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King Charles Coronation: ...जब महारानी एलिजाबेथ की ताजपोशी में शामिल हुए थे जवाहर लाल नेहरू, हुई थी आलोचना

King Charles Coronation: साल 1953 में भव्य समारोह के बीच महारानी एलिजाबेथ की ताजपोशी हुई थी। उस वक्त भारत की तरफ से तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने समारोह में भारत का प्रतिनिधित्व किया था। उस दौरान उन्हें आलोचना का भी शिकार होना पड़ा था।

Hariom Dwivedi
Published on: 7 May 2023 12:26 AM IST (Updated on: 7 May 2023 12:27 AM IST)
King Charles Coronation: ...जब महारानी एलिजाबेथ की ताजपोशी में शामिल हुए थे जवाहर लाल नेहरू, हुई थी आलोचना
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महारानी एलिजाबेथ की ताजपोशी में शामिल हुए थे पंडित जवाहर लाल नेहरू (फोटो- साभार सोशल मीडिया)

King Charles Coronation: ब्रिटेन के किंग चार्ल्स तृतीय ने आज 06 मई को लंदन के वेस्टमिंस्टर एबे में शाही ताज पहना। उनकी पत्नी क्वीन कंसोर्ट कैमिला की भी महारानी के रूप में ताजपोशी की गई। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने समारोह में भारत का प्रतिनिधित्व किया। इससे पहले साल 1953 में एक भव्य समारोह के बीच महारानी एलिजाबेथ की ताजपोशी हुई थी। उस वक्त भारत की तरफ से तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने समारोह में भारत का प्रतिनिधित्व किया था। उस दौरान उन्हें आलोचना का भी शिकार होना पड़ा था।

वर्ष 1953, यानी उस वक्त भारत को अंग्रेजों के चुंगल से आजाद हुए 06 वर्ष ही हुए थे। गुलामी की जंजीरों से मुक्त हुए भारत के सामने कई चुनौतियां थीं और ब्रिटेन के प्रति गुस्सा भी। ऐसे में जब जवाहर लाल नेहरू ब्रिटेन की महारानी की ताजपोशी के गवाह बने तो इस पर जमकर बवाल हुआ था। बीबीसी को दिये इंटरव्यू में जवाहर लाल नेहरू ने इस पर खुलकर चर्चा की थी। उन्होंने कहा कि कार्यक्रम बहुत ही भव्य था। इस दौरान वह लंदन की व्यवस्थित भी और उनके व्यवहार करने के तरीके की भी जमकर प्रशंसा की थी।

पंडित नेहरू ने इटरव्यू में कही थी ये बात

उसी इंटरव्यू में जवाहर लाल नेहरू से सवाल किया गया था कि क्या भारत ने ब्रिटेन को इतनी जल्दी माफ कर दिया है? क्या उनके राज्याभिषेक में आने पर भारत में कोई आलोचना नहीं होगी? तब नेहरू ने कहा था कि हां विवाद तो होगा ही, लेकिन विवादों का असल में कोई मतलब नहीं होगा। उनकी कोई नींव नहीं होगी। उन्होंने कहा कि आने की वजह से भी विवाद हुआ और जब वह भारत वापस जाएंगे तभी विवाद होगा। पंडित नेहरू का यह तर्क एक वर्ग को पसंद नहीं आया था। एक वर्ग कह रहा था कि उन्हें उस ब्रिटेन में जाने की कोई जरूरत नहीं थी जिसने इतने सालों तक देश को गुलाम बनाये रखा।

भारत के लिए नया नहीं था इवेंट

1953 में महारानी एलिजाबेथ की ताजपोशी भारत के लिए कोई नया इवेंट नहीं था। इससे पहले भी 1877, 1903 और 1911 में देखी जा चुकी थी। तब ये दरबार नई दिल्ली में कनॉट प्लेस से लगभग 17 किलोमीटर दूर स्थित कोरोनेशन पार्क में आयोजित किए गए थे। महारानी एलिजाबेथ के सिंहासन पर बैठने तक, भारत न केवल एक स्वतंत्र गणराज्य था, बल्कि राष्ट्रमंडल राष्ट्रों में शामिल होकर ब्रिटिश शासन की बेड़ियों को तोड़ दिया था।

क्या काम करते हैं किंग्स?

ब्रिटेन में संसदीय राजतंत्र है। मलतब कि इस देश में राजा भी हैं और संसद भी। ये दोनों ही ब्रिटेन के मजबूत संस्थान हैं और एक-दूसरे के पूरक भी। हालांकि, राजगद्दी की शक्तियां प्रतीकात्मक और औपचारिक हैं। ब्रिटेन के किंग राजनीतिक रूप से तटस्थ रहते हैं। राष्ट्र प्रमुख किंग को सरकारी कामकाज और फैसलों की जानकारी हर दिन लाल रंग के लेदर बॉक्स में उपलब्ध कराई जाती है। साथ ही महत्वपूर्ण बैठकों या दस्तावेजों की रिपोर्ट भी पहले ही दी जाएगी, जिन पर उनके हस्ताक्षर होंगे। बात करें किंग के सबसे प्रमुख कामों की तो उनमें से एक है, ब्रिटेन में आम चुनावों के बाद सरकार की नियुक्ति। चुनाव जीतने वाली पार्टी को वह राजनिवास बकिंघम पैलेस बुलाते हैं और उन्हें सरकार बनाने के लिए औपचारिक आमंत्रण देते हैं।



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Hariom Dwivedi

Hariom Dwivedi

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