपने कटाक्ष, कविताओं के प्रति अपने प्रेम और ह्यूमर के लिए जाने गए। तो आज उनके जन्मदिन के मौके पर हम आपको उनसे जुड़ी कुछ खास बातें बताते हैं। जिनके बारे में आप शायद ही जानते होंगे।
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उपन्यासकार, इतिहासकार और राजनीतिक विश्लेषक
खुशवंत सिंह उपन्यासकार, इतिहासकार और राजनीतिक विश्लेषक के रूप में विख्यात हैं। उनके अनेक उपन्यासों में प्रसिद्ध हैं- 'डेल्ही', 'ट्रेन टू पाकिस्तान', 'दि कंपनी ऑफ़ वूमन' और ‘खुशवंतनामा : दी लेसंस ऑफ माई लाइफ','सिक्खों का इतिहास' 'वोमेन: लव एंड लस्ट" रही है। इसके अलावा उन्होंने लगभग 100 खास किताबें लिखी हैं।
सेक्स, मजहब को लेकर आलोचनाओं में रहें
अपने जीवन में सेक्स, मजहब और ऐसे ही विषयों पर की गई टिप्पणियों की वजह से वो हमेशा आलोचना के केंद्र में बने रहे, उन्होंने खुद माना था कि औरतें उनकी कमजोरी हैं और उनकी नजर में औरतें वासना की वस्तु हैं, जिनकी कंपनी उन्हें अच्छी लगती है।
राजनीति से था पुराना नाता
खुशवंत सिंह के खानदान से राजनीति का खास नाता था। उनके चाचा सरदार उज्जवल सिंह खुद पंजाब और तमिलनाडू के राज्यपाल रहे थे। उसके बाद में उन्होंने राजनीति ज्वाइन की।
वकील के तौर पर शुरू किया करियर
उन्होंने अपने करियर की शुरुआत एक वकील की तरह की थी। शुरुआत में उन्होंने 08 साल तक लाहौर कोर्ट में प्रैक्टिस की थी। इसके बाद उन्होंने कुछ दिनों के लिए वकालत छोड़ दी।
चार साल में ही छोड़ी फॉरन सर्विस की नौकरी
वकालत करते हुए ही खुशवंत सिंह ने फॉरन सर्विस की तैयारी शुरू कर दी थी। वो 1947 में इसके लिए चुने गए। उन्होंने स्वतंत्र भारत में सरकार के इंफॉरमेशन ऑफिसर के तौर पर टोरंटो और कनाड़ा में सेवाएं दी।
1951 में आकाशवाणी से जुड़े थे
खुशवंत सिंह 1951 में आकाशवाणी से जुड़े थे और 1951 से 1953 तक भारत सरकार के पत्र 'योजना' का संपादन किया। मुंबई से प्रकाशित प्रसिद्ध अंग्रेज़ी साप्ताहिक 'इल्लस्ट्रेटेड वीकली ऑफ़ इंडिया' के और 'न्यू डेल्ही' के संपादक का भी काम उन्होंने 1980 तक संभाला। 1983 तक दिल्ली के प्रमुख अंग्रेज़ी दैनिक 'हिन्दुस्तान टाइम्स' के संपादक भी वह रहे।
पद्मभूषण पुरस्कार लौटाया
खुशवंत सिंह को वर्ष 1974 में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था। लेकिन उन्होंने इंदिरा गांधी द्वारा ऑपरेशन ब्लू स्टार चलाए जाने के खिलाफ आवाज उठाते हुए इस सम्मान को वर्ष 1984 में वापस कर दिया। उनके इस फैसले से उसकी काफी सराहना की गई।
छह साल रहे सांसद
खुशवंत सिंह 1980 से 1986 तक राज्य सभा के सदस्य रहे। इस दौरान उन्होंने अपनी बात को हमेशा संसद में रखा। उन्हें 2007 में पद्म विभूषण पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।
ईश्वर को नहीं मानते थे खुशवंत सिंह
वो भगवान नाम की कोई चीज नहीं होती है। वो मानते थे कि जो जितनी और जिस तरह से मेहनत करता है उसे उसी हिसाब से परिणाम मिलता है। उनका मानना था कि पुनर्जन्म जैसी भी कोई चीज नहीं होती है।
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मौत के बाद खुदको दफन करना चाहते थे सिंह
वो चाहते थे कि उनकी मौत के उनके शरीर को दफनाया जाए। क्योंकि उनका मानना था कि ऐसा करने से उनकी शरीर वापस मिट्टी में मिल जाएगा। लेकिन बाहा ए फेत द्वारा कुछ नियम सामने रखने पर वो अपने इरादे से पलट गए। अंतिम में 20 मार्च 2014 को उनकी मौत के बाद उन्हें लोधी क्रिमेटोरियम में उनके शव का अंतिम संस्कार किया गया।