×

Sengol: अमित शाह के बयान के बाद चर्चा में आए इस 'गोल्डन स्टिक, सेंगोल' का क्या है इतिहास, नए संसद भवन में यहां होगी जगह

Sengol: 28 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों लोकतंत्र के इस नए एवं भव्य मंदिर का उद्घाटन होना है। देश की सबसे बड़ी पंचायत की इमारत के उद्घाटन को लेकर राजनीति भी खासी गरमाई हुई है। विपक्षी दलों द्वारा समारोह के बहिष्कार करने के ऐलान के बीच केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह बुधवार को प्रेस से मुखातिब हुए और नए संसद भवन के उद्घाटन पर अपनी बातें रखीं।

Krishna Chaudhary
Published on: 24 May 2023 7:50 PM IST (Updated on: 28 May 2023 4:34 PM IST)
Sengol: अमित शाह के बयान के बाद चर्चा में आए इस गोल्डन स्टिक, सेंगोल का क्या है इतिहास, नए संसद भवन में यहां होगी जगह
X
सेगोल का इतिहास

नई दिल्ली. सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के तहत बने नए संसद भवन के उद्घाटन की तैयारियां जोरशोर से चल रही हैं। 28 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों लोकतंत्र के इस नए एवं भव्य मंदिर का उद्घाटन होना है। देश की सबसे बड़ी पंचायत की इमारत के उद्घाटन को लेकर राजनीति भी खासी गरमाई हुई है। विपक्षी दलों द्वारा समारोह के बहिष्कार करने के ऐलान के बीच केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह बुधवार को प्रेस से मुखातिब हुए और नए संसद भवन के उद्घाटन पर अपनी बातें रखीं।

इस दौरान गृह मंत्री शाह ने सोने की एक छड़ी जैसी दिखने वाली वस्तु ‘सेंगोल‘ का जिक्र किया, जिसके बाद से ये तमाम मीडिया रपटों में छाया हुआ है। उन्होंने कहा कि नई संसद के उद्घाटन के मौके पर ऐतिहासिकत परंपरा पुनर्जीवित होगी। संसद भवन की नई इमारत में सेंगोल को स्थापित किया जाएगा। तमिलनाडु से आए विद्वान इसे पीएम नरेंद्र मोदी को सौंपेंगे।

क्या होता है सेंगोल ?
गृह मंत्री अमित शाह ने बताया कि सेंगोल एक तमिल शब्द है, जिसका अर्थ होता है संपदा से संपन्न। इसे सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक माना जाता है। प्राचीन भारत के कई ताकतवर राजवंशों ने इसका इस्तेमाल किया है। इसका सबसे ताजा इतिहास भारत के आजादी के दौरान का है। 14 अगस्त 1947 को जब भारत की सत्ता का हस्तांतरण हुआ, तो वो इसी सेंगोल द्वारा हुआ था। इसके बाद ये एक तरह से भारत की आजादी का प्रतीक बन गया था।
सेंगोल को लेकर एक दिलचस्प किस्सा ये है कि 1947 में जब भारत में ब्रिटिश शासन का आखिरी वक्त चल रहा था तब अंतिम वायरसराय लॉड माउंट बेटन ने पंडित नेहरू से पूछा था कि सत्ता का हस्तांतरण कैसे किया जाए। इस पर नेहरू ने अपने वरिष्ठ सहयोगी सी राजगोपालाचारी से मशवरा मांगा। बताया जाता है कि तब राजगोपालाचारी ने उन्हें भारत की प्राचीन सेंगोल परंपरा के बारे में बताया। इसके बाद इसे तमिलनाडु से मंगवाया गया। 14 अगस्त 1947 की रात पंडित नेहरू ने वायरसराय लॉड माउंट बेटन से सेंगोल को स्वीकार किया। इस प्रकार पारंपरिक तरीके से भारत की सत्ता का हस्तांतरण हुआ।

पीएम मोदी ने संगोल पर करवाई थी रिसर्च

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2014 में देश की कमान संभालने के बाद से उन कई परंपराओं को पुनर्जीवित किया है, जो बिसरा गए थे और ऐसे कई परंपरा चालू किए जो हमें अपने समृद्ध इतिहास का एहसास दिलाते हैं। इसी कड़ी में उन्हें जब सेंगोल के बारे में पता चला तो फिर उन्होंने इस पर रिसर्च करवाई। फिर निर्णय लिया कि इसे देश के समक्ष रखना चाहिए ताकि नई पीढ़ी को इसके बारे में जानने का मौका मिले। इसके लिए नए संसद भवन के उद्घाटन से बेहतर दिन नहीं हो सकता था। इसलिए इसी दिन सेंगोल को देश की जनता के सामने लाने का निर्णय लिया गया। सोने की बनी छड़ीनुमा यह आकृति अब तक प्रयागराज के म्यूजियम में रखी हुई थी। इसे देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित नेहरू की सोने की छड़ी के रूप में जाना जाता था।

नई संसद में कहां लगाया जाएगा संगोल

सेंगोल को नए संसद भवन में स्पीकर यानी लोकसभा अध्यक्ष के आसन के पास लगाया जाएगा। 1947 में आजादी हासिल करने के बाद से भारत सरकार ने इसका कभी उपयोग नहीं किया है। इसलिए यह लोगों की स्मृति से एक तरह से गायब हो चुका था। हालांकि, सेंगोल राजदंड अभी भी भारतीय सम्राट की शक्ति और अधिकार का प्रतीक है। यह भारत के समृद्ध इतिहास का प्रतीक होने के साथ-साथ देश की आजादी का भी प्रतीक है।

भारत के प्राचीन राजवंशों ने किया था इस्तेमाल

प्राचीन भारत से लेकर मध्यकाल तक हिंदुस्तान की धरती पर जितने भी साम्राज्यों का उदय हुआ, सभी ने अपने - अपने कालखंड में सेंगोल राजंदड का उपयोग किया। इतिहासकारों के मुताबिक, भारत में सेंगोल राजंदड का पहला ज्ञात उपयोग मौर्य साम्राज्य (322-185 ईसा पूर्व) द्वारा किया गया था। इसके बाद गुप्त साम्राज्य, चोल साम्राज्य और विजयनगर साम्राज्य द्वारा इसके उपयोग किया गया। बताया जाता है कि आखिरी बार इसका इस्तेमाल मुगल बादशाहों ने किया था।
प्राचीन काल में बड़े राजवंशों द्वारा अपने विशाल साम्राज्य पर अपने अधिकार को दर्शाने के लिए सेंगोल राजदंड का उपयोग किया जाता था। इसे शासक की शक्ति और प्रतीक के रूप में देखा जाता था। यह सोने या चांदी से बना होता था और कीमतों पत्थरों से सजाया जाता था। बता दें कि संसद भवन में जिस सेंगोल की स्थापना होगी, उसके शीर्ष पर नंदी विराजमान हैं।

Krishna Chaudhary

Krishna Chaudhary

Next Story