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बिना वीजा पाकिस्तान स्थित कटासराज के दर्शन को मिले मंजूरी

raghvendra
Published on: 4 Jan 2019 12:43 PM GMT
बिना वीजा पाकिस्तान स्थित कटासराज के दर्शन को मिले मंजूरी
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दुर्गेश पार्थसारथी

अमृतसर: पिछले साल नवंबर 2019 में भारत और पाकिस्तान की सरकारों की ओर से पाकिस्तान स्थित गुरुद्वारा श्री करतारपुर साहिब के लिए कॉरिडोर के शिलान्यास के साथ ही पाकिस्तान के पंजाब प्रांत स्थित कटासराज के अलावा वहां स्थित विभिन्न मंंदिरों के बिना वीजा के दर्शन की मंजूरी दिए जाने की मांग उठने लगी है। कई बार कटासराज की यात्रा कर चुकीं भारतीय जनता पार्टी की वरिष्ठ नेता और पूर्व स्वास्थ्य मंत्री प्रो. लक्ष्मीकांत चावला कहती हैं कि लाहौर सहित पाकिस्तान के विभिन्न प्रांतों में स्थित मंदिरों और गुरुद्वारों के दर्शनों की बिना वीजा के इजाजत दी जानी चाहिए। उन्होंने कि वे कई बार पाकिस्तान जा चुकी हैं, लेकिन नियम कड़े होने के कारण चाह कर भी वह वहां के मंदिरों और गुरुद्वारों के दर्शन नहीं कर पाती हैं। यहीं नहीं कई बार कटासराज जाने वाले जत्थे में शामिल लोगों को भी भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है। इसलिए भारत से पाकिस्तान व वहां से भारत आने वाले तीर्थयात्रियों की भावनाओं के समझते वीजा नियमों को सरल बनाया जाना चाहिए। जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूख अब्दुल्ला भी भारत और पाकिस्तान सरकार से पाक अधिकृत कश्मीर स्थित सरस्वती मंदिर के दर्शनों के लिए कॉरिडोर बनाए जाने की मांग कर चुके हैं।

क्या है कटासराज का इतिहास

जब कटासराज के लिए वीजा नियम सरल बनाए जाने की मांग उठने लगी है तो यह जान लेना भी आवश्यक है कि कटासराज क्या है। इसकी धार्मिक और ऐतिहासिक महत्ता क्या है और क्यों यह हरिद्वार या काशी की तरह पवित्र है। सन 1947 में यह भारत-पाक विभाजन से पहले पंजाब में स्थित जगह हिंदुओं का पवित्र तीर्थस्थल हुआ करता था। यहां शिवरात्रि के दिन भव्य मेला लगा करता था। यहां पंजाब, सिंध, बलूचिस्तान सहित अन्य पश्चिमी प्रातों यहां तक कि तक्षशिला से भी आकर हिन्दू अपने पितरों का तर्पण किया करते थे। बताया जाता है कि कटासराज स्थित मंदिर करीब सैकड़ों साल से भी अधिक पुराना है। यह पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के उत्तीर भाग में चकवाल जिला से लगभग 40 किमी दूर निमकोट पर्वत शृंखला में स्थित है। इसके रास्ते में चारों तरफ सेंधा नमक की खदानें हैं। इस नमक का भारत बड़े पैमाने पर पाकिस्तान से आयात करता है। कटासराज में भगवान शिव का दसवीं शताब्दी का बना मंदिर है।

इतिहासकारों के मुताबिक इस स्थान को पवित्र शिवनेत्र माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार मां पार्वती जब सती हुईं तो भगवान शिव की आंखों से आंसू के दो बूंद टपके थे। एक कटासराज तो दूसरा राजस्थान के पुष्कर में गिरा था। मान्यता है कि बनवास के दौरान पांडवों ने इन्हीं पहाडिय़ों में अज्ञातवास काटा था। पानी की तलाश में वे इन्हीं जलाशयों में आए थे और युधिष्ठिर ने यज्ञ के प्रश्नों का उत्तर देकर अपने भाइयों को जीवित कराया था।

