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Monsoon: क्या है मानसून, उत्पति और कैसे बनता है? आइए जानें

Monsoon: हमारे देश की फसलें, वन पानी की कमी सब मानसून पर ही निर्भर करते है। मानसून का ठीक न होना अकाल का कारण होता है।

Sarojini Sriharsha
Published on: 23 May 2022 4:41 PM IST
monsoon
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मानसून। 

Monsoon: अरबी भाषा के मॉनसून मौसिम, शब्द से बना है, जिसका शाब्दिक अर्थ होता है मौसम। हमारे देश की फसलें, वन पानी की कमी सब मानसून (monsoon) पर ही निर्भर करते है। यदि मानसून अच्छा होता है तो पीने का पानी जल स्त्रोत् भर जाने से पर्याप्त मिलता है। फसलें भी भरपूर होती हैं तथा वनों में हरियाली छा जाने से चारा भी पूरी मात्रा में उपलब्ध होता है। मानसून का ठीक न होना अकाल का कारण होता है। इसीलिए किसान के साथ साथ आम आदमी भी इसका इंतजार करता है। हमारे देश की कृषि व्यवस्था पूर्ण रूप से मानसून पर निर्भर है।

दो प्रकार की होती हैं मानसूनी हवाएं

वास्तव में मानसून एक हवा है जो वर्षा को एक निश्चित समयावधि में निश्चित दिशा की ओर बढ़ाती है। मानसूनी हवाएं लगभग छः महीने नियमित रूप से एक ही दिशा में बहती हैं। मानसूनी हवाएं दो प्रकार की होती है- ग्रीष्मकालीन एवं शीतकालीन। ग्रीष्मकालीन मानसून (summer monsoon) बादलों को समुद्र से ऊपर जलराशि प्राप्तकर वर्षा करवाता है। किंतु शीतकालीन मानसूनी हवाएं वर्षा नहीं करवाती।

शीतकालीन वर्षा को मावठ कहते हैं। ग्रीष्मकाल में हमारी धरती का स्थलीय भाग जलीय भाग से अधिक गर्म होने के कारण पानी पर हवा का दबाव बढ़ जाता है एवं हवा जल से थल की ओर बढ़ने लगती है। इन हवाओं में पानी की भाप यानी जलवाष्प का अंश समिल्लित होने के कारण हवाएं ठंडी और सर्द होती हैं।

भारत में वर्षा करने वाली हवाएं बंगाल की खाड़ी (Bay of Bengal) और अरब सागर (Arabian Sea) से उत्पन्न होने वाले चक्रवातों पर निर्भर करती है। वर्षा का 70 प्रतिशत से अधिक भाग दक्षिण पश्चिम मानसून (south west monsoon) अर्थात दक्षिण पश्चिम में स्थित अरब सागर से उठने वाली हवाओं से प्राप्त होता है।

भारत में प्रवेश करने वाली ये हवाएं तीन भागों में विभक्त हो जाती हैं।

- प्रथम भाग काठियावाड़, गुजरात से होते हुए राजस्थान, पंजाब, हिमाचल प्रदेश को पार कर कश्मीर में समाप्त हो जाता है।

- दूसरा हिस्सा पश्चिमी समुद्री तट की पहाड़ियों पर मूसलाधार बारिश करने के पश्चात मध्य प्रदेश और ओडिशा होते हुए पूर्वीघाट तक जाता है।

- तीसरा हिस्सा बंगाल की खाड़ी से होते हुए गंगा की मैदानी क्षेत्रों में प्रवेश कर पश्चिम की तरफ मुड़ जाता है।

- जून माह के दूसरे या तीसरे सप्ताह में मानसूनी वर्षा की शुरुआत

मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार सामान्यतः जून माह के दूसरे या तीसरे सप्ताह में मानसूनी वर्षा की शुरुआत हो जाती है। परंतु सारे भारत के लिए जुलाई का पूरा महीना बरसात के लिए सबसे महत्वपूर्ण रहता है। मानसूनी वर्षा किसी क्षेत्र में गत वर्ष की अपेक्षा कम या अधिक हो सकती है। इस समय मानसून भारत आ चुका है।

बादल क्यों गरजते हैं

बादलों का गरजना एक वैज्ञानिक क्रिया है जिसका कारण उनके मौजूद बिजली है। बादलों में घन या पॉजिटिव और ऋण या नेगेटिव दोनों तरह की बिजली होती है। घन बिजली वाले बदल एक तरफ इकठ्ठा हो जाते हैं और ऋण बिजली वाले दूसरी तरफ। इस तरह दोनों के बीच खिंचाव उत्पन्न होता है और बीच की हवा में बिजली दौड़ने लगती है। यही बिजली तेज गर्जना पैदा करती है और इसके साथ एक तेज चमक भी दिखाई पड़ती है। इसे ही हम बिजली का चमकना या कड़कना कहते हैं।

रोशनी की रफ्तार आवाज के मुकाबले तीव्र

सबसे पहले यह चमक दिखाई देती है और बाद में कड़क सुनाई पड़ती है। इसका कारण यह है कि रोशनी की रफ्तार आवाज के मुकाबले तीव्र होती है। इन बादलों की बिजली की वजह से ही बिजली गिराने की दुर्घटना भी होती है। कभी कभी लोगों की जान भी चली जाती है। इस तरह की घटना तब होती है जब पृथ्वी की सतह पर एक ही तरह की बिजली(धन या ऋण) वाले ढेर सारे बदल इकट्ठा हो जाते हैं तो पृथ्वी पर विपरित बिजली पैदा हो जाती है। इससे दोनों बिजली के बीच खिंचाव शुरू हो जाने की वजह से बीच की हवा में बिजली दौड़ने लगती है। कभी कभी ये इमारतों से होती हुई धरती में समा जाती है। इससे इमारत के नष्ट होने के साथ साथ उसमे मौजूद लोगों की भी जान जा सकती है।

बिजली से बचने का तरीका

इससे बचने का एक तरीका यह है कि बहुत सी ऊंची इमारतों के ऊपर धातु का त्रिशूल सा लगा होता है। इसे तड़ित चालक कहते हैं। इसका एक शिरा जमीन में काफी गहराई में दबा होता है। जब कभी बिजली गिरती है तो तड़ित चालक से होते हुए धरती में समा जाती है। इससे न ही इमारत को कोई नुकसान होता है न ही किसी की जान जाती है।



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Deepak Kumar

Deepak Kumar

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