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राज्य सभा चुनाव : भाजपा, सपा-बसपा समेत सबको है अपनों के डंक का डर
अनुराग शु्क्ला
उत्तर प्रदेश के राज्यसभा चुनाव में वोटिंग की स्थिति के बाद अब सारे दल परेशान हैं। परेशान इस बात से नहीं कि कैसे अपना कैंडिडेट जिताएं बल्कि इस बात से अपनों को दगा देने से कैसे रोकें। भाजपा को जहां सहयोगी दलों के रुख से खतरा है वहीं सपा बसपा अपनी पार्टी की टूट फूट से भी परेशान दिख रहे है। सबसे बुरी हालत में कांग्रेस है जिसके विधायकों पर सबकी नजर है। वहीं निर्दलीयों की पौ बारह है।
भाजपा की दिक्कत बने सहयोगी
भाजपा ने जिस आत्मविश्वास के साथ 8 के बजाय आक्रमकता दिखाकर 9 उम्मीदवार मैदान में उतार दिए हैं उसमें उसके आत्मविश्वास को डिगा रहा है सहयोगियों का रुख। एनडीए के साथ चुनाव लडे और सरकार में मंत्री सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर लगातार बागी रुख अख्तियार किए हुए है। पहले डीएम की तैनाती, फिर राशन कार्ड की दिक्कत, अधिकारियों को खुली रैली में धमकाने और फिर सरकार के एक साल पूरे होने के कार्यक्रम में शामिल होने के बजाय सरकार को 10 में तीन नंबर देकर फेल बताने वाले राजभर योगी जी के हाथ से निकल गये है। तभी तो उन्हें भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से बातचीत के लिए दिल्ली बुलाया गया है। राजभर की पार्टी के पास चार वोट हैं और एक-एक वोट की कीमत वाले इस राज्यसभा चुनाव में उनका रुख पार्टी के लिए खतरे की घंटी है। तब और ही हालात बिगड़ जाते हैं जब राजभर के सपा-बसपा से संपर्क में होने की बात अब छिपी नहीं है। भाजपा ने 9 वां उम्मीदवार उतार कर अपने 27 वोट जहां छिटकने से रोकना की कवायद की है वहीं सहयोगियों को भी साथ रखने और महत्व देने की रणनीति है। अगर 8 उम्मीदवार पर्चा भरते तो भाजपा के 27वोट खाली रहते।
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पार्टी के अध्यक्ष महेंद्र नाथ पांडेय ने ऐलान किया, ‘बहुत से दलों के पास 7 वोट बच रहे हैं, कुछ के पास 19 वोट हैं वो उम्मीदवार खड़ा कर रहे हैं ऐसे में हम 27 वोट लेकर क्यों ना अपना उम्मीदवार खड़ा करें। हम 9वीं सीट भी जीतेंगे।’ भाजपा को निर्दलीय विधायक और अब तक सपा के हमकदम रहे राजा भइया और उनके एक साथी विधायक को लेकर भाजपा आशान्वित है। राजा भइया मायावती के उम्मीदवार को वोट दें यह कम ही लगता है। ऐसे में भाजपा के पास विजय मिश्रा के समर्थन के बाद 30 वोट हो जाएंगे। इसके अलावा निर्दलीय विधायक अमनमणि त्रिपाठी भी भाजपा के पाले में हैं ऐसा तय माना जा रहा है। बाकी वोट का जुगाड़ अंतरात्म की आवाज और विकास का नारा कर सकता है।
सपा-बसपा के सामने अपने विधायकों को रोकने की चुनौती
कभी सपा की राज्यसभा में आवाज रहे नरेश अग्रवाल अब भाजपाई हो चुके हैं। राजनीति में हर पार्टी का चक्र पूरा कर चुके नरेश अग्रवाल के बेटे नितिन अग्रवाल अब भी सपा में हैं। सपा को ड़र है कि अब वह क्रास वोट कर सकते हैं। दरअसल नितिन अग्रवाल को लेकर उनके पिता भाजपा ज्वाइन करते समय ऐलान कर चुके हैं कि उनका बेटा भाजपा को वोट देगा। इसके अलावा दो और विधायकों पर सपा की नजर है जो भाजपा के पक्ष में खड़े दिख सकते हैं। सपा के लिए शिवपाल फैक्टर भी बहुत प्रभावी होगा। हालांकि उपचुनाव के परिणामों ने दूसरी दिशा में उनके बढते कदम थाम दिए हैं पर यह सियासत है और कुछ भी असंभव नहीं है।
वहीं बसपा के कई विधायक इन दिनों भाजपा नेताओं के संपर्क में हैं। पिछली बार जब निर्दलीय उम्मीदवार प्रीती महापात्रा का समर्थन भाजपा ने किया था तो बसपा के करीब 5 विधायकों की निष्ठा कसौटी पर थी।
कांग्रेस विधायकों पर सबकी निगाह, रालोद विधायक भाजपा की गोद में
कांग्रेस के 5 विधायकों पर सबकी निगाह है। दरअसल कांग्रेस न तो सपा बसपा गठबंधन के प्रति औपचारिक रुप से प्रतिबद्ध है न ही उसका कोई उम्मीदवार है। ऐसे में उसके विधायक पर सबकी निगाह है। वहीं राष्ट्रीय लोकदल के एक मात्र विधायक से के दिल्ली दौरे के बाद उसका भाजपा के पक्ष में वोट देना तय माना जा रहा है।
चुनौती भी मौका भी
अगर बसपा का उम्मीदवार हारता है तो गठबंधन की मजबूती पर कुठाराघात होगा और अगर भाजपा यहां भी मात खाती है तो सपा-बसपा का गठबंधन प्रदेश में विकल्प के तौर पर उभरेगा। उपचुनाव के परिणाम को खारिज करने का साहस तो भाजपा में हो सकता है उसके कारण भी हो सकते हैं पर 10 दिन में लगातार दो हार पचाना और फिर गढ़ बचाना भाजपा के लिए मुश्किल होगा। राज्यसभा चुनाव भाजपा के लिए यह मौका भी है चुनौती भी कि वह यह दिखा सके कि सपा-बसपा गठबंधन के आगे उसने घुटने नहीं टेक दिये।