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पश्चिम बंगाल : कुछ तो गड़बड़ है

पश्चिम बंगाल में कोरोना की क्या स्थिति है इसके बारे में ममता बनर्जी सरकार पर जानकारी छिपाने के आरोप लग रहे है। इसी वजह से केन्द्रीय टीम के दौरे को ले कर विवाद भी हो चुका है। सरकार पर मौतों के आंकड़े छिपाने का भी आरोप लगा क्योंकि पहले कुछ और आंकड़े बताए गए फिर अचानक चार गुना ज्यादा मौतों की बात स्वीकार की गई।

suman
Published on: 1 May 2020 9:48 PM IST
पश्चिम बंगाल : कुछ तो गड़बड़ है
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कोलकाता पश्चिम बंगाल में कोरोना की क्या स्थिति है इसके बारे में ममता बनर्जी सरकार पर जानकारी छिपाने के आरोप लग रहे है। इसी वजह से केन्द्रीय टीम के दौरे को ले कर विवाद भी हो चुका है। सरकार पर मौतों के आंकड़े छिपाने का भी आरोप लगा क्योंकि पहले कुछ और आंकड़े बताए गए फिर अचानक चार गुना ज्यादा मौतों की बात स्वीकार की गई।

क्या है स्थिति : पश्चिम बंगाल एक ऐसा राज्य है जो डेंगू जैसी बीमारियों के आंकड़ों में भी गड़बड़ करने के लिए जाना जाता है और इसी कारण से राज्य के कोरोना वायरस के आंकड़ों पर भी सवाल उठ रहे हैं। राज्य ने अभी तक कोरोना के 700 मामले दिखाए हैं जो अन्य कई राज्यों के मुकाबले बेहद कम हैं। डॉक्टर्स और विशेषज्ञों ने राज्य में कम टेस्ट को इसका कारण बताया है और उनका अंदेशा है कि यहां स्थिति खराब हो सकती है।

टेस्टिंग में बंगाल पीछे : अगर टेस्टिंग के आंकड़ों की बात करें तो 20 अप्रैल तक राज्य में 5,469 टेस्ट हुए थे। ये आंकड़ा कितना कम है इसका अंदाजा इस बात से लगाजा जा सकता है कि लगभग इतने ही टेस्ट असम में हुए हैं, जबकि असम की आबादी बंगाल की एक-तिहाई है।

बंगाल में प्रति 10 लाख लोगों पर मात्र 60 लोगों की टेस्टिंग हुई है, जबकि 20 अप्रैल तक राष्ट्रीय स्तर पर ये आंकड़ा प्रति 10 लाख लोगों पर 317 टेस्ट का था।

पॉजिटिव मामलों की दर अधिक :

कम टेस्टिंग के विपरीत पश्चिम बंगाल में पॉजिटविटी रेट यानि प्रति 100 टेस्ट पर पॉजिटिव पाए जाने वाले लोगों की संख्या अन्य राज्यों के मुकाबले अधिक है। राज्य में पॉजिटिविटी रेट छह प्रतिशत से अधिक है यानि हर 16 सैंपल में से एक सैंपल को कोरोना वायरस के लिए पॉजिटिव पाया जाता है। राष्ट्रीय स्तर पर ये आंकड़ा 4-4.5 प्रतिशत के आसपास है और हर 26 सैंपल में से एक सैंपल पॉजिटिव पाया जाता है।

इस वजह से कम हैं टेस्टिंग रेट : विशेषज्ञों के अनुसार टेस्टिंग रेट कम और पॉजिटिविटी रेट अधिक होने के मतलब है कि पॉजिटिव मामले छूट रहे हैं और ये खतरनाक स्थिति है। उनका कहना है कि इसकी एक मुख्य वजह है कि राज्य में कॉन्टेक्ट ट्रैसिंग यानी संक्रमित लोगों के संपर्क में आने वाले लोगों की पहचान और उन्हें क्वारंटाइन करने का काम ठीक से नहीं हुआ है।

ममता सरकार के फैसले : ममता बनर्जी सरकार के कुछ फैसलों ने भी स्थिति को संदेहजनक बनाया है। सरकार ने एक ऑडिट समिति बनाई है और इसकी मंजूरी के बाद ही ये फैसला होता है कि कौन सी मौत कोरोना वायरस से संबंधित है और कौन सी नहीं। राज्य सरकार ने शुरूआत में जांच के लिए आई केंद्र सरकार की अंतर-मंत्रालयीय टीम का भी विरोध किया, लेकिन गृह मंत्रालय की चेतावनी के बाद इसे जांच की मंजूरी दे दी गई।

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संदेह : राज्य सरकार ने मौतों के आंकड़े में भी "किंतु-परंतु" जोड़ा है और राज्य के मुख्य सचिव राजीव सिन्हा ने कहा कि इनमें से ज़्यादातर लोगों की पहले से ही मौजूद बीमारियों की वजह से मौत हुई है और उन्हें कोरोना वायरस से संक्रमित पाया जाना महज एक संयोग था।

