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महामना की बगिया 'बीएचयू' को पता नहीं किसकी लगी है बुरी नजर!
वाराणसी: महामना मदन मोहन की बगिया बीएचयू इन दिनों सुखियों में है। छेडख़ानी को लेकर शुरू हुए प्रदर्शन ने देखते ही देखते हिंसक रूप ले लिया। प्रदर्शन कर रही छात्राओं पर लाठियां बरसाने के बाद यह मामला राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बन गया। हिंसा के दौरान में पेट्रोल बम फेंके गए, गाडिय़ां फूंकी गई और जमकर तोडफ़ोड़ हुई। दो दिन तक विश्वविद्यालय परिसर जंग का मैदान बना रहा। प्रदर्शन शांत हुआ तो राजनीति शुरू हो गई।
सपा, कांग्रेस और आप के कई बड़े नेता इस मामले में कूद पड़े। उन्होंने छात्राओं पर अत्याचार का मुद्दा बना लिया और वीसी को तत्काल हटाने की मांग की। दूसरी ओर वीसी ने छात्राओं पर लाठीचार्ज को नकारते हुए आक्रामक रुख अपना लिया। वैसे दिल्ली तलब किए जाने के बाद उनके तेवर भी ढीले पड़े हैं। अब यह सवाल उठाया जा रहा है कि आखिर बीएचयू को किसकी नजर लगी? देश के टॉप विश्वविद्यालयों में शुमार होने वाले बीएचयू में क्या सिर्फ छेडख़ानी ही बवाल की वजह है या फिर इसके पीछे सोची समझी साजिश है?
स्थिति का आंकलन करने में विवि प्रशासन विफल
पूरे मामले की शुरुआत छात्राओं के धरने से हुई। छेडख़ानी की बढ़ती घटनाओं के कारण छात्राओं में गुस्सा था। छात्राओं के मन में भरा गुबार आखिरकार फट पड़ा। अल सुबह छात्राओं का एक बड़ा समूह विश्वविद्यालय के सिंहद्वार पर धरने पर बैठ गया। अनसेफ बीएचयू जैसे नारे गूंजने लगे। छात्राएं कुलपति को बुलाने की मांग पर अड़ी रही, लेकिन विश्वविद्यालय प्रशासन ने उनकी बातों को अनसुना कर दिया। विवि प्रशासन ने स्थिति का आंकलन करने में गलती की। छात्राओं की मांग के बावजूद कुलपति जी.सी. त्रिपाठी न तो मौके पर पहुंचे और ना ही छात्राओं समझाने की कोशिश की।
उसी दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शहर में थे। छात्राओं ने पीएम का रास्ता रोकने की तैयारी की, लेकिन एसपीजी ने पीएम का रास्ता ही बदल दिया। जैसे-तैसे रात तो कटी, लेकिन भीतर ही भीतर मामला सुलगता रहा। खुफिया सूत्रों के मुताबिक छात्राओं के इस आंदोलन के पीछे कुछ ताकतें लगी हुई थी। अगले दिन जब छात्राओं का एक दल वीसी से मिलने पहुंचा तो उनका रुख सख्त था। नतीजा आधी रात छात्राओं पर लाठीचार्ज के रूप में सामने आया।
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सख्ती को लेकर विवादों में रहे हैं वीसी
बीएचयू की गिनती शुरू से ही परंपरावादी संस्थानों के रूप में होती है। आरोप है कि नवंबर 2014 में बीजेपी के शासनकाल में वीसी नियुक्त होने के बाद से प्रो. त्रिपाठी ने कई नियमों को अतिरिक्त सख्ती से लागू करना शुरू किया है। छात्राओं पर तरह-तरह से बंदिशें लगाईं। कभी उनके कपड़ों को लेकर तो कभी उनके हॉस्टल में पहुंचने की टाइमिंग को लेकर। यही नहीं लड़कियों के कमरों से इंटरनेट हटवा दिया गया। आरोप लगते रहे कि वीसी संघ के एजेंडे पर काम कर रहे हैं। आलम यह है कि प्रो.त्रिपाठी पर मोरल पुलिसिंग करने और लड़कियों के साथ भेदभाव करने का आरोप लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई, जिस पर सुनवाई चल रही है।
