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Mafia Atiq Ahmed: अतीक अहमद नहीं ये हाइड्रा है, एक कटेगा दो नए उगेंगे

Mafia Atiq Ahmed Latest News: सबसे करीबी मामला अतीक अहमद का है। वह चांद बाबा रूपी सांप को मार कर उसी सांप का नया सिर बन गया। बाद में उसके गैंग के अन्य लोगों के रूप में हाईड्रा के और कई सिर उग आए।

Yogesh Mishra
Published on: 19 April 2023 4:14 PM GMT (Updated on: 19 April 2023 6:26 AM GMT)

Mafia Atiq Ahmed Ki Taja Khabar: ग्रीक यानी यूनानी पौराणिक कथाओं में सबसे भयानक राक्षस के रूप में "हाईड्रा" का वर्णन किया गया है। हाईड्रा कई सिर वाला सांप था, जिसमें फिर सिर पैदा करने और घातक ज़हर की अद्भुत शक्ति थी। यह ऐसा राक्षस था जिसका एक सिर कटता तो दो नए सिर उग आते थे।

माफिया और वायरस भी ऐसे हाईड्रा हैं। एक सिर कटता है तो दो नए उग आते हैं। ये पूरी दुनिया में होता आया है। लेकिन ग्रीक पौराणिक कथाओं में एक नायक हेरकल्स, जिसे रोमन कथाओं में हरक्यूलिस कहा गया है, भी हुए हैं, जिसने हाईड्रा को खत्म कर दिया था। माफिया और गैंगस्टर्स और वायरस के साथ भी ऐसा हुआ है। जहां आधुनिक हरक्यूलिस ने सांप के सभी सिर कुचल दिए।

मेक्सिको और कोलम्बिया के ड्रग कार्टेल, अमेरिका के सिसिलियन माफिया, अल साल्वाडोर के दुर्दांत गैंग्स, फिलीपींस के ड्रग माफिया, ब्राज़ील के गैंग - ये सब हाईड्रा ही हैं। पुलिस, सेना, कोर्ट सब बेबस हो गए। लेकिन सरकारों के हरक्यूलिस प्रयासों से कई सांप नष्ट कर दिए गए। लेकिन हर जगह ऐसा नहीं हुआ, बहुत से देशों और समाजों में अपराधी गैंग आज भी हाईड्रा ही बने हुए हैं।

भारत का ही उदाहरण देखें। सबसे करीबी मामला अतीक अहमद का है। वह चांद बाबा रूपी सांप को मार कर उसी सांप का नया सिर बन गया। बाद में उसके गैंग के अन्य लोगों के रूप में हाईड्रा के और कई सिर उग आए। अब कोई न कोई नया सिर उगने की कुलबुलाहट में अवश्य होगा। एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अतीक - अशरफ की हत्या करने वाले लड़कों ने कुछ बड़ा बनने की चाहत में ऐसा किया है। अतीक ही क्यों मुख्तार अंसारी, बृजेश सिंह, धनंजय सिंह, अभय सिंह, विजय मिश्रा, हाजी याकूब, हाजी इक़बाल, बदन सिंह बद्दो, संजीव माहेश्वरी, डीपी यादव, रामू द्विवेदी, बबलू श्रीवास्तव जैसे अकेले उत्तर प्रदेश में सैकड़ों ऐसे माफिया हैं, जो राजनीति से खाद पानी पाते हैं। यही नहीं, इनमें से कई तो किसी न किसी दल से माननीय बन बैठे हैं।

एक था माफिया श्रीप्रकाश

यूपी में एक ज़माने में श्रीप्रकाश शुक्ला नामक एक अपराधी सामने आया जो दूसरों को मार कर नया सिरमौर बनना चाहता था। उसने कई दुस्साहसी हत्याकांड किये, सिर्फ अपना रुतबा बनाने के लिए लेकिन वो भी अंततः खत्म हो गया। उसके स्थान पर जरूर कई छोटे छोटे सिर उगे होंगे। इसी कड़ी में हरिशंकर तिवारी व वीरेंद्र शाही का भी नाम आता है।

मुंबई में एक माफिया था दाऊद इब्राहिम। वह भी ऐसी ही हाईड्रा सिंड्रोम की देन था। उसके पहले हाजी मस्तान, करीम लाला जैसे स्मगलर और अपराधी हुआ करते थे और दाऊद ने इन्हीं दोनों का साम्राज्य खत्म करके अपने आपको स्थापित किया।

पुलिस भी कम नहीं

अगर एक केस स्टडी के रूप में दाऊद या मुम्बई अंडरवर्ल्ड को देखें तो पाएंगे कि हाइड्रा रूपी अपराधियों के नये सिरों के तौर पर पुलिसवाले भी उगे हैं। मिसाल के तौर पर जब मुंबई के गैंग्स ने अति कर दी तो मुंबई पुलिस के "एनकाउंटर स्पेशलिस्ट" पुलिसवालों ने सैकड़ों अपराधियों को खत्म कर दिया। लेकिन इन्हीं एनकाउंटर स्पेशलिस्ट्स में कुछेक खुद हाइड्रा के नए सिर बन गए और वर्दी वाले माफिया बन गए। प्रदीप शर्मा, दया नायक, सालसकर, सचिन वाज़े आदि जो कभी हीरो थे, बाद में विलेन बन गए।

माफियाओं को लेकर इन देशों ने क्या किया

अपराधियों का आतंक जब पूरे देश - समाज पर हावी हो जाये तो कोई क्या करे? क्या वह फिलीपींस के राष्ट्रपति रोड्रिगो दुतरते की तरह बन जाये जिन्होंने अपने देश से ड्रग्स, भ्रष्टाचार और माफिया को खत्म करने के लिए 'देखो और गोली मारो' की नीति अपनाई।