सहयोग : बंगाल के अधिकारियों के केन्द्रीय टीम के साथ सहयोग न करने की बात भी सामने आई है और ऐसा लगता है कि जैसे राज्य सरकार पूरे मामले को केवल राजनीति के नजरिए से देख रही है। उसका ये नजरिया भी चिंता का विषय बना हुआ है। केंद्र सरकार की टीम ने निष्कर्ष निकाला है कि बंगाल में कोरोना मामलों की जांच कम हुई है, संक्रमण के ज्यादा मामले सामने आ रहे हैं, जिससे कोरोना की स्थिति और अधिक गंभीर होने का अनुमान है

केंद्र की ओर से राज्यवार की गई जांच के आधार पर पता चलता है कि दिल्ली, महाराष्ट्र और राजस्थान में कोरोना के सबसे अधिक मामले सामने आए हैं लेकिन इसके पीछे एक तर्क यह भी है कि इन राज्यों में तेजी के साथ टेस्टिंग की गई है। वहीं पश्चिम बंगाल टेस्टिंग संख्या के मामले में काफी पिछड़ा हुआ है, लेकिन कोरोना पॉजिटिव मामलों के पर्सेंटेज में काफी आगे है।

स्थिति भयावह : केंद्र के दल की इंटरनल असेसमेंट के आधार पर राज्यों को चार समूहों में रखा जा रहा है। एक तो तेजी के साथ टेस्टिंग करने वाले राज्य, जैसे कि दिल्ली और महाराष्ट्र। जैसे-जैसे अधिक टेस्ट होते हैं, वैसे वैसे पॉजिटिव मामलों का पता चलता है। इससे कोरोना की चेन तोड़ने में मदद मिलती है। दूसरे समूह में लो टेस्टिंग, लो पॉजिटिव वाले राज्य हैं, जैसे केरल।

बताया जा रहा है कि केरल ने शुरुआती स्तर पर ही तेजी से जांच की है जिसके कारण इसे लो टेस्टिंग, लो पॉजिटिव केसेज में मदद मिली है। तीसरे परिदृश्य में हाई टेस्टिंग-लो पॉजिटिव केसेज वाले राज्य हैं। यह स्थिति वहां है जहां किसी राज्य ने एकबार तेजी से टेस्ट कर लिए हों। चौथा और सबसे चिंताजनक परिदृश्य 'लो टेस्टिंग एंड हाई पॉजिटिव केसेज' का है। यही वह स्थिति है जहां पश्चिम बंगाल अभी है।

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ममता का पलटवार : केन्द्रीय दल के बयानों के बाद पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी पलटवार किया है। ममता ने कहा कि केंद्र सरकार में कोई स्पष्टता नहीं है। वह एक ओर लॉकडाउन लागू करना चाहती है, वहीं दूसरी ओर दुकानें फिर से खोलने के लिये आदेश जारी कर रही है।

ममता बनर्जी ने कहा कि हमने एक निर्णय लिया है कि अगर किसी व्यक्ति को कोविड-19 के लिए पॉजिटिव पाया जाता है और उसके पास अपने निवास पर खुद को आइसोलेट करने का प्रावधान है, तो व्यक्ति खुद को क्वारंटाइन कर सकता है। लाखों लोगों को क्वारंटाइन नहीं किया जा सकता, सरकार की अपनी सीमाएं हैं।

इससे पहले ममता बनर्जी ने दो ट्वीट की श्रृंखला में कहा है कि पश्चिम बंगाल सरकार लॉकडाउन की वजह से देश के अलग-अलग हिस्सों में फंसे राज्य के लोगों को हर जरूरी मदद मुहैया कराएगी। इसकी तैयारी शुरू हो गई है। कोटा में फंसे बंगाल के छात्रों को जल्दी वापस लाया जाएगा। उन्होंने कहा है कि वह इसे खुद देख रही हैं। लोगों की मदद में कोई कसर बाकी नहीं लगाएंगी।

डाक्टरों की बुरी स्थिति : पश्चिम बंगाल में कोरोना वायरस से लड़ रहे फ्रंट लाइन स्वास्थ्य कर्मियों की स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं है। हाल ही में पश्चिम बंगाल हेल्थ सर्विसेज के सहायक निदेशक डॉक्टर बिप्लब कांति दासगुप्ता (60) की कोरोना से मौत हो गई। वह बंगाल के पहले डॉक्टर हैं जिनकी कोरोनावायरस से चलते मौत हुई है। सात दिन पहले उन्हें कोरोना से संक्रमित पाया गया था, जिसके बाद से उनका अस्पताल में इलाज चल रहा था।

स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी की पत्नी भी कोरोना संक्रमित पाई गई हैं। पश्चिम बंगाल में डॉक्टरों के संगठन वेस्ट बंगाल डॉक्टर्स फोरम ने दास की मौत पर दुख प्रकट करते हुए कहा कि कोरोना से जंग लड़ने वाले स्वास्थ्यकर्मियों के लिए पर्याप्त मात्रा में संसाधन सुनिश्चित करने की मांग की है। डॉक्टरों के फोरम ने कहा है कि राज्य के सभी स्वास्थ्यकर्मियों की कोरोना टेस्टिंग की जाए। इसके अलावा पर्याप्त मात्रा में पीपीई किट की व्यवस्था की जाए. कोरोना से इलाज में आईसीएमआर के दिशानिर्देशों का सख्ती से पालन किया जाए। उन्होंने बताया कि पिछले हफ्ते हमने राज्य सरकार से रोजाना एक अलग मेडिकल बुलेटिन जारी करने का आग्रह किया था।

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