हिंसा भड़काने की तैयार थी स्किप्ट
बवाल जिस दिन शुरू हुआ उस दिन कई परियोजनाओं का शिलान्यास करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शहर में थे। पीएम का यह दौरा दो दिन का था और रात में बनारस में ही रुकना था। प्रधानमंत्री के काशी में होने के कारण राज्यपाल व मुख्यमंत्री सहित तमाम वीवीआईपी भी शहर में थे। पूरा प्रशासनिक अमला वीवीआईपी की सुरक्षा में फंसा था। आरोप यह भी लग रहा है कि बवाल के लिए सोच-समझकर यह दिन तय किया गया था। पीएम के दौरे को विफल साबित करने और उनके काशी में रहने के दौरान हिंसा भड़काने की स्क्रिप्ट तैयार की थी। यही कारण है कि भाजपा से जुड़े लोग आरोप लगा रहे हैं कि बाहरी लोगों ने इस हिंसा की साजिश रची और इसके लिए मासूम छात्राओं को मोहरा बनाया गया।
जितने मुंह, उतनी बातें
आंदोलन के समर्थन के पीछे कई वजहें बताई जा रही हैं। बीएचयू को जानने वाले लोग बताते हैं कि बीएचयू में हमेशा से ठाकुर बनाम ब्राह्मण की लड़ाई चलती रही है। इस बार भी ऐसा ही हो रहा है। वीसी गिरीश चंद्र त्रिपाठी का कार्यकाल नवंबर 2017 में पूरा हो रहा है। उनकी जगह पर नए वीसी की नियुक्ति होनी है, जिसके लिए बीएचयू के ही एक प्रॉक्टर दावेदारी कर रहे हैं। वे जाति से ठाकुर हैं और ब्राह्मण वीसी के खिलाफ माहौल बनाने की कोशिश कर रहे हैं। इस आंदोलन को धार मिलने के पीछे उनकी भी बैङ्क्षकग बताई जा रही है।
वहीं दूसरी तरफ बीएचयू प्रशासन के कुछ लोगों का कहना है कि इसमें अन्य राजनीतिक पार्टियां अपनी रोटियां सेंकना चाहती हैं और वे छात्राओं के कंधे का इस्तेमाल कर रही हैं। इस पूरी घटना पर जितने मुंह उतनी बातें सुनाई पड़ रही हैं। इन सबके बीच लाठीचार्ज के बारह घंटे बाद जब वीसी ने मुंह खोला तो विरोधियों पर बरस पड़े। उन्होंने अपनी गलती मानने के बजाय दूसरों पर ही आरोप मढऩे शुरू कर दिए। वीसी ने मुताबिक बाहरी तत्वों ने कैंपस के माहौल को बिगाडऩे की साजिश रची। उन्होंने कहा कि घटना के दिन जेएनयू और इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के छात्र कैंपस में मौजूद थे और प्रदर्शनकारी छात्राओं को भड़का रहे थे।
कमिश्नर ने विवि को ठहराया जिम्मेदार
इस बीच पूरे मामले की जांच कर रहे वाराणसी मंडल के कमिश्नर नितिन रमेश गोकर्ण ने भी माना कि विश्वविद्यालय प्रशासन की गलतियों की वजह से यह घटना हुई। कमिश्नर ने अपनी रिपोर्ट उत्तर प्रदेश सरकार को सौंप दी है। कमिश्नर ने रिपोर्ट में बवाल बढऩे के लिए बीएचयू प्रशासन को जिम्मेदार ठहराया है। कमिश्नर की रिपोर्ट के बाद मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने वीसी को दिल्ली तलब कर लिया।
