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क्या है MSP पर स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट में 'सी2+50% फॉर्मूला, किसानों की नौ मांगो में से है एक
C2+50 % formula: किसानों ने अपनी 9 मांगे सरकार के सामने रखकर अपनी मंशा जाहिर कर दी है। केंद्र सरकार स्वामीनाथन आयोग के सी2+50 प्रतिशत फॉर्मूले के आधार पर एमएसपी की गारंटी का कानून बने।
C2+50 % formula: राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में सोमवार को पांच हजार से अधिक किसानों के जमावड़े ने 13 माह तक चले किसान आंदोलन (Kisan Andolan) की यादें ताजा कर दी। आसपास के राज्यों से आए इन किसानों ने अपनी 9 मांगे सरकार के सामने रखकर अपनी मंशा जाहिर कर दी है। इन 9 मांगों में सबसे अहम है एमएसपी का कानून, जिसपर किसान पहले भी किसी समझौते के मूड में नहीं थे, आज भी नहीं दिखे। इनकी मांग की है कि केंद्र सरकार स्वामीनाथन आयोग के सी2+50 प्रतिशत फॉर्मूले के आधार पर एमएसपी (MSP) की गारंटी का कानून बने।
क्या है एमएसपी का 'सी2+50% फॉर्मूला'
हरित क्रांति के जनक और कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन की अध्यक्षता में साल 2004 में तत्कालीन यूपीए सरकार (UPA Government) द्वारा किसानों की आर्थिक दशा सुधारने और अनाज की पैदावार को बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय किसान आयोग (National Farmers Commission) का गठन किया गया था। इसी कमेटी को स्वामीनाथन आयोग के नाम से भी जाना जाता है। कमेटी ने साल 2006 में अपनी रिपोर्ट सौंपी थी, जिसमें किसानों को 'सी2+50% फॉर्मूले' के तहत न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी दिए जाने की सिफारिश की गई थी। यानी फसल की कुल लागत (सी2 – कॉस्ट कॉम्प्रिहेंसिव) और उस पर होने वाला लाभ 50 प्रतिशत किया जाना चाहिए। कॉम्प्रिहेंसिव कॉस्ट (सी2) में फैमिली लेबर, जमीन का किराया और खेती के काम लगाई गई पूंजी पर ब्याज को भी शामिल किया जाता है। इसके पक्ष में ही किसान और कृषि विशेषज्ञ हैं।
वर्तमान में इस पद्धित का होता है इस्तेमाल
सरकार अभी ए2 + एफएल फॉर्मूले के आधार पर एमएसपी दे रही है। इसमें वास्तिवक लागत और किसान के परिवार के मेहनताने की लागत शामिल होती है। इसके अलावा एक और फॉर्मूला होता है ए2 । इस पद्धति के मुताबिक, वह सभी खर्च जो किसान अपनी जेब से करता है। इसमें बीज से लेकर खाद, मजदूर, मशीनरी और लीज पर ली गई जमीन का खर्च भी शामिल होता है।
बता दें कि साल 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी ने अपने घोषणापत्र में किसानों को लागत से 50 प्रतिशत अधिक की गारंटी देने का वादा किया था, जो अब पार्टी के लिए गले की फांस बनती नजर आ रही है। अब देखना दिलचस्प होगा कि कृषि कानूनों को वापस लेकर किसानों के गुस्से को कम करने में सफल रहने वाली मोदी सरकार इस मसले पर किसानों से कैसे निपटती करती है।