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बिहार में उपेंद्र कुशवाहा को किनारा लगाने ‘भगवान’ भरोसे नीतीश कुमार

raghvendra
Published on: 23 Nov 2018 1:23 PM IST
बिहार में उपेंद्र कुशवाहा को किनारा लगाने ‘भगवान’ भरोसे नीतीश कुमार
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शिशिर कुमार सिन्हा

पटना: उपेंद्र कुशवाहा ने राजग में अपने भविष्य को लेकर खुद से 30 नवंबर की तारीख तय की है। भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह तक अपनी बात पहुंचाने में नाकामयाब रहे कुशवाहा ने अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने की तैयारी कर रखी है। वहां से भी निराशा हाथ लगी तो वे पहले ही राजग छोडऩे के फैसले का संकेत दे चुके हैं।

वैसे तो उनका इस तरह राजग छोड़ कर जाना संभव नहीं लग रहा, लेकिन राजग में रालोसपा को किनारा लगाने वाले जदयू अध्यक्ष और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने गठबंधन के सामने एक नया ‘कुशवाहा’ खड़ा कर दिया है। नीतीश साफ-साफ दिखा रहे कि उनके पास आज भी ‘कुश’ की ताकत है। गौरतलब है कि नीतीश की राजनीतिक शक्ति ‘लव-कुश’ समीकरण रही है, जहां ‘लव’ का मतलब कुर्मी और ‘कुश’ का अर्थ कोइरी जाति से है।

विकल्प बने श्रीभगवान

ऐसा नहीं है कि सिर्फ उपेंद्र कुशवाहा के विकल्प के रूप में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने रालोसपा में रहे श्रीभगवान सिंह कुशवाहा को अपने करीब आने का मौका दिया है। दरअसल, जदयू कोटे की समाज कल्याण मंत्री मंजू वर्मा अब तक पार्टी का कुशवाहा चेहरा रही हैं। उन्हें जदयू में ठीकठाक तवज्जो मिलती रही है।

इसी तवज्जो के कारण मुजफ्फरपुर शेल्टर होम कांड के बारे में बहुत कुछ जानने वालों ने भी मंजू वर्मा या उनके पति चंद्रशेखर वर्मा को लेकर मुंह नहीं खोला था। मुजफ्फरपुर कांड में पति को घसीटे जाने पर मंजू वर्मा बहुत मुखर रहीं और सरकार ने भी उनपर कोई एक्शन नहीं लिया तो उसके पीछे सिस्टम में बैठे लोगों को यही सोच थी।

बहुत मुश्किल से मंजू वर्मा ने मंत्री की कुर्सी छोड़ी थी। इसके बाद जब कोर्ट ने फरार घोषित कर दिया, तब भी पार्टी में बनी हुई थीं। राजनीतिक किरकिरी के बाद जदयू ने मंजू को बाहर का रास्ता दिखाया। मंजू वर्मा को बाहर का रास्ता दिखाने के बाद जदयू के अंदर ‘कुश’ की कमान थामने वाले मजबूत हाथ की दरकार थी और माना जा रहा है कि इसके लिए रालोसपा के दूसरे मजबूत नेता श्रीभगवान सिंह कुशवाहा को खुद मुख्यमंत्री ने करीब आने का मौका दिया।

मंच पर दिग्गज दरकिनार, भगवान पास

बिहार में मंत्री रह चुके श्रीभगवान सिंह कुशवाहा राष्ट्रीय जनता दल से जन अधिकार पार्टी (जाप) आए और फिर रालोसपा में आकर राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बने थे। रालोसपा कुशवाहा वर्ग की पार्टी मानी जाती है तो इसके पीछे ऐसे ही नेताओं का एक जगह जुटना वजह थी। रालोसपा ने लोकसभा और विधानसभा चुनावों में ज्यादातर सीटें भी इसी जाति वर्ग के उम्मीदवारों को दी थीं। श्रीभगवान पार्टी के मजबूत स्तंभ रहे हैं।

पिछले रविवार को रोहतास जिले के करहगर में आयोजित एक समारोह के बाद उपेंद्र कुशवाहा की रालोसपा का यह मजबूत स्तंभ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सबसे करीब नजर आया। रोहतास के दिग्गज नेता और सूबे के उद्योग मंत्री जय कुमार सिंह भी इस मंच पर थे, लेकिन मुख्यमंत्री के करीबी होने के बावजूद इन दोनों के बीच में श्रीभगवान सिंह कुशवाहा बैठे। न केवल बैठे, बल्कि नीतीश लगातार श्रीभगवान से मुखातिब भी रहे, बतियाते भी दिखे। श्रीभगवान न तो रोहतास से कभी विधायक रहे और न सांसद। इसके अलावा मंच पर रोहतास के काराकाट लोकसभा के सांसद रहे पूर्व मंत्री महाबली सिंह कुशवाहा भी मंच पर थे, लेकिन श्रीभगवान की नीतीश से नजदीकी चर्चा का विषय रही।

उपेंद्र के पास अब भाजपा ही विकल्प

कल तक सीटों के नाम पर भाजपा को हुल दे रहे केंद्रीय राज्यमंत्री उपेंद्र कुशवाहा अब बेचारगी की स्थिति में हैं। उनके दोनों विधायक जदयू में शामिल हो चुके हैं। तीन सांसदों में एक खुद कुशवाहा हैं। दूसरे अरुण कुमार पहले ही उपेंद्र कुशवाहा से दूर हो चुके हैं। तीसरे रामकुमार शर्मा राजग में कायम रहने की जिद दिखा चुके हैं।

ऐसे में अकेले पड़े कुशवाहा को अब महागठबंधन में भी बहुत तवज्जो मिलने की उम्मीद नहीं है। महागठबंधन में अभी जाने का निर्णय करेंगे तो केंद्र की कुर्सी भी चली जाएगी। नीतीश से टकराव के कारण जदयू का रास्ता संभव नहीं है। ऐसे में एकमात्र संभावना यही बन रही है कि वह सब कुछ सहते हुए रालोसपा को राजग में कायम रखें और बाद में खुद राजग की मजबूती के नाम पर भाजपा में शामिल हो जाएं।



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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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