जिसके चलते कोई 30 - 40 हजार लोग गोली से उड़ा दिए गए। या फिर अल सल्वाडोर के राष्ट्रपति नाइब बुकेले की तरह बन जाए जिन्होंने अपने देश से गैंग्स और गैंगस्टर्स का कलंक मिटाने के लिए कोई एक लाख गैंगस्टर्स को जेलों में ठूंस दिया।

इनको रखने के लिए देश में जो मेगा जेल बनाई गई उसकी क्षमता 40 हजार बंदियों की है।

एक उदाहरण अमेरिका का है जहां इटली के सिसली क्षेत्र के माफिया गैंग्स ने अमेरिका के जरायम को पूरी तरह कंट्रोल कर रखा था। हत्याएं, डकैती, लूट, रेप क्या क्या नहीं किया इन माफिया ने। पुलिस और जजों को खरीद डाला।

लेकिन 60 और 70 के दशक में इन माफिया के खिलाफ जो राजनीतिक मुहिम छेड़ी गई उससे बड़े-बड़े माफिया ध्वस्त हो गए, जेलों में सौ-सौ साल की जेल की सज़ा पाए और उनका साम्राज्य धीरे धीरे खत्म हो गया।

माफियाओं को कौन देता है खाद पानी

अपराध और अपराधी, जब तक इंसान मौजूद हैं तब तक खत्म नहीं होने वाले, ये सच्चाई है। हां, ये जरूर है कि संगठित अपराध और हाइड्रा रूपी माफिया राक्षसों को खत्म किया जा सकता है । लेकिन उसके पीछे राजनीतिक ईमानदारी और लगन होनी होगी। ये मुमकिन नहीं कि हम माफिया या अपराधियों को चुनाव लड़वाएँ और अपराध समाप्ति की बातें करें।

माफिया का सिर बिना पुलिस और पॉलिटिकल खाद-पानी रूपी सपोर्ट के बगैर पनप ही नहीं सकता। ये सच्चाई हर जगह की है । लेकिन हमारे यहां कुछ ज्यादा और खुल्लमखुल्ला है। अतीक, मुख़्तार, आनंद मोहन, अनंत सिंह, शहाबुद्दीन, सूरजभान सिंह, पप्पू यादव, रमाकांत यादव, उमाकांत यादव, गुड्डू पंडित, त्रिभुवन सिंह को तमाम राजनीतिक दलों ने उसकी माफ़ियागिरी जानते हुये सपोर्ट किया। दाऊद, अरुण गवली, भाई ठाकुर, हाजी मस्तान से लेकर बिहार व उत्तर प्रदेश के ढेरों बाहुबली यानी गुंडे-बदमाश नेताओं को खूब पोलिटिकल खाद पानी मिला और अब भी मिल रहा है। जब पॉलिटिकल सपोर्ट मिलता है तो बोनस में पुलिस और प्रशासन खुद-बखुद हाथ जोड़े रहता है। नहीं तो बिकाऊ तो यहां हर माल है।

अतीक के मामले में क्या हुआ ?

प्रयागराज के कितने ही पुलिसवाले ऐसे निकले जो अतीक के पेरोल पर थे। ये क्या आज से उसका खाते थे? नहीं, इन्हीं पुलिसवालों, अफसरों, कर्मचारियों ने अतीक को अतीक और विकास दुबे को विकास दुबे बनाया। क्या उसकी खुद की मजाल थी कि एक प्रॉपर्टी पर कब्जा कर ले? अवैध बिल्डिंग बना ले? गुंडई करके बचा रहे? उसको हाइड्रा बनाने में पूरा सिस्टम लगा हुआ था और न जाने कितने हाइड्रा के सिर ये सिस्टम उगाने में लगा हुआ है।

ग्रीक पौराणिक कथाओं का हाइड्रा एक झील में रहता था। उसके कई सिर थे और इसकी सांस, गंध और खून तक बेहद ज़हरीला था। इसके माता-पिता टायफियस और इकिडना जीव थे, और इसके भाई-बहनों में अन्य बहु-सिर वाले जानवर शामिल थे, जैसे कि सेर्बेरस और चिमेरा। ये सब के सब भयानक राक्षस थे और ये सब हाइड्रा को पोषण देते थे।

सो, इस कथानक में आप हाइड्रा की जगह किसी भी माफिया या गैंगस्टर को रख दीजिए और उसके पोषकों में उनको रख दीजिए जिनका काम सिस्टम को रोगमुक्त रखना है। तस्वीर आपके सामने खुद ब खुद साफ हो जाएगी। पर तस्वीर के साफ़ होने से कुछ होने वाला नहीं हैं। इस तस्वीर को नष्ट होना होगा। योगी आदित्यनाथ ने इसकी शुरुआत की है। इस शुरुआत के संदेश सोशल मीडिया, मीडिया व जनता के बीच से जो निकल रहे हैं, वह साफ़ कह रहे हैं कि यह अभियान जारी रहना चाहिए। रूकना नहीं चाहिए। योगी ने इस फ़ैसले व इस अभियान से ग़ज़ब की लोकप्रियता हासिल की है। यह देश के दूसरे नेताओं के लिए संदेश व सबक़ है। देखना है कौन इसे सुनता है और कौन अनसुना करता है।

(लेखक पत्रकार हैं । दैनिक पूर्वोदय से साभार ।)

Yogesh Mishra

Yogesh Mishra

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