पाक के पूर्व पीएम ने भी किया था दौरा

पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने हिंदुओं के इस पवित्र एवं ऐतिहासिक स्थल का दौरा कर भगवान शिव की पूजा आरती में भाग लिया था। इस दौरान पाकिस्तानी कट्टरपंथियों के भारी विरोध के बावजूद उन्होंने कहा था कि सभी धर्मों के लोग एक समान होते हैं। यही नहीं उन्होंने पाक सरकार द्वारा कटासराज मंदिर का जीर्णोद्धार कराने की भी बात कही थी।

विभाजन से पहले हिंदू बहुल था इलाका

कटासराज मंदिर का हाल में दौरा करके लौटे केंद्रीय सनातन धर्म सभा उत्तरी भारत के अध्यक्ष शिव प्रताप बजाज ने बताया कि विभाजन से पहले कटासराज हिंदू बाहुल्य क्षेत्र था। लेकिन 1947 में भारत विभजन के बाद बहुत से हिंदू भारत चले आए थे। अब इस क्षेत्र में हिंदुओं की संख्या बहुत कम रह गई है। वे बताते हैं कि कटासराज मंदिर परिसर में श्री राम मंदिर, हनुमान मंदिर और शिव मंदिर देखे जा सकते हैं। बजाज बताते हैं कि मंदिर परिसर में सात से अधिक मंदिर हैं। वे कहते हैं कि यह सिख और बौद्ध धर्म का भी पवित्र स्थल है। अभी इसकी व्यवस्था वक्फ बोर्ड और पाकिस्तान की पंजाब सरकार संयुक्त रूप से देख रही है। वे कहते हैं कि कटासराज सरोवर की गहराई करीब 30 फुट है। कटासराज के पास ही बौद्ध स्तूप भी है, जिसे सम्राट अशोक ने बनवाया था।

कटासराज जाने वालों को भी मिले सुविधा

1982 से देशभर से हिंदुओं का जत्था लेकर पाकिस्तान जाने वाले केंद्रीय सनातन धर्मसभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिव प्रताप बजाज करते हैं कि कटासराज जाने वाले हिंदुओं को सुविधाएं मिलनी चाहिए। 1999 में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भारत-पाक के बीच रिश्तों को मजबूत बनाने के लिए बस लेकर लाहौर गए थे तो उस समय केंद्रीय सनातन धर्म सभा 22 सांसदों का एक प्रतिनिधिमंडल भी लेकर गया था। इसमें सुषमा स्वराज, मीरा कुमार, बलराम जाखड़, राज्यसभा सदस्य लाजपतराय और मणिशंकर अय्यर आदि शामिल थे।

बढ़ाई जाए यात्रियों की संख्या

पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांत चावला, दुग्र्याणा मंदिर कमेटी अमृतसर के अध्यक्ष और केंद्रीय सनातन धर्म सभा यमुना नगर हरियाणा के अध्यक्ष बजाज का कहना है कि भारत और पकिस्तान सरकारों की ओर से वर्ष में दो बार कटासराज जाने वाले हिंदू यात्रियों की संख्या बढ़ाने की मंजूरी दी जानी चाहिए। बजाज ने कहा कि वह 1974 के इंडो-पाक प्रोटोकॉल के अनुसार 200 हिंदू यात्रियों का जत्था लेकर वर्ष में दो बार एक महाशिवरात्री को और दूसरा नवंबर या दिसंबर के महीने में लेकर पाकिस्तान जा सकते हैं। वे कहते हैं अब यात्रियों संख्या बढ़ाकर पांच सौ या इससे अधिक की जानी चाहिए।

अमृतसर में बनाया जाए यात्री निवास

बजाज कहते हैं कि जिस तरह के देशभर में हज हाउस बनाए गए हैं, उसी तरह कटासराज जाने वाले यात्रियों के लिए भी अमृतसर में पंजाब सरकार और भारत सरकार को मिलकर यात्री निवास बनाए जाने चाहिए क्योंकि यात्रियों के ठहरने के लिए ना तो अमृतसर में कोई जगह है और ना ही लाहौर में। जत्थे में शामिल देश के विभिन्न प्रांतों से आए यात्रियों को या तो होटलों में या फिर गुरुद्वारों में रुकना पड़ता है। इसलिए भारत और पाकिस्तान की सरकारों से अनुरोध है कि वे अमृतसर और लाहौर में यात्री निवास बनवाएं।

