TRENDING TAGS :

Aaj Ka Rashifal

Polygamy: क्या है बहुविवाह प्रथा जिसे रोकेगी असम सरकार

Polygamy: असम में हिमंता बिस्वा सरमा की सरकार बाल विवाह के खिलाफ बड़े पैमाने पर अभियान चलाने के बाद अब बहुविवाह प्रथा पर अंकुश लगाने की तैयारी में है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देश में बहुविवाह की प्रथा भले पहले के मुकाबले घटी हो लेकिन अब भी ऐसे मामले सामने आते रहे हैं।

Neel Mani Lal
Published on: 11 May 2023 5:23 AM IST
Polygamy: क्या है बहुविवाह प्रथा जिसे रोकेगी असम सरकार
X
क्या है बहुविवाह प्रथा जिसे रोकेगी असम सरकार: Photo- Social Media

Polygamy In India: असम में हिमंता बिस्वा सरमा की सरकार बाल विवाह के खिलाफ बड़े पैमाने पर अभियान चलाने के बाद अब बहुविवाह प्रथा पर अंकुश लगाने की तैयारी में है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देश में बहुविवाह की प्रथा भले पहले के मुकाबले घटी हो लेकिन अब भी ऐसे मामले सामने आते रहे हैं। खासकर आदिवासियों और अल्पसंख्यक समुदाय में। बहुविवाह की वैधता पर बहस भी पुरानी है और बीते साल रेशमा नाम की एक महिला ने इस मुद्दे पर दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका भी दायर की है। सुप्रीम कोर्ट ने बहुविवाह और निकाह हलाला जैसे प्रथा की संवैधानिक वैधता पर विचार के लिए बीते साल एक पांच-सदस्यों वाली संवैधानिक पीठ का भी गठन किया था।

भारत में बहुविवाह

भारत की 1961 की जनगणना में एक लाख विवाहों के नमूने लेकर किए गए एक सर्वेक्षण में बताया गया था कि मुसलमानों में बहुविवाह का प्रतिशत महज 5.7 फीसदी था, जो दूसरे धर्म के समुदायों में सबसे कम था। हालांकि उसके बाद हुई जनगणना में इस मुद्दे पर आंकड़े नहीं जुटाये गये। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के 2019-2020 के आंकड़ों में बताया गया था कि हिंदुओं की 1.3 फीसदी, मुसलमानों की 1.9 फीसदी और दूसरे धार्मिक समूहों की 1.6 फीसदी आबादी में अब भी बहुविवाह की प्रथा जारी है। एनएफएचएस के बीते 15 वर्षों के आंकड़ों के विश्लेषण के बाद मुंबई स्थित इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पॉपुलेशन स्टडीज ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि गरीब, अशिक्षित और ग्रामीण तबके में बहुविवाह प्रथा की दर ज्यादा है। ऐसे मामलों में क्षेत्र और धर्म के अलावा समाज-आर्थिक मुद्दों की भी भूमिका अहम है।

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, देश में वर्ष 2005-06 के 1.9 फीसदी के मुकाबले वर्ष 2019-20 में बहुविवाह के मामले घट कर 1.4 फीसदी रह गये थे। पूर्वोत्तर राज्यों में यह दर ज्यादा रही है। मिसाल के तौर पर मेघालय में यह 6.1 फीसदी और त्रिपुरा में दो फीसदी है। बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल और ओडिशा में भी यह प्रथा जारी है। तमिलनाडु, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और छत्तीसगढ़ के असावा बाकी जगह यह प्रथा हिंदुओं के मुकाबले मुसलमानों में ज्यादा प्रचलित है।

बहुविवाह के नियम

भारत में मुसलमानों को एक से ज्यादा शादी करने की छूट है। आईपीसी की धारा 494 के तहत मुस्लिम पुरुष दूसरा निकाह कर सकते हैं। इसी तरह शरीयत कानून में भी बहुविवाह की अनुमति है। पहली पत्नी की सहमति से चार शादियां कर सकते हैं। हालांकि, इस कानून के तहत सिर्फ पुरुषों को दूसरी शादी करने की इजाजत है। मुस्लिम महिलाओं को मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) अधिनियम, 1937 के तहत दूसरी शादी की अनुमति नहीं है। अगर कोई मुस्लिम महिला दूसरी शादी करना चाहती है तो उसे पहले अपने पति से तलाक लेना होगा। फिर वह दूसरी शादी कर सकती है। बहुविवाह के दौरान दिक्कत तब आती है, जब तकनीकी तौर पर दूसरा विवाह करने से पहले पुरुषों को पहली पत्नी से इजाजत लेनी पड़ती है। कई महिलाओं की शिकायत है कि उनसे इस बारे में कभी नहीं पूछा गया।

असम सरकार की पहल

असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा है कि असम सरकार राज्य में बहुविवाह पर प्रतिबंध लगाने पर विचार कर रही है। इसके लिए सरकार ने एक विशेषज्ञ समिति बनाने का फैसला किया है। यह समिति इस बात की जांच करेगी कि बहुविवाह पर पाबंदी लगाने का राज्य सरकार के पास अधिकार है या नहीं। मुख्यमंत्री ने कहा है कि असम के कम से कम दो जिलों में बहुविवाह के काफी मामले देखे गए हैं। उन्होंने कहा कि असम के मूल निवासियों में बहुविवाह प्रथा नहीं के बराबर है।
इस बीच हिमंत बिस्व सरमा के बहुविवाह पर पूरी तरह से रोक लगाने वाले बयान को लेकर राज्य में विवाद शुरु हो गया है।

इस मुद्दे पर ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) के अध्यक्ष एवं सांसद मौलाना बदरुद्दीन अजमल ने कहा कि बहुविवाह की प्रथा इस्लाम धर्म की अपेक्षा अन्य धर्मों में अधिक है। अजमल ने कहा कि भारत में अन्य धर्मों की तुलना में इस्लाम धर्म में बहुविवाह काफी कम होता है। इस्लाम धर्म शरीयत के अनुसार बहुविवाह होने के चलते इसके तथ्य उपलब्ध होते हैं, लेकिन कई अन्य धर्मों में इस्लाम की तुलना में अधिक बहुविवाह होते हैं। इस तरह की शादी के बारे में कोई जानकारी नहीं है। उन्होंने कहा कि सरकार इसकी जिम्मेदारी के साथ शोध करने पर कई शादियों के मुद्दों का पता चलेगा, जिसमें अन्य धर्मों के लोग इस्लाम से ज्यादा शादियां करते हैं।



\
Neel Mani Lal

Neel Mani Lal

Next Story