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फांसी से पहले क्या थी शहीद-ए-आजम भगत सिंह की आखिरी ख्वाहिश, जानें उस दिन की पूरी कहानी

Shaheed Diwas 2025: शहीद-ए-आजम भगत सिंह को किताबें पढ़ने का बेहद शौक था। फांसी होने से पहले भगत सिंह के वकील प्राणनाथ मेहता उनसे मिलने जेल पहुंचे थे।

Shishumanjali kharwar
Published on: 23 March 2025 12:26 PM IST
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Shaheed Diwas 2025: 23 मार्च 1931 यह वह दिन था। जब भारत ने अपने तीन सपूतों को खोया था। अंग्रेजों ने आज के दिन शहीद-ए-आजम भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव को एक साथ फांसी पर चढ़ा दिया था। 23 साल के नौजवानों को फांसी देने पर पूरी जेल गमगीन थी। लेकिन तीनों सपूतों के चेहरे पर षिकन तक नहीं दिखी। तीनों ने इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाते हुए फांसी के फंदे का चूम लिया।

हालांकि अंग्रेजों के मन में उनका भय इस कदर था कि तय समय से पहले ही तीनों को फांसी पर चढ़ा दिया गया। भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव की फांसी की तिथि 24 मार्च मुकर्रर की गयी थी। लेकिन तीनों वीर जवानों से अंग्रेजी सरकार यह कदर भयाक्रांत थी कि उसने 12 घंटे पहले ही तीनों को फांसी देने का निर्णय कर लिया। सभी कैदियों को 23 मार्च को सायं चार बजे जेलों के अंदर भेज दिया गया और फिर शाम के साढ़े सात बजे भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव को फांसी दे दी गयी।

फांसी से पहले यह थी भगत सिंह की आखिरी ख्वाहिश

शहीद-ए-आजम भगत सिंह को किताबें पढ़ने का बेहद शौक था। फांसी होने से पहले भगत सिंह के वकील प्राणनाथ मेहता उनसे मिलने जेल पहुंचे थे। उस समय वह उनकी पंसदीदा किताब लेकर आए थे। वह किताब थी लेनिन की जीवनी। जिसका नाम था ‘स्टेट एंड रिवॉल्यूषन’। अपने वकील से मुलाकात के बाद भगत सिंह को जैसे फांसी का कोई खौफ ही नहीं था। वह बेफ्रिक होकर किताब पढ़ने लगे।

जिस समय अंग्रेजी सिपाहियों ने उन्हें फांसी देने के लिए बुलाया वह अपनी किताब ही पढ़ रहे थे। तब उन्होंने कहा कि थोड़ा रूकिए मैं अपनी किताब खत्म कर लूं। यही उनकी आखिरी इच्छा थी। जैसे ही उन्होंने अपनी किताब खत्म की। उसके बाद वह मुस्कुराते हुए बोले चलों अब चलते हैं। वह अपनी जेल की कोठरी से बाहर आए और हंसते-हंसते फांसी के तख्त पर चढ़ गये।

अंग्रेजों ने पार की निर्दयता की हदें

फांसी के लिए नियत तारीख 24 मार्च से एक दिन पहले 24 मार्च 1931 को अंग्रेजों ने भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव को फांसी पर तो चढ़ा दिया। लेकिन उनके मन का भय फिर भी खत्म नहीं हुआ। वह नहीं चाहते थे कि तीनों के फांसी देने की खबर जेल से बाहर आए। इसके लिए अंग्रेजों ने रात के अंधेरे में ही तीनों शहीदों के शवों को जेल से बाहर निकाला और सतलज के किनारे पहुंच गये।

जहां अंतिम संस्कार की तैयारी करने में ही भोर हो गयी। जिसके बाद अंग्रेजों ने जल्दी-जल्दी तीनों शहीदों का अंतिम संस्कार कर दिया। धुंआ किसी को न दिखायी दे। इसके लिए उन्होंने चिता की आग को बुझा दिया और फिर अधजले शवों को नदी में फेंक दिया। लेकिन यह खबर गांव वालों को लग ही गयी। वह तुरंत वहां पहुंचे और शहीदों के अधजले शवों को नदी से बाहर निकाला और फिर विधिवत अंतिम संस्कार किया।

Shishumanjali kharwar

Shishumanjali kharwar

कंटेंट राइटर

मीडिया क्षेत्र में 12 साल से ज्यादा कार्य करने का अनुभव। इस दौरान विभिन्न अखबारों में उप संपादक और एक न्यूज पोर्टल में कंटेंट राइटर के पद पर कार्य किया। वर्तमान में प्रतिष्ठित न्यूज पोर्टल ‘न्यूजट्रैक’ में कंटेंट राइटर के पद पर कार्यरत हूं।

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