उत्तराखंड सरकार के बस का नहीं स्कूलों की हालत सुधारना

raghvendra
Published on: 8 Dec 2017 8:05 AM GMT
उत्तराखंड सरकार के बस का नहीं स्कूलों की हालत सुधारना
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देहरादून: उत्तराखंड के शिक्षा विभाग ने यह स्वीकार कर लिया है कि सरकारी स्कूलों की दशा सुधारना सरकार के बस का काम नहीं है इसलिए अब शिक्षा विभाग इस काम में निजी क्षेत्र की मदद लेगा। प्रदेश के स्कूली शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे जब भी राज्य में स्कूलों (जाहिराना तौर पर सरकारी) के बारे में बात करते हैं तो वह हमेशा ईमानदारी से इनकी स्थिति सुधारने की बात करते हैं। हालांकि इस बात पर मतभेद हो सकते हैं कि उनका विभाग इस दिशा में कितनी ईमानदारी से काम कर रहा है।

‘अपना भारत’ ने शिक्षा मंत्री से प्रोग्रेसिव प्रिंसिपल्स स्कूल एसोसिएशन के प्रस्ताव के बारे में पूछा जो मुख्यमंत्री कार्यालय से होता हुआ शिक्षा सचिव के ऑफिस तक अगस्त में ही पहुंच चुका था लेकिन शिक्षा मंत्री को इसकी जानकारी तक नहीं मिली। शिक्षा मंत्री ने कहा कि उन्हें इस प्रकरण के बारे में जानकारी है। आश्चर्य की बात यह है कि स्कूलों की दशा और शिक्षा नीति की दिशा बदलने की क्षमता रखने वाले इस प्रस्ताव के बारे में शिक्षा मंत्री को विभाग से या जिम्मेदार अधिकारी से नहीं मिली। उन्हें ‘प्रिंसिपल्स प्रोग्रेसिव स्कूल्स एसोसिएशन, उत्तराखंड’ के प्रतिनिधिमंडल ने मिलकर इस प्रस्ताव के बारे में जानकारी दी तभी शिक्षा मंत्री को पता चल पाया।

अरविंद पांडे इसे एक अच्छा प्रस्ताव बताते हैं और कहते हैं कि इस पर सकारात्मक ढंग से विचार किया जाएगा। वह यह भी कहते हैं कि गैरसैंण सत्र से लौटकर आने के बाद वह खुद इस पहल कर एसोसिएशन से अध्यक्ष प्रेम कश्यप को बुलाकर बात करेंगे और राज्य में शिक्षा की स्थिति सुधारने के लिए जो संभव हो सकता है वह करेंगे।

शिक्षा मंत्री यह स्वीकार करते हैं कि सरकार अकेले स्कूलों की दशा नहीं सुधार सकती। वह राज्य में सरकारी स्कूलों की स्थिति सुधारने की जि़म्मेदारी सामूहिक- सरकार, निजी क्षेत्र और मीडिया की भी बताते हैं। निजी क्षेत्र की मदद लेने के लिए पहल करते हुए शिक्षा विभाग ने निजी और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को सीएसआर के तहत स्कूलों में फर्नीचर, शौचालय जैसी मूलभूत सुविधाएं जुटाने के लिए टारगेट बांट दिए हैं। इसके अलावा पंचायतों को (पंचायती राज मंत्री भी अरविंद पांडे ही हैं) स्कूलों में शौचालय बनाने की जिम्मेदारी दी गई है।

हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को सभी स्कूलों में शौचालय, पीने का पानी, ब्लैक बोर्ड, बेंच जैसी मूलभूत सुविधाएं जुटाने का जो छह महीने का समय दिया था उसकी मियाद दिसंबर में खत्म हो रही है। हाईकोर्ट ने कहा था कि अगर विभाग राज्य के सभी सरकारी स्कूलों में ये मूलभूत सुविधाएं नहीं जुटा पाता है तो शिक्षा विभाग के अधिकारियों की तनख्वाह रोक ली जाएगी।

शिक्षा मंत्री स्वीकार करते हैं कि दिसंबर तक यह काम पूरा होना संभव नहीं है। वह यह भी याद दिलाते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने अधिकारियों की तनख्वाह रोके जाने के आदेश पर रोक लगा दी है। इससे शिक्षा विभाग को यह सुविधा मिल गई है कि वह मंत्री को यह बताते रहे कि ‘सर, काम चल रहा है’ और मंत्री जी को यह आराम हो गया है कि वह शिक्षा की भलाई के लिए ईमानदारी से हर प्रयास करने की बात कहते रहें। क्योंकि सीएसआर के तहत या पंचायतों के सहयोग से ही सही कब तक मूलभूत सुविधाएं स्कूलों में जुटाई जाएंगी इसकी कोई डेडलाइन नहीं है।

दरअसल किसी भी मंत्री के प्रभावी ढंग से काम करने के लिए जरूरी है कि उसके विभाग में आने वाली छोटी-बड़ी जानकारी उसे हो और बाहरी स्रोत से अपने ही विभाग से संबंधित जानकारियां उसे न मिलें। लेकिन शायद न मंत्री के पास विभाग में झांकने की फुर्सत है और न ही अधिकारियों को यह जरूरी लगता है कि मंत्री को जानकारी दी जाए।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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