×

Unparliamentary Words: असंसदीय शब्दों पर फिजूल की बहस

Unparliamentary Words: संसद के भाषणों में कौन से शब्दों का इस्तेमाल सांसद लोग कर सकते हैं और कौन-से का नहीं, यह बहस ही अपने आप में फिजूल है। आपत्तिजनक शब्द कौन से हो सकते हैं, उनकी सूची 1954 से अब तक कई बार लोकसभा सचिवालय प्रकाशित करता रहा है।

Dr. Ved Pratap Vaidik
Published on: 16 July 2022 6:06 AM GMT
Unparliamentary Words
X

Unparliamentary Words (image credit social media)

Click the Play button to listen to article

Unparliamentary Words: संसद के भाषणों में कौन-से शब्दों का इस्तेमाल सांसद लोग कर सकते हैं और कौन-से का नहीं, यह बहस ही अपने आप में फिजूल है। आपत्तिजनक शब्द कौन-कौन से हो सकते हैं, उनकी सूची 1954 से अब तक कई बार लोकसभा सचिवालय प्रकाशित करता रहा है। इस बार जो सूची छपी है, उसे लेकर कांग्रेस के नेता आरोप लगा रहे हैं कि इस सूची में ऐसे शब्दों की भरमार है, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के लिए विपक्षी सांसदों द्वारा इस्तेमाल किए जाते हैं। जैसे जुमलाजीवी, अहंकारी, तानाशाही आदि।

दूसरे शब्दों में संसद तो पूरे भारत की है लेकिन अब उसे भाजपा और मोदी की निजी संस्था का रूप दिया जा रहा है। विरोधी नेताओं का यह आरोप मोटे तौर पर सही-सा लगता है लेकिन वह अतिरंजित है। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने साफ़-साफ़ कहा है कि संसद में बोले जानेवाले किसी भी शब्द पर प्रतिबंध नहीं है। सभी शब्द बोले जा सकते हैं लेकिन अध्यक्ष जिन शब्दों और वाक्यों को आपत्तिजनक समझेंगे, उन्हें वे कार्रवाई से हटवा देंगे।

यदि ऐसा है तो इन शब्दों की सूची जारी करने की कोई तुक नहीं है, क्योंकि हर शब्द का अर्थ उसके आगे-पीछे के संदर्भ के साथ ही स्पष्ट होता है। इस मामले में अध्यक्ष का फैसला ही अंतिम होता है। कोई शब्द अपमानजनक या आपत्तिजनक है या नहीं, इसका फैसला न तो कोई कमेटी करती है और न ही यह मतदान से तय होता है। कई शब्दों के एक नहीं, अनेक अर्थ होते हैं। 17 वीं सदी के महाकवि भूषण की कविताओं में ऐसे अनेकार्थक शब्दों का प्रयोग देखने लायक है।

भाषण देते समय वक्ता की मन्शा क्या है, इस पर निर्भर करता है कि उस शब्द का अर्थ क्या लगाया जाना चाहिए। इसी बात को अध्यक्ष ओम बिड़ला ने दोहराया है। ऐसी स्थिति में रोज़ाना प्रयोग होनेवाले सैकड़ों शब्दों को आपत्तिजनक की श्रेणी में डाल देना कहां तक उचित है? जैसे जुमलाजीवी, बालबुद्धि, शकुनि, जयचंद, चांडाल चौकड़ी, पिट्ठू, उचक्का, गुल खिलाए, दलाल, सांड, अंट-संट, तलवे चाटना आदि! यदि संसदीय सचिवालय द्वारा प्रचारित इन त​थाकथित 'आपत्तिजनक' शब्दों का प्रयोग न किया जाए।

तो संसद में कोई भी भाषण पूरा नहीं हो सकता। इसीलिए इतने सारे शब्दों की सूची जारी करना निरर्थक है। हां, सारे सांसदों से यह कहा जा सकता है कि वे अपने भाषणों में मर्यादा और शिष्टता बनाए रखें। किसी के विरुद्ध गाली-गलौज, अपमानजनक और अश्लील शब्दों का प्रयोग न करें। जिन शब्दों को 'असंसदीय' घोषित किया गया है, उनका प्रयोग हमारे दैनंदिन कथनोपकथन, अखबारों और टीवी चैनलों तथा साहित्यिक लेखों में बराबर होता रहता है।

यदि ऐसा होता है तो क्या यह संसदीय मर्यादा का उल्लंघन नहीं माना जाएगा? इस तरह की सूची प्रकाशित करके क्या संसद अपनी प्रतिष्ठा को हास्यास्पद नहीं बना रही है? भारत को ब्रिटेन या अमेरिका की नकल करने की जरुरत नहीं है। ये राष्ट्र आपत्तिजनक शब्दों की कोई सूची जारी करते हैं तो क्या हम भी उनकी नकल करें, यह जरुरी है? इस मामले में हमारे सत्तारुढ़ और विपक्षी नेता एक फिजूल की बहस में तू-तू मैं-मैं कर रहे हैं।

Prashant Dixit

Prashant Dixit

Next Story