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फिर आई गढ़वाली टोपियों की बहार, राजनीति और फैशन में है चलन

उत्तराखंड विधानसभा के गैरसैंड़ में चल रहे सत्र के दौरान एक बार फिर गढ़वाली टोपी की बहार आ गई है। यह बहार यूं ही नहीं आई। 71 सदस्यीय उत्तराखंड विधानसभा के सत्र को देखते हुए 100 टोपियां तो बाकायदा ऑर्डर देकर बनवाई गई थीं।

priyankajoshi
Published on: 8 Dec 2017 4:05 PM IST
फिर आई गढ़वाली टोपियों की बहार, राजनीति और फैशन में है चलन
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देहरादून: उत्तराखंड विधानसभा के गैरसैंण में चल रहे सत्र के दौरान एक बार फिर गढ़वाली टोपी की बहार आ गई है। यह बहार यूं ही नहीं आई। 71 सदस्यीय उत्तराखंड विधानसभा के सत्र को देखते हुए 100 टोपियां तो बाकायदा ऑर्डर देकर बनवाई गई थीं।

इसके अलावा बड़ी संख्या में लोगों ने शौकिया टोपी पहन ली है। चलो राजनीति या फैशन जो भी कहें गायब हो रही गढ़वाली टोपियां चलन में तो लौटीं। जब विधायक मंत्री सब गढ़वाली टोपी में नजर आ रहे हैं तो बाकी लोग पीछे कैसे रहें।

कभी तोले जाते थे अनाज

गढ़वाली टोपी उत्तराखंड की संस्कृति का हिस्सा तो रही है लेकिन खास बात यह है कि पुराने जमाने में यही टोपी जब बांट तराजू नहीं था तो अनाज तोलने के काम भी आती थी। टोपी भर अनाज एक पैमाना था इस समाज में सामान के आदान प्रदान का। ठंड से तो बचाती ही है यह टोपी। इसे हिमाचली टोपी, पहाड़ी टोपी, उत्तराखंडी टोपी और गढ़वाली टोपी के नाम से जाना जाता है। खास बात यह है कि आज कल के युवाओं को भी यह टोपी खासी पसंद आ रही है।

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इन्होंने पत्रकारीय जीवन की शुरुआत नई दिल्ली में एनडीटीवी से की। इसके अलावा हिंदुस्तान लखनऊ में भी इटर्नशिप किया। वर्तमान में वेब पोर्टल न्यूज़ ट्रैक में दो साल से उप संपादक के पद पर कार्यरत है।

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