TRENDING TAGS :
Vice Presidential Election 2022: भाजपा शासन में पहली बार एक आयातित व्यक्ति पंहुचेंगे शीर्ष पदों में से एक पर
Vice Presidential Election 2022: उपराष्ट्रपति पद के चुनाव के लिए वोटिंग जारी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपना वोट डाल चुके हैं। इस चुनाव में बीजेपी ने जहां पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ को मैदान में उतारा है वहीं विपक्ष ने कांग्रेस नेता मार्गेट अल्वा को अपना उम्मीदवार बनाया है।
Vice Presidential Election 2022: उपराष्ट्रपति पद के चुनाव के लिए वोटिंग जारी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपना वोट डाल चुके हैं। इस चुनाव में बीजेपी ने जहां पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ को मैदान में उतारा है वहीं विपक्ष ने कांग्रेस नेता मार्गेट अल्वा को अपना उम्मीदवार बनाया है। उपराष्ट्रपति चुनाव के वोटों के समीकरण को देखते हुए एनडीए उम्मीदवार की आरामदायक जीत तय है। पश्चिम बंगाल की सीएम और टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी ने इस चुनाव से दूर रहने का ऐलान कर धनखड़ की राह और आसान कर दी है।
एनडीए उम्मीदवार जगदीप धनखड़ के ऐलान ने एकबार फिर सियासी पंडितों को चौंका दिया था। सियासी जानकार मान रहे थे कि बीजेपी किसी मुस्लिम चेहरे या सवर्ण चेहरे पर दांव चल सकती है क्योंकि राष्ट्रपति एक आदिवासी को बनाया गया है। लेकिन सियासी पंडितों को छकाने में माहिर बीजेपी आलाकमान ने जगदीप धनखड़ के रूप में एक ओबीसी चेहरे पर दांव चला जो कि जाट समुदाय से आते हैं। बीजेपी का ये फैसला थोड़ा हैरान करने वाला इसलिए भी था क्योंकि धनखड़ संघ परिवार के बैकग्राउंस से नहीं आते थे। उन्होंने अपनी राजनीति की शुरूआत जनता दल से की और फिर कांग्रेस में भी रहे।
धनखड़ एक निशाने अनेक की कोशिश
इसके बाद भी देश के दूसरे सबसे बड़े पद के लिए उनके नाम के ऐलान ने सबको चौंका दिया। क्योंकि मोदी - शाह की जो नई भाजपा है, उसमें वैचारिक प्रतिबद्धता रखने वाले नेताओं पर विशेष मेहरबानी की जाती है। विशेषकर महत्वपूर्ण एवं खास पदों पर उन्हें ही बैठाया जाता है। ऐसी स्थिति में धनखड़ का चुनाव थोड़ा हैरान करने वाला था। संभवतः इसके पीछे जाट बिरादरी को साधने की रणनीति हो सकती है। जो किसान आंदोलन के दौरान बीजेपी से छिटक गए थे।
अगले साल राजस्थान और एमपी में चुनाव होने हैं, इसके बाद 2024 में लोकसभा चुनाव के अलावा हरियाणा में भी विधानसभा चुनाव होने हैं। इन राज्यों में जाट समुदाय प्रभावी भूमिका में हैं। धनखड़ ने राजस्थान में राजनीति करने के दौरान जाट समुदाय को आरक्षण दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, इसलिए जाटी बिरादरी में उनकी अच्छी पकड़ मानी जाती है। बीजेपी को अगले साल राजस्थान चुनाव में इसका फायदा मिल सकता है।
जगदीप धनखड़ का सियासी सफर
जगदीप धनखड़ राजनीति में एक्टिव होने से पहले एक दिग्गज वकील हुआ करते थे। उन्होंने इस पेशे में खूब नाम कमाया और इसी के बदौलत सियासत में उनकी एंट्री शानदार हुई। उनके परिवार के मुताबिक, धनखड़ राजनीति में कभी नहीं आना चाहते थे लेकिन 1989 में नेताओं के आग्रह पर चुनाव लड़ने के लिए तैयार हुए। उन्होंने अपने गृह क्षेत्र झुंझूनु से पहला लोकसभा चुनाव लड़ा और जीते भी। इसके बाद चन्द्रशेखर सरकार में कानून मंत्री भी बने। फिर जनता दल से मोहभंग होने के बाद कांग्रेस में शामिल हो गए और 1991 का आम चुनाव कांग्रेस के टिकट पर अजमेर से लड़ा हार गए।
इसके दो साल बाद उन्होंने राजस्थान विधानसभा चुनाव में अजमेर की किशनगढ़ सीट से चुनाव लड़ा और जीतकर विधायक बने। 2003 आते-आते उनका कांग्रेस से भी मोहभंग हो चुका था और फिर वह बीजेपी में शामिल हो गए। हालांकि, काफी समय तक वह सियासत के चकाचौंध से दूर रहे। साल 2019 में एक बार फिर उनका सियासी भाग्य जागा और मोदी - शाह की बीजेपी ने अपनी सबसे मजबूत प्रतिद्वंदी पश्चिम बंगाल की सीएम ममता के गढ़ में केंद्र के दूत के तौर पर उन्हें भेजने का निर्णय लिया।
30 जुलाई 2019 को धनखड़ पश्चिम बंगाल के राजभवन में प्रवेश हुए। धनखड़ और ममता के बीच जैसी सियासी कटुता रही, किसी राज्य के राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच शायद ही कभी ऐसी कटुता दिखी होगी। बीजेपी ने उनके लंबे सियासी अनुभव और कानूनी दावंपेंच में उनकी दक्षता को देखते हुए पश्चिम बंगाल जैसे अहम राज्य के राज्यपाल के लिए सबसे योग्य समझा।
बीजेपी की नजरों में कैसे आए धनखड़
जगदीप धनखड़ ने बीजेपी आलाकमान के भरोसे पर खड़े उतरते हुए सीएम ममता बनर्जी के राह में जमकर रोड़े अटकाए। दोनों के बीच हमेशा ठनी रहती थी, सार्वजनिक मंचों पर भी दोनों के बीच आरोप-प्रत्यारोप चलता रहता था। इतना ही नहीं कई बार ये पर्सनल भी हो गया। उन्होंने ममता सरकार के कई फैसलों को पलटा और कई फैसलों पर सार्वजनिक रूप से आपत्ति भी दर्ज करा देते थे, जिससे सरकार की काफी किरकिरी होती थी।
ममता और टीएमसी के नेता धनखड़ से इतने परेशान हो गए थे कि वे राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से मिलकर उन्हें हटाने की गुहार लगा चुके थे। सियासी जानकारों का कहना है कि बंगाल के राजभवन में धनखड़ की इसी भूमिका ने उन्हें बीजेपी आलाकमान के करीब ला दिया और जिसके पुरस्कार के तौर पर वह देश के दूसरे सबसे बड़े पद पर आसीन होने जा रहे हैं।