इमरान सरकार ने किया हिंदू यात्रियों का स्वागत

देश भर से गए 200 हिंदू तीर्थ यात्रियों का जत्था लेकर पाकिस्तान से लौटे बजाज कहते हैं कि इस बार पाकिस्तान की इमरान सरकार ने कटासराज जाने वाले हिंदू यात्रियों को अटारी बार्डर पर और फिर लाहौर में फूल माला पहनाकर और गुलदस्ते भेंट कर स्वागत किया। वे कहते हैं कि हम पाकिस्तान सरकार से मांग करते हैं कि वहां स्थित अन्य हिंदू मंदिरों को खोला जाए और उनका जीर्णोद्धार करवाया जाए। इस दिशा में दोनों देशों की सरकारों को पहल करनी चाहिए। इससे न केवल दोनों देशों के रिश्तों में मधुरता आएगी बल्कि पर्यटनों को भी बढ़ावा मिलेगा। बजाज ने बताया कि कटासराज तीर्थस्थल करीब दो किलोमीटर में फैला हुआ है और यहां पर फिलहाल 36 कमरे बनवाए जा रहे हैं। यही पर महाराजा रणजीत सिंह ,जरनैल हरिसिंह नलवा की हवेली भी है जो अब खंडहर बन चुकी है। लेकिन उसकी प्राचीर आज भी अपनी भव्यता की कहानी सुना रही है। उन्होंनें बताया कि ब्रिटिश गजेटियर के मुताबिक बंटवारे से पहले कटासराज झेलम जिले के चकवाल तहील में पड़ता था जो अब चकवाल जिले में है।

शक्तिपीठ हिंगलाज सहित दर्जनों मंदिर हैं पाक में

उल्लेखनीय है कि भारत विभाजन के बाद ननकाना साहिब, तक्षशिला और मोहनजोदड़ो सहित कई धार्मिक एवं ऐतिहासिक स्थल पाकिस्तान के हिस्से में आए थे। जिन स्थलों का कभी वैभव हुआ करता था वे स्थल आज अपने अंतिम दिन गिन रहे हैं। इन तमाम स्थलों में से एक है हिंगलाज मंदिर। यह मंदिर पाकिस्तान के बलूचिस्तान में स्थित है। यह स्थल 51 शक्तिपीठों में से एक है। इसी तरह पाकिस्तान के धारवाण जिले में गौरी मंदिर है। कहा जाता है कि यह मुख्य रूप से जैन मंदिर है जो अब खस्ताहाल है। बताया जाता है कि धरवाण जिले में हिंदू बहुसंख्यक हैं जिन्हें थारी हिंदूर कहा जाता है। पाक के पंजाब प्रांत के बलावाग स्थित मरिइंडस मंदिर को मध्य काल में बनवाया गया था। यह मंदिर भी खंडहर हो चुका है।

पाक अधिकृत कश्मीर में भी 160 वर्ष पुरान खेरख नाथ मंदिर है जो देश विभाजन के बाद से ही बंद पड़ा था, लेकिन वर्ष 2011 में पेशावर हाईकोर्ट के आदेश पर दोबारा खोला गया। कराची में करीब 100 साल पुराना वरूण देव का मंदिर है। पाकिस्तान हिंदू काउंसिल ने इस बंद पड़े क्षतिग्रस्त मंदिर को दोबारा तैयार करने का फैसला किया है। कराची के स्वामी नारायण मंदिर और 150 साल पुराना हनुमान मंदिर है। सिंध प्रात में बाबा बनखंडी मंदिर है। इसी तरह पाक अधिकृत कश्मीर में मां सरस्वती का मंदिर है जिसे शारदा देवी मंदिर भी कहा जाता है। इसी तरह पंजाब के सियालकोट में बाबा जोगिया मंदिर, वीर हकीकत की समाधि सहित दर्जनों मंदिर लाहौर के अनारकली बाजार में अंतिम सांसें गिन रहे हैं।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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