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आंध्र प्रदेश भयानक हिंसा: नाम बदलने पर इतना बड़ा बवाल, मामला पहचान के संकट का
Konaseema Name Change Case: आंध्र में ये बवाल डॉ बी आर अंबेडकर के नाम पर नव-निर्मित कोनसीमा जिले का नाम बदलने को लेकर हुआ है।
Konaseema Name Change Case: शेक्सपियर (Shakespeare) के रोमियो एंड जूलियट (Romeo and Juliet) में एक लाइन है - "नाम में क्या रखा है।" यानी नाम में कुछ नहीं रखा, पहचान तो काम से होती है। लेकिन जिस तरह आंध्र प्रदेश (Andhra Pradesh) में एक जिले का नाम बदलने के प्रस्ताव पर ही जबर्दस्त बवाल हो गया है उससे तो लगता है कि नाम में ही बहुत कुछ रखा है, खासकर वर्तमान परिप्रेक्ष्य में। आंध्र में ये बवाल डॉ बी आर अंबेडकर (Dr B R Ambedkar) के नाम पर नव-निर्मित कोनसीमा जिले का नाम बदलने को लेकर हुआ है। जिले मुख्यालय अमलापुरम में आगजनी, कर्फ्यू सब कुछ हो गया है। प्रदर्शनकारियों ने परिवहन मंत्री पी विश्वरूप (Transport Minister P Vishwaroop) और विधायक पी सतीश के घरों तक को आग लगा दी।
नाम बदलने पर जनता से सुझाव मांगे गए हैं
दरअसल, पूर्वी गोदावरी जिले से बना कोनासीमा (Konaseema) उन 13 नए जिलों में शामिल है, जिनकी घोषणा पिछले महीने की शुरुआत में वाईएसआरसीपी सरकार (YSRCP Govt) ने की थी। राज्य सरकार ने इस संबंध में 18 मई को एक अधिसूचना जारी की थी। अभी नाम बदलने पर जनता से सुझाव मांगे गए हैं और इसके लिए 20 दिन का समय दिया गया है। लेकिन अधिसूचना जारी होते ही विरोध शुरू हो गया।
जिन नए जिलों को बनाया गया है उनमें प्रत्येक जिले का नाम किसी न किसी शख्सियत के नाम पर रखा गया है। स्वतंत्रता सेनानी अल्लूरी सीताराम राजू, पूर्व मुख्यमंत्री और तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) के संस्थापक एन.टी. रामा राव, सत्य साईं बाबा और 15 वीं शताब्दी के संत कवि तल्लापका अन्नामाचार्य इनमें शामिल हैं। आंध्र सरकार ने कहा है कि कोनसीमा का नाम डॉ बी आर अंबेडकर के नाम पर रखने का निर्णय जिले की बड़ी एससी आबादी के अनुरोध के बाद लिया गया था।
पारंपरिक नाम कोनसीमा बनाए रखने की मांग
लेकिन नाम बदलने के प्रस्ताव का अन्य समुदायों के वर्गों, विशेष रूप से कापू और कुछ पिछड़ा वर्ग के समूहों द्वारा विरोध किया गया है, जो मांग कर रहे हैं कि इस क्षेत्र का पारंपरिक नाम कोनसीमा बनाए रखा जाना चाहिए।
वयोवृद्ध भाकपा नेता सी के नारायण का कहना है कि जगन रेड्डी सरकार के इस कदम ने पिछड़ा वर्ग और कापू को एकजुट कर दिया है क्योंकि वे नहीं चाहते कि उनके जिले का नाम दलित आइकन के साथ जोड़ा जाए। जबकि एससी और एसटी क्रमशः जिले की आबादी का लगभग 19 फीसदी और 5 फीसदीहैं। और शेष आबादी मुख्य रूप से कापू और पिछड़ा वर्ग से बनी है। कापू पूर्ववर्ती पूर्वी गोदावरी जिले में सबसे प्रमुख जाति है।यही वजह है कि पिछड़ा वर्ग और कापू के वर्चस्व वाले कुछ संगठन - जैसे कोनसीमा परिक्षण समिति, कोनसीमा साधना समिति और कोनसीमा उद्यम समिति - पिछले कई दिनों से विरोध प्रदर्शन कर रहे थे।
पारंपरिक पहचान खतरे में
हालांकि, जाति की राजनीति के अलावा, स्थानीय निवासियों के एक वर्ग द्वारा भी चिंता व्यक्त की जा रही है कि कोनसीमा का नाम बदलने से क्षेत्र की पारंपरिक पहचान खत्म हो जाएगी। लोगों का कहना है कि विरोध डॉ अंबेडकर के खिलाफ नहीं है, बल्कि क्षेत्र की पहचान को मिटाने के खिलाफ है।
बंगाल की खाड़ी और गोदावरी नदी की सहायक नदियों के बीच बसे, कोनसीमा के बैकवाटर की तुलना अक्सर केरल से की जाती है। इस क्षेत्र में नारियल और धान की प्रमुखता से खेती की जाती है।