सूत्रों की मानें, तो वीसी को छुट्टी पर भेजा जा सकता है। वहीं, बीएचयू ने मेसर्स शिव शक्ति सिक्युरिटी सर्विसेज को पत्र लिखकर तुरंत 20 महिला सुरक्षाकर्मियों की मांग की है। इसमें कहा गया है कि प्राथमिकता के आधार पर 20 महिला सुरक्षाकर्मियों को मुख्य आरक्षाधिकारी के सामने पेश किया जाए ताकि उन्हें विश्वविद्यालय की छात्राओं की सुरक्षा में तैनात किया जा सके। वहीं दूसरी ओर जिला प्रशासन ने प्रॉक्टोरियल बोर्ड में तैनात सुरक्षाकर्मियों की ड्रेस चेंज करने का साथ ही कैंपस में सीसीटीवी कैमरे का जाल बिछाने का आदेश दिया है।
बीजेपी के दिग्गज साधे हुए हैं चुप्पी
बीएचयू बवाल भाजपा के लिए गले की फांस बन गया है। समूचा घटनाक्रम पीएम के कार्यक्रम के समय हुआ है जिसमें केन्द्र और प्रदेश के सभी दिग्गज शामिल थे। बीएचयू की छात्र राजनीति की उपज मनोज सिन्हा और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष डॉ. महेंद्रनाथ पांडेय सरीखे दिग्गजों को भी इस बाबत बोलते नहीं बन रहा है। मनोज सिन्हा तो घटनाक्रम के बाद अपने संसदीय क्षेत्र गाजीपुर आए, लेकिन बवाल को लेकर चुप्पी साधे रहे। रेल राज्यमंत्री और स्वतंत्र प्रभार के रूप में संचार मंत्रालय को देखने वाले मनोज सिन्हा बीएचयू छात्रसंघ के अध्यक्ष रह चुके हैं।
यहां के कार्यक्रमों में उन्हें विशेष तर पर बुलाया जाता रहा है। डॉ. महेंद्रनाथ पाण्डेय भी छात्रसंघ के महामंत्री रह चुके हैं। एक माह पहले तक उनके पास जो विभाग था, उसी के अधीन बीएचयू आता है। घटनाक्रम के बाद दोनों दिग्गजों की चुप्पी छात्रों को ही नहीं बल्कि काशीवासियों को भी खटक रही है। भाजपा की स्थानीय इकाई के भी कई नेता बीएचयू से जुड़े रहे हैं। हैरानी इस बात की है कि बयान तो दूर वह चर्चा से भी भाग रहे हैं।
आंदोलन में बाहरी तत्वों की भी प्रमुख भूमिका
महामना की बगिया 'बीएचयूÓको पता नहीं किसकी लगी है बुरी नजर!
काशी हिंदू विश्वविद्यालय की घटनाओ में बाहरी तत्वों के हाथ होने के भी पर्याप्त प्रमाण अब सामने आने लगे हैं। एक तरफ खुफिया विभाग की रिपोर्ट्स बता रही हैं कि इस आंदोलन के लिए बाहर से लोग बनारस आए, वहीं फंडिंग की बात भी सामने आयी है। इसके तार सीधे जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय से भी जुड़ गए हैं।
इस आंदोलन में मृत्युंजय कुमार सिंह नाम के एक ऐसे व्यक्ति का नाम और चेहरा अब सामने आ गया है, जो इस पूरे घटनाक्रम में केंद्रीय भूमिका में रहा है। इनका पता पहले जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली लिखा है, लेकिन वह बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के आंदोलनकारी छात्र के रूप में बनारस जिलाधिकारी से छात्र हित में झड़प करते दिखाई पड़ते हैं। जानकारों का कहना है कि बनारस में रहने वाले भाजपा से इतर दूसरे राजनीतिक दलों के नेताओं ने भी इस आंदोलन को भड़काने में प्रमुख भूमिका निभाई। आरोप है कि उन्होंने छात्रों को हिंसा के लिए भड़काया और इसी कारण विश्वविद्यालय का माहौल खराब हुआ।