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Notebandi History: नोटबंदी का इतिहास है पुराना, जाने कब कब बदले गए नोट, वीडियो में देखें ये खास रिपोर्ट
Notebandi History in India: नोटबंदी को लेकर अर्थव्यवस्था के जानकारों का मानना है कि बड़े नोटों को समय समय पर चलन से बाहर करने की प्रकिया कैश फ्लो को क्लीन करने के साथ काला धन यानी नोटों की जमाखोरी को रोकने और फेक करेंसी यानी नकली नोटों के काले कारोबार को रोकने के मकसद से की जाती है|
Notebandi History in India: हम सभी ने अभी एक न्यूज़ पढ़ी है , देखी है , जिसमें कहा गया है कि अब 2000 के नोट भी बंद हो जाएँगें ।सरकार ने एक बार फिर से सबसे बड़ी करेंसी को बंद कर दिया है। हालांकि 2000 रुपये का नोट लीगल टेंडर में बना रहेगा। आप 30 सितंबर तक बैंक में जाकर अपने नोट को बदलवा सकेंगे, जमा करवा सकेंगे। हालांकि यह पहली बार नहीं है , जब आरबीआई ने नोट को चलन से बाहर किया है। इससे पहले 2016 आपको याद होगा, जब सरकार ने अचानक से 500 रुपये और 1000 रुपये को बैन करवे का फैसला किया था।
नोटबंदी आखिर है क्या (Notebandi Kya Hai)?
नोटबंदी को लेकर अर्थव्यवस्था के जानकारों का मानना है कि बड़े नोटों को समय समय पर चलन से बाहर करने की प्रकिया कैश फ्लो को क्लीन करने के साथ काला धन यानी नोटों की जमाखोरी को रोकने और फेक करेंसी यानी नकली नोटों के काले कारोबार को रोकने के मकसद से की जाती है।
19 मई, 2023 से पहले देश में कई मौकों पर लीगल टेंडर या चलन में मौजूद नोटों से जुड़े कई फैसले लिए गए हैं।
नोट बंदी का इतिहास (Notebandi Ka Itihas)
1946 में देश में पहली बार नोटबंदी आजादी के पहले साल 1946 में हुई थी। भारत के वायसराय और गर्वनर जनरल सर आर्चीबाल्ड वेवेल ने 12 जनवरी, 1946 को हाई करेंसी वाले बैंक नोटों को डिमोनेटाइज करने का अध्यादेश लाने का प्रस्ताव दिया था। इसके 13 दिन बाद यानी 26 जनवरी रात 12 बजे के बाद से ब्रिटिश काल में जारी 500 रुपये, 1000 रुपये और 10000 रुपये के नोटों की वैधता समाप्त कर दी गई थी। आजादी से पहले 100 रुपये से ऊपर के सभी नोटों पर प्रतिबंध लगाया गया था। सरकार ने उस वक्त यह फैसला लोगों के पास कालेधन के रूप में पड़े नोटों को वापस मंगाने के लिए यह फैसला लिया था। इतिहासकारों का मानना है कि उस समय भारत में व्यापारियों ने मित्र देशों को सामान निर्यात कर मुनाफा कमाया था और इसे सरकार की नजर से छुपाने की कोशिश कर रहे थे।
1978 में
16 जनवरी, 1978 को तत्कालीन मोरारजी देसाई ने 1000 , 5000 और 10 हजार रुपये के नोटों को बंद करने की घोषणा की गई। कालेधन पर लगाम लगाने के लिए सरकार ने ये फैसला लिया। अखबारों में विज्ञापन जारी कर नोटबंदी का ऐलान किया गया था। सरकार के फैसले के बाद ये नोट चलन से बाहर हो गए थे।देश में कालेधन को खत्म करने के लिए अंग्रेजों से आजादी मिलने के बाद साल 1978 में भी नोटबंदी का फैसला लिया गया।
तत्कालीन मोरारजी देसाई सरकार ने बड़े नोटों को डिमोनेटाइज करने की घोषणा की थी। उस समय के अखबारों में प्रकाशित खबरों के मुताबिक नोटबंदी के इस फैसले से लोगों को काफी परेशानी झेलनी पड़ी थी। जनता पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार ने 16 जनवरी, 1978 को 1000 रुपये, 5000 रुपये और 10 हजार रुपये के नोटों को बंद करने की घोषणा की थी। सरकार ने इस नोटबंदी की घोषणा के अगले दिन यानी 17 जनवरी को लेनदेन के लिए सभी बैंकों और उनकी ब्रांचों के अलावा सरकारों के अपने ट्रेजरी डिपार्टमेंट को बंद रखने को कहा गया था।
यहां एक बात गौर करने वाली है कि रिजर्व बैंक ने जनवरी 1938 में पहली पेपर करंसी छापी थी । जो 5 रुपए नोट की थी। इसी साल 10 रुपए, 100 रुपए, 1,000 रुपए और 10,000 रुपए के नोट भी छापे गए थे। लेकिन 1946 में 1,000 और 10 हजार के नोट बंद कर दिए गए थे। 1954 में एक बार फिर से 1,000 और 10,000 रुपए के नोट छापे गए थे। साथ ही 5,000 रुपए के नोटों की भी एक बार फिर छपाई की गई थी। उसके बाद 10000 और 5000 के नोटों को 1978 में मोरारजी देसाई की सरकार ने चलन से बाहर कर दिया।
2016 में
इसके बाद साल 2016 में मोदी सरकार ने 500 और 1000 रुपये के नोट को बंद करने का फैसला लिया। पुराने नोट को चलन से बाहर कर दिया गया। इस फैसले के बाद सरकार ने 500 रुपये का नया नोट और 2000 रुपये के नोट जारी किया था। सरकार के इस फैसले की खूब आलोचना भी हुई थी।
मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया था। बाद में कोर्ट ने नोटबंदी के फैसले को सही ठहराया था।
2023 में
साल 2023 में एक बार फिर से आरबीआई ने 2000 रुपये के नोट को सर्कुलेशन से बाहर करने का फैसला किया है। हालांकि इस नोट की वैधता बनी रहेगी। RBI ने नवंबर 2016 में 2000 के नोट जारी किया था।
आरबीआई ने कहा कि 2000 के करीब 89 प्रतिशत नोट मार्च 2017 से पहले के है। उनकी समय सीमा पूरी हो चुकी है। वहीं इस नोट का बहुत कम इस्तेमाल हो रहा है।
नोटबंदी को सही ठहरा चुका है सुप्रीम कोर्ट
नवंबर 2016 की नोटबंदी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर हुई थीं।याचिकाकर्ताओं का कहना था कि नोटबंदी का फैसला खतरनाक था और इसके लिए जो प्रक्रिया अपनाई गई थी, उसमें खामियां थीं।हालांकि, इसी साल जनवरी में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने 4-1 से नोटबंदी को सही ठहराया था।सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि संविधान और आरबीआई एक्ट ने केंद्र सरकार को नोटबंदी का अधिकार दिया है।उसका इस्तेमाल करने से कोई नहीं रोक सकता है।अब तक दो बार नोटबंदी यानी डिमोनेटाइजेशन के इस अधिकार का इस्तेमाल हुआ था और ये तीसरा मौका था।आरबीआई अकेले नोटबंदी का फैसला नहीं कर सकता।