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70 गर्भवती महिलाओं की मौतः कब्रगाह बनी देवभूमि, रो रहा पूरा उत्तरकाशी
उत्तरकाशी में प्रसव पीड़ा से तड़पती एक और बेटी ने दम तोड़ दिया। यहां के सरकारी अस्पतालों ने रातभर गर्भवती को इतना भगाया कि देहरादून के रास्ते में ही उसकी मौत हो गई।
रामकृष्ण वाजपेयी
लखनऊः आखिर हमारी बेटियां सड़कों पर कब तक दम तोड़ती रहेंगी? आखिर हम कब तक मौन रहेंगे और अपने प्रतिनिधियों और सरकार से सवाल नहीं पूछेंगे?? आखिर हम कब तक इतने खुदगर्ज और स्वार्थी बनकर अपने गांवों की बेटियों को यूं मरने व मिटने देंगे???
उत्तरकाशी के जन समस्याओं पर नागरिक पंचायत का आयोजन
विजेंद्र रावत व जयदेव सिंह सहित 45 लोगों ने इस मामले को फेसबुक पर उठाया। रविवार 28 फरवरी को उत्तरकाशी के विकास खंड मुख्यालय में यमुना घाटी (रंवाई जौनपुर व जौनसार बावर) की जन समस्याओं पर एक नागरिक पंचायत का आयोजन किया।
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प्रसव पीड़ा से तड़पती बेटी को अस्पतालों ने रातभर भगाया
लोग बैठे ही थे कि तभी पता चला कि रात को प्रसव पीड़ा से तड़पती एक और बेटी को यहां के सरकारी अस्पतालों ने रातभर इतना भगाया कि इसने देहरादून के रास्ते में डामटा के पास दम तोड़ दिया।
आखिर क्षेत्रीय समस्याओं से दूर फूलमालाओं से लदे अपने बड़े नेताओं की स्तुति में गाते लोगों की बेरुखी ये मासूम कब तक झेलती? यह सुनकर दिल बेहद आहत हुआ जिस पर हमने पंचायत में दो मिनट का मौन रखकर अपनी गैर जिम्मेदाराना, जिम्मेदारी पूरी की।
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निजी अस्पताल के चौखट पर गर्भवती ने तोड़ा दम
कुछ दिन पहले यमनोत्री विधायक के निजी सचिव की 21 साल की युवा पत्नी को बड़कोट में प्रसव पीड़ा हुई, उसे बड़कोट के सरकारी अस्पताल ले जाया गया। उन्होंने उसे देहरादून दून अस्पताल के लिए रिफर कर दिया करीब डेढ़ सौ किलोमीटर तक तड़पती बेटी दून अस्पताल पहुंची तो वहां भी भर्ती नहीं हो पाई फिर उसे एक निजी अस्पताल की ओर दौड़ाया गया, पर उसने निजी अस्पताल के चौखट पर दम तोड़ दिया।
अफसोस कि यमुना व टौंस घाटी के दो सौ किमी के क्षेत्र के सरकारी अस्पतालों में न कहीं महिला चिकित्सक है और न कहीं आपरेशन जैसी मामूली सुविधा है। इसलिए ये सिर्फ रेफरल सेंटर बने हैं।
5 साल में प्रसव पीड़ा से 70 से ज्यादा बेटियां की सड़क पर मौत
पांच साल में इस क्षेत्र में प्रसव पीड़ा से सत्तर से ज्यादा बेटियां देहरादून के रास्ते सड़कों पर दम तोड़ चुकी है और यह दुखद दौर अभी भी जारी है।
बस, एक छोटे से बेस अस्पताल की मांग सहित क्षेत्रीय जन समस्याओं पर हमने चौपाल बैठाई थी, यह किसी पार्टी के समर्थन व विरोध में नहीं थी, पर घाटी में ऐसी हवा चलाई कि इस पंचायत को राजनीतिक दलों ने अपने विरोध में मान लिया और वे यहां से नदारद रहे।
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आखिर ये कैसी राजनीति है कि जिसमें हम अपनी मरी हुई बेटियों व भविष्य में भी अपनी बेटियों को मरने के लिए छोड़ देते हैं? इस पंचायत में गम्भीरता के साथ भावुक होकर यहां की समस्याओं पर चर्चा की गई।
घाटी में एक बेस अस्पताल खुलने की उम्मीद
उम्मीद जताई गई कि इस घाटी की जीवन देने की उम्मीद में हमारी उपेक्षा के कारण शहीद हुई बेटियां हमें तब तक चैन से नहीं रहने देंगी जब इस घाटी में एक बेस अस्पताल न खुल जाता।
नौगांव में मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत की मंडी की घोषणा के बावजूद मंडी नहीं खुली, जबकि इसकी भूमि मंडी समिति को हस्तातंरण सम्बधी कार्यवाही भी पूरी हो चुकी है।
यह रिपोर्ट मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकार व बेहद ही संवेदनशील पत्रकार रमेश भट्ट को भी भेजी गई है इस उम्मीद के साथ कि वे संजीदगी से इस मामले को मुख्यमंत्री के सम्मुख रखेंगे और कार्रवाई कराने का प्रयास करेंगे। बेटियां बचेंगी तभी पहाड़ बचेगा।